क्या बिहार में राहुल गांधी के बदलावों पर पानी फिर गया!

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राहुल गांधी के दौरों और बिहार कांग्रेस में किए बड़े बदलावों से लग रहा था कि पार्टी हाई कमान बिहार को लेकर गंभीर है। बिहार के विधानसभा चुनाव पर राहुल गांधी की सीधी नजर है। मगर कांग्रेस हाई कमान 4 मई की बैठक के पोस्टर को देखेगा तब उसे एहसास होगा की बिहार में कांग्रेस का और राहुल गांधी का कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है। क्या तेजस्वी यादव ने कांग्रेस हाई कमान को पोस्टर में केवल अपना फोटो लगाकर यह संदेश दिया है क्योंकि बिहार से पहले जिन राज्यों में भी विधानसभा के चुनाव हुए थे उन राज्यों में इंडिया घटक दलों के तमाम बड़े नेताओं के फोटो बैनर पर नजर आते थे।

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
देवेन्द्र यादव

क्या बिहार में इंडिया गठबंधन के नेता के नाम पर केवल राजद नेता तेजस्वी यादव हैं। इसकी तस्वीर 4 मई रविवार को उस समय देखने को मिली जब पटना में इंडिया गठबंधन के घटक दलों की तीसरी बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में इंडिया गठबंधन का जो बैनर लगा उसमें केवल तेजस्वी यादव की ही फोटो नजर आई। शेष घटक दलों के पार्टी सिंबल नजर आए। ऐसे में सवाल यह है कि क्या कांग्रेस सहित बाकी सभी दलों ने तेजस्वी यादव को बिहार में इंडिया घटक दल का नेता स्वीकार कर लिया है। क्या तेजस्वी यादव बिहार में अकेले ऐसे नेता है जो भाजपा नीत सरकार को 2025 के विधानसभा चुनाव में हरा कर बाहर कर देंगे। जबकि इंडिया गठबंधन की तीसरी बैठक का आयोजन यह संदेश देने के लिए हुआ था कि गठबंधन के दल और नेता एक जुट हैं और बिहार में भाजपा नीत सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर संघर्ष करेंगे। मगर बैठक के बैनर पर एकमात्र फोटो इशारा कर रहा है कि बिहार में इंडिया गठबंधन के नाम पर आरजेडी एकमात्र पार्टी है और तेजस्वी यादव एकमात्र नेता हैं बाकी सब पार्टी और नेता राजद और तेजस्वी यादव के पिछलग्गू हैं। इसी साल के प्रारंभ में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने लगातार तीन दौरे कर बिहार कांग्रेस में तीन बड़े बदलाव किए थे। राहुल गांधी के दौरों और बिहार कांग्रेस में किए बड़े बदलावों से लग रहा था कि पार्टी हाई कमान बिहार को लेकर गंभीर है। बिहार के विधानसभा चुनाव पर राहुल गांधी की सीधी नजर है। मगर कांग्रेस हाई कमान 4 मई की बैठक के पोस्टर को देखेगा तब उसे एहसास होगा की बिहार में कांग्रेस का और राहुल गांधी का कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है। क्या तेजस्वी यादव ने कांग्रेस हाई कमान को पोस्टर में केवल अपना फोटो लगाकर यह संदेश दिया है क्योंकि बिहार से पहले जिन राज्यों में भी विधानसभा के चुनाव हुए थे उन राज्यों में इंडिया घटक दलों के तमाम बड़े नेताओं के फोटो बैनर पर नजर आते थे। इससे इंडिया गठबंधन की एकजुटता की झलक नजर आती थी। इंडिया घटक दल की तीसरी महत्वपूर्ण बैठक के बैनर पर केवल तेजस्वी यादव की फोटो क्या यह भी बता रही है कि जाति जनगणना का असर बिहार में इंडिया गठबंधन के भीतर दिखाई देने लगा है। क्योंकि जैसे ही केंद्र सरकार ने देश में जाति जनगणना करने की घोषणा की उसके बाद बिहार में लालू प्रसाद यादव का वह भाषण सोशल मीडिया पर तैरने लगा जिसमें उन्होंने जाति जनगणना की मांग की थी।
जबकि जाति जनगणना की घोषणा को लेकर कांग्रेस जश्न मना रही है और बता रही है कि राहुल गांधी जाति जनगणना की मांग संसद से लेकर सड़क तक लगातार कर रहे थे। उसी का परिणाम है कि केंद्र की भाजपा सरकार को राहुल गांधी की मांग के आगे झुकना पड़ा और देश में जाति जनगणना की घोषणा की। बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की अभी घोषणा भी नहीं हुई है ऐसे में क्या बिहार में अभी से जाति जनगणना का असर दिखाई देने लगा है। इंडिया घटक दल की बैठक के बैनर पर किसी भी घटक दल के नेताओं का फोटो नहीं होना और अकेले तेजस्वी यादव का फोटो होना क्या संदेश देगा और इसका असर इंडिया गठबंधन की एकता पर और विधानसभा चुनाव 2025 पर क्या पड़ेगा। यह तो समय बताएगा लेकिन अक्सर में लिखता हूं कांग्रेस हाई कमान ट्रैक पर से अचानक क्यों उतर जाता है। कांग्रेस हाई कमान अपने लिए ठोस राजनीतिक रणनीति बनाने में कंफ्यूज क्यों रहती है। यदि बिहार में कांग्रेस को यही दिन देखने थे तो फिर कांग्रेस ने बिहार कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभारी मोहन प्रकाश को बदलकर कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को हटाकर राजेश राम को बनाने की क्या जरूरत थी। क्यों कन्हैया कुमार ने अपने पैरों को कष्ट देकर पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा निकाली। अक्सर देखा गया है कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए मजबूत रणनीति बनाने में असफल हो जाते हैं इसकी वजह कांग्रेस के रणनीतिकारों की ढुलमुल नीति है और इसी के कारण कांग्रेस को राज्य में बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है और कांग्रेस राज्यों की सत्ता में वापसी नहीं कर पा रही है बल्कि राज्य दर राज्य कांग्रेस खत्म हो रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

 

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