
-प्रेशर पॉलिटिक्स अथवा सीएम की कुर्सी पर निगाह
-देवेंद्र यादव-

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजस्थान में अचानक से राजनीतिक सक्रियता के मायने क्या हैं। क्या अशोक गहलोत को उम्मीद है कि यदि राजस्थान में 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह राज्य के चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। या अशोक गहलोत राजस्थान में अपनी राजनीतिक सक्रियता दिखाकर कांग्रेस हाई कमान के सामने प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं। क्योंकि राहुल गांधी नई कांग्रेस खड़ी करने का लगभग ऐलान कर चुके हैं और इस पर तेजी से काम भी चल रहा है। अशोक गहलोत को अपनी राजनीति पर खतरा नजर आ रहा है, क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद के दावेदार अकेले अशोक गहलोत और सचिन पायलट नहीं है बल्कि अब राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी हैं। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तब राहुल गांधी सचिन पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे मगर अशोक गहलोत के श्रीमती सोनिया गांधी से बेहतर संबंध होने के कारण सचिन पायलट राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने।
राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए कई प्रयास किए मगर राहुल गांधी सफल नहीं हुए। अशोक गहलोत अड़े रहे उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी को नहीं छोड़ा और नतीजा यह हुआ कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। यदि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह त्याग देते और सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री होते तो शायद 2023 में भी कांग्रेस सरकार रिपीट करती। राहुल गांधी जब भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे तब अशोक गहलोत को हैदराबाद बुलाकर कहा था और ऑफर दिया था कि वह कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और मुख्यमंत्री का पद त्याग दें लेकिन अशोक गहलोत ने राहुल गांधी की बात नहीं मानी।
अब राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस का राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर जिम्मेदारी दे दी लेकिन अशोक गहलोत को कोई जिम्मेदारी नहीं दी। शायद यही वजह है कि अशोक गहलोत राजस्थान में इन दिनों सक्रिय नजर आ रहे हैं। शायद यह उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स है। हालांकि अशोक गहलोत की यह राजनीतिक स्टाइल भी है। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं तब अशोक गहलोत अचानक से राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या पार्टी हाई कमान खासकर राहुल गांधी अशोक गहलोत की प्रेशर पॉलिटिक्स में आएंगे? ऐसा लग नहीं रहा है। राजस्थान में जनता के बीच प्रभावशाली नेताओं की कमी नहीं है। कमी है तो हाई कमान के द्वारा उन्हें परखने की। राहुल गांधी इन दिनों यही कर रहे हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर नेताओं के राजनीतिक दबाव में आते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं बल्कि अब वह कठोर फैसले ले रहे हैं। उनके इन फैसलों से कांग्रेस का आम कार्यकर्ता खुश नजर आ रहा है। इसका बड़ा उदाहरण बिहार है जहां राहुल गांधी के फैसले ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को घर से निकाल कर पार्टी के कार्यों में लगा दिया। अशोक गहलोत को बड़ी जिम्मेदारी देने की चर्चा एक समय पर मीडिया के भीतर सुनाई दी थी लेकिन अब बड़ी जिम्मेदारी की जगह अशोक गहलोत की राजस्थान की राजनीति में सक्रियता की चर्चा सुनाई देने लगी है। मतलब साफ है अशोक गहलोत को पार्टी के भीतर बड़ी जिम्मेदारी अब शायद मिलने नहीं जा रही है। यदि बड़ी जिम्मेदारी मिलने की संभावना होती तो अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति में सक्रिय नजर नहीं आते। इसकी जगह वह दिल्ली में सक्रिय होते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)