
-देवेंद्र यादव-

होली का रंग पूरी तरह से उतरने के बाद बिहार में आने वाले दिनों में 2025 के विधानसभा चुनाव का रंग चढ़ता नजर आएगा। बिहार विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल ठीक वैसे ही नजर आएंगे जैसे होली के त्योहार पर आमजन विभिन्न प्रकार के रंगों से होली खेलते हैं और एक दूसरे पर रंगों की बौछार करते हैं। बिहार में बहुत सारे राजनीतिक दल हैं जो चुनाव में घोषणाएं और गारंटियों की बौछार करते हुए दिखाई देंगे। किस राजनीतिक पार्टी का रंग मतदाताओं पर चढ़ेगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन होली की तरह बिहार विधानसभा चुनाव में भी धूम देखने को मिलेगी।
बिहार में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अलावा अनेक क्षेत्रीय दल भी हैं जो ज्यादातर जातीय समीकरण पर बने हुए हैं। लंबे समय से बिहार की सत्ता पर क्षेत्रीय दलों का ही शासन है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी बिहार में क्षेत्रीय दलों पर निर्भर हैं। देखना यह है कि क्या 2025 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों की निर्भरता क्षेत्रीय दलों पर कायम रहेगी या फिर कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी और भारतीय जनता पार्टी पहली बार बिहार में अपनी दम पर सरकार बनाएगी। यह तो तब पता चलेगा जब बिहार के विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी और चुनाव के परिणाम आएंगे। जहां बिहार में कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को वापस पाने के प्रयासों में जुटी हुई है, वहीं भारतीय जनता पार्टी अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों का लक्ष्य एक ही है कैसे भी बिहार की सत्ता में आए। मगर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के सामने एक ही प्रकार की राजनीतिक मजबूरी है और वह मजबूरी है राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड।
लगभग चार दशक पहले इन दलों ने कांग्रेस को बिहार की सत्ता से बाहर किया था और लालू प्रसाद यादव ने अपनी सरकार बनाई थी। तब से लेकर अब तक बिहार की सत्ता पर लालू और नीतीश कुमार की पार्टियों का बारी-बारी से शासन रहा। बिहार में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए और अपनी पार्टियों का प्रभाव बरकरार रखने के लिए दोनों ही पार्टियों ने बिहार विधानसभा चुनाव में मिलकर भी चुनाव लड़ा और अपनी पार्टी की सरकार बनाई।
2025 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक नजरिए से महत्वपूर्ण है क्योंकि जदयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव बुजुर्ग हो गए हैं और शायद उनका यह अंतिम विधानसभा चुनाव है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद की कमान उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने संभाल ली है और पहली बार बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार का लगभग आगमन हो चुका है। मगर सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव और निशांत कुमार लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीतिक धरोहर को सुरक्षित रख पाएंगे या दोनों बड़े नेताओं की विरासत खत्म हो जाएगी। इस पर सबकी नजर है।
अभी बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार बिहार की अपनी राजनीतिक विरासत को कायम रखने और विरासत को अपने-अपने पुत्रों के हवाले करने से पहले एकजुट होकर अपने पुत्रों के हाथ में बिहार की मजबूत विरासत को देंगे। क्या दोनों नेता एक बार फिर से मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे क्योंकि दोनों ही नेताओं के सामने अपनी विरासत को जिंदा रखने का बड़ा सवाल है। दोनों ही नेताओं के पुत्र 2025 के विधानसभा चुनाव में नजर आएंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा होगा कि क्या तेजस्वी यादव और निशांत कुमार लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को बिहार में मजबूत रख पाएंगे।