
-देवेंद्र यादव-

राहुल गांधी ने कांग्रेस को नए सिरे से मथने के लिए, उत्तर प्रदेश से संगठन सृजन अभियान की शुरुआत की थी, जो अब हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी शुरू हो गया है। राहुल गांधी कांग्रेस के जिला अध्यक्षों को मजबूत करना चाहते हैं, और इसके लिए निष्ठावान और जनता के बीच रसूखदार और पार्टी के प्रति वफादार कार्यकर्ताओं की खोज कर जिला अध्यक्ष नियुक्त करने का अभियान चलाया। मगर जिस राज्य उत्तर प्रदेश से राहुल गांधी ने यह महत्वपूर्ण अभियान चलाया था, उसी प्रदेश में संगठन सृजन अभियान के तहत खोज कर जिन जिला अध्यक्षों की नियुक्ति हुई, उस पर ही विवाद हो गया। इसका कारण ज्यादातर जिला अध्यक्ष वह बने जो लंबे समय से जिलों के जिला अध्यक्ष थे। उत्तर प्रदेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रायबरेली से राहुल गांधी लोकसभा सदस्य हैं और उत्तर प्रदेश गांधी परिवार का पारंपरिक राज्य है। अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट से गांधी परिवार के सदस्य सांसद बनते आ रहे हैं। सवाल यह है कि जिस उत्तर प्रदेश पर राहुल गांधी की सीधी नजर है क्या वहां संगठन सृजन का कार्य जिन लोगों को सौंपा वह लोग ईमानदारी और निष्ठा से अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। जिस प्रकार से जिला अध्यक्षों की नियुक्ति और उन पर विवाद हुआ है उससे लगता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के संगठन सृजन का कार्य संतोष जनक नहीं है। राहुल गांधी का मिशन हिस्सेदारी, को लेकर भी उत्तर प्रदेश के जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों को लेकर सवाल खड़े हुए। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में अगड़ी जाति के नेताओं का वर्चस्व ज्यादा नजर आया। इसको लेकर पिछड़ा वर्ग के कार्यकर्ता नाराज नजर आ रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को उत्तर प्रदेश में बड़ी कामयाबी ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के कारण मिली थी, इसलिए उत्तर प्रदेश का ओबीसी वर्ग चाहता है कि कांग्रेस में उनको उचित स्थान मिले।
मगर उत्तर प्रदेश में संगठन सृजन का कार्य शक्ल देखकर तिलक करने जैसा लग रहा है। जो कार्यकर्ता नेताओं के यहां परिक्रमा कर रहे हैं उनको ही महत्व दिया जा रहा है। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस हाई कमान खासकर राहुल गांधी इस महत्वपूर्ण अभियान की मॉनिटरिंग नहीं कर रहे हैं।
यदि मॉनिटरिंग होती तो उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा नहीं होता और ना ही ओबीसी वर्ग के कार्यकर्ताओं की नाराजगी सामने आती।
कांग्रेस हाई कमान को संगठन सृजन का अभियान चलाने से पहले, तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कार्य करना चाहिए। नंबर वन कांग्रेस हाई कमान को ऐसे नेताओं की लिस्ट बनानी चाहिए जो पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता और संगठन पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। कांग्रेस इसलिए कमजोर है क्योंकि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता कुंठित है। वह नेता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस की सत्ता और संगठन पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं वे ईमानदार निष्ठावान और वफादार कार्यकर्ताओं को आगे आने नहीं दे रहे हैं। कांग्रेस के संगठन सृजन का कार्य तब सफल होगा जब कुंडली मारकर बैठे नेताओं को सत्ता और संगठन से बाहर किया जाएगा। ईमानदारी और निष्ठा से कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी। कांग्रेस आज कमजोर नजर आ रही है उसकी वजह कांग्रेस का आम कार्यकर्ता नहीं है बल्कि उसकी वजह वह नेता है जो सत्ता और संगठन में कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। विगत एक दशक में जिन नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ा है यदि उन पर गौर किया जाए तो यह वह नेता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता और संगठन की मलाई खा रहे थे और जब कांग्रेस का बुरा वक्त आया तब वह नेता कांग्रेस छोड़कर सत्ताधारी दल में शामिल हो गए।
यदि कांग्रेस को मजबूत करना है और राहुल गांधी को अपने लिए नई टीम तैयार करनी है तो इसका विशेष ध्यान रखना होगा। जो नेता पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता और संगठन की मलाई खा रहे हैं उन नेताओं को या उनके परिवार के किसी भी सदस्य को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी से दूर रखना होगा। जब कांग्रेस का बुरा वक्त आता है तब सबसे पहले वही नेता कांग्रेस को छोड़कर सत्ताधारी दलों मैं शामिल होते हैं। कांग्रेस की कमजोरी की असल वजह यही है और समय रहते राहुल गांधी को इस कमजोरी को दूर करना होगा। कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है। ऐसे अनेक कार्यकर्ता मौजूद हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस हाई कमान ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का मौका आज तक नहीं दिया। राहुल गांधी को अपने मिशन कांग्रेस संगठन सृजन पर पैनी नजर रखनी होगी, क्योंकि कांग्रेस हाई कमान ने जिन नेताओं को इस अभियान की जिम्मेदारी दी है, वह नेता दूध के धुले हुए नहीं हैं। अधिकांश नेता वह है जो लंबे समय से सत्ता और संगठन में कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। जब नई टीम बनाने की बारी आएगी तब पदों की बंदर बांट होती हुई नजर आएगी यह नजारा उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के समय देखा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)