
-देवेंद्र यादव-

हाडोती संभाग में कांग्रेस कमजोर नहीं है। कोटा के कार्यकर्ताओं ने 31 मई शनिवार के दिन यह बता दिया। कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली में उमड़े जन सैलाब ने उन नेताओं जो हाडोती संभाग से दूर बैठकर उन स्थानीय नेताओं पर भरोसा करते हैं जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने के कारण जिलों में कांग्रेस कमजोर है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे जिलों और प्रदेश में पदों पर कुंडली मारकर बेटे नेताओं के बीच चोली दामन का साथ है। नेताओं की अतिमहत्वाकांक्षा के कारण कांग्रेस राजस्थान में भाजपा के सामने कमजोर नजर आती है। कांग्रेस में जिला और प्रदेश में पद उन नेताओं को मिलते हैं जो राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। पार्टी हाई कमान को भ्रम में रखते हैं और हाई कमान भी उनके भ्रम जाल में फंस कर कांग्रेस का बड़ा नुकसान कर बैठता है। 31 मई को हाडोती के लाल शांति धारीवाल की गैर मौजूदगी में कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली आयोजित हुई। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह देखने योग्य था। पहली बार शांति धारीवाल की गैर मौजूदगी में कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में इतना बड़ा जन सैलाब देखने को मिला। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली की जुबान से निकला कि संविधान बचाओ रैली का आयोजन पूरे प्रदेश में चल रहा है लेकिन इस आयोजन को लेकर जो उत्साह और भीड़ कोटा में नजर आई वैसा प्रदेश के किसी भी जिले में नजर नहीं आया।
फोटो सोशल मीडियायदि कार्यकर्ताओं में उत्साह और भीड़ की बात करें तो, इसमें सबसे बड़ा योगदान कोटा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे प्रहलाद गुंजल का है जिन्होंने बहुत कम समय में कोटा ही नहीं बल्कि पूरे हाडोती संभाग की कांग्रेस में जान डाल दी। ऐसे बहुत कम नेता होते हैं जो चुनाव हारने के बाद अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं। प्रहलाद गुंजल उन नेताओं में से एक हैं जो चुनाव हारने के बाद अपने लोकसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। यही वजह है कि 31 मई को लंबे समय बाद कोटा की धरती पर कांग्रेस का ऐतिहासिक आयोजन हुआ।
संविधान बचाओ रैली में प्रहलाद गुंजल ने ओजस्वी भाषण देकर न केवल जनता का दिल जीता बल्कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भी प्रभावित किया। उन्होंने यह भ्रम भी तोड़ा की हाडोती संभाग में पूर्व मंत्री शांति कुमार धारीवाल ही कांग्रेस को जिंदा रखे हुए हैं। कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली के आयोजन में उमड़े जन सेलाब और शांति कुमार धारीवाल की अनुपस्थिति के बाद डोटासरा और जूली का भ्रम शायद टूट गया होगा कि कोटा में धारीवाल के बगैर भी कांग्रेस को जिंदा रखने वाले ईमानदार और मजबूत नेता और भी हैं। वह बात अलग है कि प्रदेशस्तरीय के नेता ऐसों को हल्के में लेने की भूल करते हैं।प्रदेश में गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली की जोड़ी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए मेहनत कर रही है। मगर सवाल यह है कि क्या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अन्य बड़े नेता गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली की जोड़ी का ईमानदारी से साथ दे रहे हैं। यह सवाल इसलिए है क्योंकि कोटा में आयोजित संविधान बचाओ रैली में धारीवाल नजर नहीं आए। जबकि धारीवाल को कोटा ही नहीं पूरे हाडोती संभाग में कांग्रेस के आयोजनों में प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के साथ रहना चाहिए।
सवाल यह है कि हाडोती संभाग में कांग्रेस के भीतर उत्साह भी है और जज्बा भी है लेकिन चुनाव में पार्टी क्यों कमजोर दिखाई देती है। इसकी वजह हाडोती संभाग के वह स्वयंभू नेता है जो वर्षों से कार्यकर्ताओं के द्वारा जगरा लगाया जाता है लेकिन जगरे से बाटी निकालकर स्वयंभू नेता खा जाते हैं। यदि कोटा और झालावाड़ संसदीय क्षेत्र की बात करें तो कोटा में शांति धारीवाल और झालावाड़ संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस पर प्रमोद जैन का कब्जा है। यह आरोप कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस का आम कार्यर्ता ही लगाता है। इन दोनों नेताओं से दोनों ही जगह के ईमानदार और वफादार आम कार्यकर्ता पीड़ित और नाराज हैं। कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण ही प्रमोद जैन लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाए। पीड़ा का कारण यह है कि यह दोनों ही नेता गुटों की राजनीति कर कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। कोटा से ज्यादा स्थिति झालावाड़ संसदीय क्षेत्र की खराब है। प्रमोद जैन बारां जिले के रहने वाले हैं मगर उनका राजनीतिक दखल बारां से ज्यादा झालावाड़ में है। उनके इस दखल के चलते झालावाड़ का आम कार्यकर्ता कुंठित है, इसीलिए झालावाड़ में लगातार कांग्रेस हार रही है। झालावाड़ जिले में बाहरी नेताओं के दखल ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं को मजबूती के साथ आगे बढ़ने ही नहीं दिया।
लेकिन ताज्जुब तो यह है कि प्रदेश के कांग्रेस के छत्रप को इन नेताओं के अलावा और कोई कार्यकर्ता नजर ही नहीं आता है। इसकी भी वजह है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश स्तरीय नेताओं की खुद की राजनीतिक जमीन मजबूत नहीं है। बरसों से कुंडली मारकर बैठे नेताओं ने जिलों से लेकर प्रदेश में अपना मजबूत गठबंधन बना रखा है। जब वक्त आता है तब जिला और प्रदेश के यह स्वयंभू नेता एकजुट हो जाते हैं, और संगठन में पद और विधानसभा चुनाव में आपस में टिकटों का बटवारा कर लेते हैं। आम कार्यकर्ता हाथ मलता रह जाता है। यह नजारा आने वाले दिनों में होने वाले अंता विधानसभा के उपचुनाव में देखने को मिल सकता है। कैसे जिला और प्रदेश के नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को मिलकर मजबूत करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)