
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ का अभियान देशभर मैं चलाया था। कांग्रेस का यह अभियान आज भी जारी है, लेकिन कांग्रेस को अपने इस अभियान का राजनीतिक आंकलन कर लेना चाहिए। यह आंकलन करना होगा कि क्या इस अभियान से कांग्रेस को राजनीतिक फायदा हो रहा है। यदि कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार अपने इस अभियान का राजनीतिक आंकलन 2024 के लोकसभा चुनाव से करते हैं तो इस अभियान का फायदा, अकेले कांग्रेस को जितना मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला। इस अभियान के राजनीतिक फायदे का इंडिया गठबंधन के बीच बंटवारा हो गया। इस अभियान का इंडिया घटक दलों में बंटवारा हुआ तो उसके नेता यह मानने को तैयार नहीं है कि लोकसभा में इंडिया गठबंधन को जो सीट मिली वह कांग्रेस के संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ अभियान या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से देश भर में भाजपा के खिलाफ जो माहौल बना था उसका परिणाम था। यही वजह है कि इंडिया घटक दल के नेता अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को आंख दिखा रहे हैं और कांग्रेस को कमजोर बता रहे हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकारों और हाई कमान को महाराष्ट्र से समझना होगा। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मजबूती के साथ अपना अभियान नहीं चलाया तो महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने की संभावनाओं के बावजूद इंडिया गठबंधन विधानसभा का चुनाव हार गया। यदि हरियाणा की बात करें तो यहां कांग्रेस अपने नेताओं की मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर उमडी महत्वाकांक्षा के कारण चुनाव हारी।
यदि कांग्रेस को संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान का राजनीतिक विश्लेषण करना है तो, बिहार विधानसभा का चुनाव एक बड़ा अवसर है। कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़कर संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान का ठीक से राजनीतिक विश्लेषण कर सकती है। बिहार में पता लग सकता है कि यह अभियान कांग्रेस को राजनीतिक रूप से फायदा पहुंचा रहा है या नहीं। बिहार चुनाव में कांग्रेस को ठीक से यह भी पता लग जाएगा की उसका पारंपरिक मतदाता दलित, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम वर्ग वापस कांग्रेस में आया या नहीं।
बिहार में कांग्रेस को यदि राजद और लालू प्रसाद यादव का डर है तो, उस डर की भरपाई करने के लिए कांग्रेस के पास पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव मौजूद हैं जो यादव ओबीसी इबीसी और गरीब दलित मतदाताओं की भरपाई करने में सक्षम है। कांग्रेस को बिहार चुनाव में यह आकलन करने का भी अवसर है कि क्या राजद से समझौता करने के बाद कांग्रेस को राजद का वोट मिल भी रहा है या नहीं। यदि कांग्रेस को राजद का वोट मिलता तो 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 29 से 19 पर नहीं आती और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस तीन लोकसभा सीट से ज्यादा जीतती। यही स्थिति उत्तर प्रदेश की थी। यदि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का वोट कांग्रेस में ट्रांसफर होता तो कांग्रेस को 6 से अधिक लोकसभा सीट जीतने को मिलती। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अभियान के कारण उसका पारंपरिक मतदाता समाजवादी पार्टी की तरफ ट्रांसफर हुआ और समाजवादी पार्टी को 30 से अधिक सीट जीतने का अवसर मिला। यदि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बराबर बराबर सीटों पर भी चुनाव लड़ती तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लोकसभा सीटों की संख्या भी समाजवादी पार्टी की तरह नजर आती। कुल मिलाकर कांग्रेस को 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार विधानसभा चुनाव में यह आंकलन कर लेना चाहिए कि उसके संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान से कांग्रेस को राजनीतिक फायदा हो रहा है या नहीं। 28 अप्रैल को राजस्थान की राजधानी जयपुर में कांग्रेस का संविधान बचाओ सम्मेलन है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी निरंतर संविधान बचाओ अभियान को देशभर में चला रहे हैं। जनता को संविधान के प्रति जागरूक कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस हाई कमान यह आकलन नहीं कर रही है कि अपने इस अभियान से कांग्रेस को राजनीतिक फायदा मिल रहा है या नहीं। इसका आंकलन ठीक से बिहार विधानसभा चुनाव से किया जा सकता है। यदि कांग्रेस बिहार में अपने दम पर चुनाव लड़े तब।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)