बिहार में जिन्हें हल्दी की गांठ सौंपी क्या बन पाएंगे पंसारी!

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फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

हल्दी की गांठ मिल जाने से पंसारी नहीं बन जाते। यह कहावत कांग्रेस के उन नेताओं पर सटीक बैठती हैं जिनको राजनीतिक हैसियत नहीं होने के बावजूद कम समय में बड़ा पद मिल जाता है।
बिहार से कांग्रेस को लेकर जो खबर आ रही है, उससे लगता है हल्दी की गांठ ने बिहार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी कृष्ण अल्लावरू को पंसारी बना दिया। कांग्रेस हाई कमान ने बिहार में अकेले अल्लावारु को ही हल्दी की गांठ हाथ में थमाकर पंसारी नहीं बनाया है बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और कन्हैया कुमार को भी पंसारी बनाया। इस कारण बिहार में बरसों से जमे कांग्रेस के पंसारी, खामोश होकर बैठ गए और इंतजार करने लगे की कांग्रेस हाई कमान ने जिन नेताओं के हाथ में हल्दी की गांठ दी है वह नेता बिहार में हल्दी बेच पाते हैं या नहीं।
बिहार कांग्रेस को लेकर जिस प्रकार की खबरें आ रही है उससे लगता है कि, कांग्रेस के नवसृजीत नेताओं के लिए बगैर कांग्रेस के स्थाई पंसारियों के सहयोग के पंसारी बनना आसान नहीं है।
बिहार में कांग्रेस दशकों से सत्ता से बाहर है। कांग्रेस बिहार की सत्ता में वापसी कैसे करें इसके लिए दिल्ली से बिहार अपने मजबूत और राजनीति के अनुभवी नेताओं को प्रभारी बनाकर भेजा। जब अनुभवी योग्य और पुराने कांग्रेसी नेता भी सफल नहीं हो पाए तो पार्टी हाई कमान ने बिहार का राष्ट्रीय प्रभारी चुनावी साल में एक ऐसे व्यक्ति को बनाया जो कभी कांग्रेस का ब्लॉक अध्यक्ष भी नहीं रहा। उसे सीधे कांग्रेस ने बिहार कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया। बिहार ऐसा राज्य है जहां देश की राजनीति के धुरंधर राजनीतिज्ञ मौजूद हैं। जिनके हाथों में बिहार और देश की सत्ता की चाबी रही है। उस राज्य की सत्ता में वापसी करने के लिए कांग्रेस ने बिजनेस से राजनीति में कदम रखने वाले युवा को प्रभारी बनाया। जिस राज्य में कांग्रेस के अनुभवी और योग्य नेता सफल नहीं हो पाए उस राज्य में चुनाव के समय युवा को प्रभारी बनाकर क्या संदेश दिया या फिर कांग्रेस ने बिहार में सेल्फ गोल कर लिया। यह तो आने वाला समय बताएगा जब राज्य के विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी तथा मतदान होगा और परिणाम आएगा। यदि कांग्रेस मजबूत रणनीति के तहत बिहार को लेकर गंभीर रणनीति बनाती तो कांग्रेस की स्थिति बेहतर समझी जा रही थी। राहुल गांधी को 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम को ध्यान में रखते हुए 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनानी चाहिए थी। कांग्रेस और राहुल गांधी के पास तेजस्वी यादव की राजनीतिक काट के लिए पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव और राज्यसभा सांसद रंजीता रंजन थी जिन्हें लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद से ही बिहार कांग्रेस के भीतर बड़ी जिम्मेदारी देनी चाहिए थी। मगर कांग्रेस और राहुल गांधी शायद भ्रम में रहे या चूक गए। दोनों में से एक को भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। यदि राहुल गांधी ने जरा भी हिम्मत दिखाई होती तो कांग्रेस को आज अगल-बगल नहीं देखना पड़ता।
अब कांग्रेस की बिहार में ऐसी स्थिति जाएं तो जाएं कहां जैसी स्थिति है। कांग्रेस और राहुल गांधी को समझने वाला बिहार में अभी भी एक मजबूत नेता है जो कांग्रेस की इज्जत और साख को बचा सकता है। वह नेता है पप्पू यादव। हालांकि अब बहुत देर हो चुकी है लेकिन पप्पू यादव अभी भी स्थिति को संभालने की दम रखते हैं। कांग्रेस को झारखंड के अल्पसंख्यक नेता झारखंड सरकार में स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी को बिहार चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी देनी चाहिए बिहार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की नजर पसमांदा मुस्लिम मतदाताओं पर अधिक होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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