कांग्रेस को वाररूम से नहीं कार्यकर्ताओं के भरोसे मिलेगी सफलता!

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गुना में डॉ रघु शर्मा कांग्रेस के संगठन सृजन के अभियान की सर्किट हाउस में शुरुआत करते हुए। फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

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देवेंद्र यादव

कांग्रेस हाई कमान और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वाकई पार्टी को मजबूत करने के प्रति गंभीर हैं। जब कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान को देखते हैं तब लगता हैं कि गंभीर है, मगर दूसरी तरफ जब राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वार रूम को देखते हैं तो लगता है कि गंभीर नहीं बल्कि भ्रमित है। कांग्रेस का संगठन तब मजबूत होगा जब संगठन सृजन का कार्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से होगा। संगठन मजबूत होगा तो कांग्रेस भी मजबूत होगी। राज्यों के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सुखद परिणाम मिलेंगे। चुनाव में बड़ी कामयाबी तब मिलेगी जब स्वयंभू नेता कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं के दुख दर्द में शरीक होंगे। कार्यकर्ताओं को अपने परिवार का हिस्सा समझ कर उन्हें विश्वास दिलाएंगे। कांग्रेस का संगठन अभियान इस दिशा में कार्य करेगा, तब संगठन सृजन अभियान को सफलता मिलेगी और पार्टी मजबूत होगी। संगठन सृजन अभियान को एयर कंडीशनर कमरों में चुनिंदा नेताओं के साथ बैठकर बतियाने से अभियान को सफलता नहीं मिलेगी। सफलता मिलेगी गांव-गांव में गर्मी की तपिश, कंप कपाती ठंड और बरसात के थपेडों को झेल रहे आम कार्यकर्ताओं से उनके घर जाकर सीधे संवाद और बात करने से। वफादार कार्यकर्ता कांग्रेस के स्वयंभू नेताओं के द्वारा लगातार की जा रही उपेक्षाओं के कारण कुंठित है। कार्यकर्ताओं की कुंठा का परिणाम है कि कांग्रेस आज राहुल गांधी को कमजोर नजर आ रही है। कांग्रेस की यह कमजोरी तब दूर होगी जब स्वयं राहुल गांधी अपने निवास पर जनता दरबार लगाना और आम कार्यकर्ताओं से मिलना शुरू करेंगे। इससे राहुल गांधी को जनता और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सीधा फीडबैक मिलेगा। राहुल गांधी जनता दरबार लगाए यह वर्षों से कांग्रेस के भीतर सत्ता और संगठन पर कुंडली मारकर बैठे नेता शायद नहीं चाहते। क्योंकि जनता और कांग्रेस का कार्यकर्ता राहुल गांधी से कुंडली मारकर बेटे नेताओं की राजनीतिक हकीकत को बयां कर देंगे। क्या कभी कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी ने चुनाव के समय बनाए गए कांग्रेस के वार रूम की गंभीरता से समीक्षा की। विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव मैं बनाए गए कांग्रेस के वार रूम के कारण कांग्रेस को राज्यों के विधानसभा चुनाव में कितना लाभ और हानि हुई और कितना पैसा वार रूम के बनाने पर बर्बाद हुआ। यदि कांग्रेस हाई कमान जितना पैसा वार रूम के माध्यम से चुनाव में खर्च कर रही है यदि उसका आधा हिस्सा भी कुंठित कार्यकर्ताओं पर खर्च करती तो शायद चुनाव के परिणाम कुछ और ही होते और कांग्रेस मजबूत नजर आती। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और दिल्ली के बाद कांग्रेस ने बिहार चुनाव को लेकर बिहार में भी वार रूम स्थापित किया है। लगभग 6 महीने से बिहार में वार रूम कार्य कर रहा है। इस बीच एक बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बिहार का दौरा कर चुके हैं।राहुल गांधी भी लगभग छह बार बिहार जा चुके हैं। क्या पार्टी हाई कमान ने कांग्रेस के वार रूम के माध्यम से बिहार में कांग्रेस को मजबूत कर विधानसभा का आगामी चुनाव लड़ने की योजना की गंभीरता से समीक्षा की। क्या हाई कमान ने जो कांग्रेस के रणनीतिकार दिल्ली से जाकर बिहार में कांग्रेस का वाररूम चला रहे हैं उनसे बुलाकर यह पूछा कि बिहार में 6 महीने में कांग्रेस के कितने और कहां-कहां सदस्य बनाए और मतदाता सूचियो में कांग्रेस के कितने पारंपरिक मतदाताओं का वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाया। कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूचियो से नहीं कटने दिया। वार रूम के नाम पर कांग्रेस का पैसा बर्बाद कर रहे रणनीतिकारों ने बिहार की मतदाता सूचियों की समीक्षा की और देखा कि कांग्रेस के कितने पारंपरिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में है या नहीं।
जब बिहार में कांग्रेस को केवल 50 सीटों पर ही विधानसभा का चुनाव लड़ना है तो फिर वार रूम बना कर पैसा क्यों बर्बाद कर रही है। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि कांग्रेस देश में संगठन सृजन अभियान चलाने से मजबूत होगी। विभिन्न राज्यों में चुनाव के वक्त वार रूम खोलने से कांग्रेस मजबूत नहीं होगी बल्कि कमजोर होगी। यह कमजोरी कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र हरियाणा और दिल्ली चुनाव हारने के बाद देखी है। मगर अफसोस इतने राज्यों में हारने के बाद भी राहुल गांधी ने वार रूम को लेकर शायद अभी तक गंभीर समीक्षा नहीं की है। कांग्रेस मोटी रकम खर्चने के बाद भी राज्यों में बुरी तरह से चुनाव क्यों हार रही है। वार रूम को चलाने वाले लोग कौन हैं और इनका उद्देश्य क्या है इस पर भी कभी गंभीर चिंतन और मंथन नहीं किया क्योंकि राज्यों में चुनाव के परिणाम तो वार रूम के चलते भी निराशाजनक ही आते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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