
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस हाई कमान का देश भर के अपने जिला अध्यक्षों के साथ मंथन किया जा रहा है। लेकिन क्या कांग्रेस यह भी मंथन कर रही है कि पार्टी के भीतर कौन वफादार है और कौन गद्दार है। क्योंकि राहुल गांधी कई बार यह कह चुके हैं कि कांग्रेस के भीतर भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की विचारधारा के लोगों का प्रवेश हो गया है इसलिए कांग्रेस कमजोर हो रही है। हमें ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें पार्टी से बाहर करना होगा। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या पार्टी हाई कमान राहुल गांधी के द्वारा व्यक्त की गई आशंका पर गंभीरता से विचार और मंथन कर रहा है। इसके लिए कांग्रेस को ना तो सर्वे कराने की जरूरत है और ना ही बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। कांग्रेस हाई कमान एक छोटा सा काम देश भर के कांग्रेस के जिला अध्यक्षों को सौंप दे। हाई कमान जिला अध्यक्षों को बोले कि वह अपने परिवार के केवल सो सदस्यों को कांग्रेस का सदस्य बनाएं। कांग्रेस हाई कमान इसकी पुष्टि के लिए जिले में जिला अध्यक्ष द्वारा बनाए गए नवनियुक्त सदस्यों की एक दिवसीय कार्यशाला हाई कमान के द्वारा भेजे गए प्रभारी के सामने लगाए। इस छोटे से कदम से पता चल जाएगा की हाई कमान ने जिस नेता को जिला अध्यक्ष बनाया है वह नेता कितना ताकतवर है और खानदानी कांग्रेसी है या नहीं। यह काम जिला अध्यक्ष तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि यह प्रयोग प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी पर भी लागू होना चाहिए। कांग्रेस हाई कमान को पता चल जाएगा कि जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर जो नेता कांग्रेस के भीतर बड़े-बड़े पद लेकर बैठे हैं वह कितने ताकतवर हैं और खानदानी कांग्रेसी हैं या नहीं।
कांग्रेस कमजोर इसलिए है क्योंकि खानदानी कांग्रेसी पीढ़ी दर पीढ़ी तन मन धन से कांग्रेस की सेवा करने के बावजूद सत्ता और संगठन में पद की उपेक्षा का शिकार होकर निराश और कुंठित होकर अपने घरों के भीतर बैठा हुआ है। कांग्रेस तभी मजबूत होगी जब पार्टी हाई कमान कांग्रेस के आम कार्य कर्ताओं से सीधे संवाद कर कार्यकर्ता की बात सुनेगा। जिला स्तर से लेकर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर वही नेता मौजूद हैं जिन्हें पद या तो अपने खानदान के रसूख से मिला है या सिफारिश से मिला है। कांग्रेस लगातार सत्ता में इसलिए रहती आई थी क्योंकि कांग्रेस के पास बेहतर चुनावी रणनीतिकार और चिंतक थे। लेकिन अब दोनों का ही अभाव है। उनकी जगह अब कांग्रेस में नए नवेले लोग शामिल हो गए हैं जिन्होंने थ्योरी पढी है लेकिन प्रैक्टिकल नहीं है। जबकि जरूरत प्रैक्टिकल होने की है।
कांग्रेस साइंस पढ़ाने के लिए आर्ट के टीचर को पहुंचा देती है। कांग्रेस का आईटी सेल इसी बीमारी का शिकार है। जिलों से लेकर प्रदेश स्तर पर आईटी सेल में कितने लोग हैं जो साइंस पढे हुए हैं। ज्यादातर दसवीं से लेकर स्नातक के वह छात्र हैं जिन्होंने साइंस कभी पढी ही नहीं।फिर कांग्रेस का आईटी सेल भाजपा के आईटी सेल से कैसे मुकाबला करेगा। जबकि कांग्रेस के पास जो वास्तव में खानदानी कांग्रेसी हैं उनके बच्चे आईटी और कंप्यूटर इंजीनियर हैं। लेकिन कांग्रेस हाई कमान उनका उपयोग नहीं कर रही है। वह भी कुंठित हैं। क्या कभी कांग्रेस हाई कमान ने यह सर्वे कराया है कि कांग्रेस परिवार के कितने लोग आईटी और कंप्यूटर इंजीनियर हैं जिनका हमें उपयोग करना चाहिए। जबकि कांग्रेस के खानदानी कार्यकर्ता जो आईटी के फील्ड में है वह भी कांग्रेस के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। मगर उनकी चिंता हाई कमान की नजर में आ नहीं रही है। उनकी अनदेखी हो रही है। कांग्रेस ने अरबों रूपया आईटी सेल, सर्वे और अन्य कामों में खर्च कर दिया। लेकिन हाई कमान अपने आईटी में पारंगत खानदानी कांग्रेसी छात्रों को पार्टी के भीतर काम नहीं दे पाई।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)