
-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
ग्रामीण इलाकों में पशुपालन भी जीवनचर्या और आय का एक स्त्रोत है। पालतु पशुओं को सुबह दूध दुहने के बाद चरवाहों के हवाले कर दिया जाता है ताकि वे उन्हें गोचर भूमि पर चराने ले जाएं।

इससे पशुओं को चारा मिलने के साथ उनके एक खंूटे से बंधे रहने के बजाय बाहर घूमने की एक्सरसाइज भी हो जाती है। हालांकि अब गोचर भूमि कम होने से यह परंपरा धीरे धीरे कम होती जाती है।

एक समय शाम के समय जब पशु एक साथ लौटते थे तब उनके गले में बंधी घंटियों की आवाज एक अलग ही मधुर संगीत पैदा करती थीं।

Advertisement