महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 को गीता प्रवेशिका की न सिर्फ प्रस्तावना लिखीं बल्कि कई लेख भी समय समय पर लिखें। हनुमान प्रसाद पोद्दार तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे और जेल भी गए। उनका योगदान इतना बड़ा था कि तत्कालीन गृहमंत्री गोविंदवल्लभ पंत ने उन्हें भारतरत्न देने की पेशकश की जिसे इस संतमना ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया था।
-धीरेन्द्र राहुल-

राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश उनके प्रमुख सलाहकार की भूमिका निभा रहे थे। एक बार तो दिग्विजयसिंह ने पत्रकारों से कोई गैर मौजूं बात कह दी तो जयराम ने तत्काल उसका प्रतिवाद किया था लेकिन गीता प्रेस गोरखपुर को 1995 में स्थापित गांधी शांति पुरस्कार देने को उन्होंने वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे को सम्मानित करने के भाव से जोड़ा है। उसे देखकर लगता है कि जयराम रमेश का देश और उसकी महान संस्थाओं के प्रति ज्ञान अधकचरा है।
गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना 1921 में कोलकाता में जयदयाल गोयंदा जी ने की थी। लेकिन हनुमान प्रसाद पोद्दार उसके प्रकाशनों को गुणवत्ता प्रदान करने वाले मुख्य सूत्रधार रहे हैं।
इस देश में गांधी शांति पुरस्कार की अगर कोई सबसे पात्र संस्था है तो वह गीता प्रेस गोरखपुर ही है।
महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 को गीता प्रवेशिका की न सिर्फ प्रस्तावना लिखीं बल्कि कई लेख भी समय समय पर लिखें। हनुमान प्रसाद पोद्दार तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे और जेल भी गए। उनका योगदान इतना बड़ा था कि तत्कालीन गृहमंत्री गोविंदवल्लभ पंत ने उन्हें भारतरत्न देने की पेशकश की जिसे इस संतमना ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया था।
अगर जयराम बाबू यह सब नहीं जानते तो उन्हें कांग्रेस के सलाहकार के पद पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्हें खुद ही हट जाना चाहिए। अन्यथा वे राहुल गांधी को पता नहीं कितनी मूर्खतापूर्ण सलाहें देकर हंसी का पात्र बनाते रहेंगे।
मोदी सरकार हमेशा गलत ही करती है या उसका हर फैसला साम्प्रदायिकता से प्रेरित होता है। यह सोच भी ठीक नहीं है। गीता प्रेस ने एक करोड़ लेने से इंकार किया लेकिन सम्मान स्वीकार करने का निर्णय लेकर महात्मा गांधी से अपने जुड़ाव का ही सम्मान किया है। इसलिए उसके कर्ताधर्ताओं को साधुवाद।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

















