
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस बेलगावी में आज शुरू हो रहे दो दिवसीय नव सत्याग्रह अधिवेशन से नई उर्जा के साथ जय बापू ,जय भीम, जय संविधान को लेकर जनता के बीच जाएगी। इस अधिवेशन की थीम के मायने से लगता है कि क्या कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का पता चल गया है। क्या कांग्रेस को लगता है कि भाजपा बाबा साहेब अंबेडकर को भी राजनीतिक विवाद में लाना चाहती है जैसा कि उसने महात्मा गांधी और नेहरू के नाम को लेकर किया था। भाजपा ने खासकर नेहरू के नाम को लेकर ज्यादा आक्रामक रूख अख्तियार किया। भारतीय जनता पार्टी के नेता अक्सर सड़क से लेकर संसद तक नेहरू की आलोचना करते हुए देखे जा सकते हैं। उसी संसद से भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता और गृहमंत्री अमित शाह का अंबेडकर को लेकर दिए गए बयान से बवाल खडा हो गया। इस बयान के बाद देश में चर्चा बापू और नेहरू पर नहीं होकर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर पर होने लगी।
देश में चर्चा इस बात को लेकर भी होती है कि गांधी ने नेहरू की जगह सरदार पटेल को देश का पहला प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया। यदि इस पर गंभीर विश्लेषण करें तो, यहां भी राजनीति नजर आएगी क्योंकि महात्मा गांधी और सरदार पटेल दोनों गुजरात से थे और दोनों का आजादी के आंदोलन में अपना अपना महत्व और योगदान है। भारतीय जनता पार्टी के नेता लंबे समय से यह बात करते रहते हैं कि सरदार पटेल को नेहरू की जगह प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया। गुजरात में सरकार ने सरदार पटेल की विशालकाय मूर्ति लगाकर संदेश दिया कि सरदार पटेल कितने बड़े महान स्वतंत्रता सेनानी थे। पटेल के बाद अब भाजपा की नजर शायद बाबा साहब भीमराव अंबेडकर पर पड़ी है। अमित शाह के बयान के बाद जब कांग्रेस ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के अपमान का मुद्दा जोर-जोर से उठाना शुरू किया तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कांग्रेस और नेहरू पर बाबा साहब को लेकर आरोप लगाने शुरू कर दिए। सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी ने जानबूझकर देश के सामने बाबा साहब अंबेडकर का नाम उछाला है। शायद इसीलिए कांग्रेस ने जय बापू जय भीम और जय संविधान के नारे को जन-जन तक पहुंचाने का प्लान किया है।
कांग्रेस समझ रही है की भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत का अपना सपना पूरा तभी कर सकती है जब वह लोगों के जेहन से गांधी और नेहरू का नाम मिटा दे। मगर भाजपा को शायद विश्वास नहीं था कि राहुल गांधी सहित सभी कांग्रेस के नेता नीले वस्त्र धारण कर बाबा साहब अंबेडकर के अपमान का बदला लेने सड़कों पर उतर आएंगे, और इस मुद्दे को आम जनता तक ले जाएंगे। कांग्रेस अपने इस मिशन में प्रारंभिक रूप से सफल भी दिखाई दे रही है। यही वजह है कि राजनीतिक परिदृश्य से शांत बैठी मायावती भी बाबा साहब के मुद्दे को लेकर खड़ी हो गई। मगर देखने वाली बात यह है कि मायावती भाजपा और कांग्रेस दोनों को बाबा साहब के नाम पर राजनीतिक रूप से घेर रही हैं। मायावती का यह बर्ताव अंबेडकरवादी दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अंबेडकर के मुद्दे पर कांग्रेस की आलोचना क्यों कर रही हैं जबकि बाबा साहब अंबेडकर के मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं ने ही उठाया था। कांग्रेस के कारण ही यह मुद्दा जन जन तक पहुंचा है। यही नहीं राहुल गांधी के खिलाफ तो भारतीय जनता पार्टी के सांसदों ने मुकदमा भी दर्ज कर दिया है।
सवाल यह है कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों को जय बापू, जय भीम और जय अंबेडकर के नारे को जनता के बीच ले जाकर कामयाब नहीं होने देगी ?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)