
-देवेंद्र यादव-

हम गांधी हैं हमारे हौसले फौलादी हैं। कांग्रेस और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों महात्मा गांधी और उनकी नीतियों को खूब याद करते हुए बता रहे हैं कि हम डरते नहीं हैं। महात्मा गांधी ने आजादी के लिए करो या मरो का नारा दिया था। क्या राहुल गांधी भी कांग्रेस संगठन को मजबूत कर सत्ता में वापसी करने के लिए महात्मा गांधी के इस नारे की तरफ कदम बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी समझ रहे हैं कि अब स्थिति करो या मरो वाली है। क्योंकि संगठन में बड़ा बदलाव करना जरूरी है, और यह तब होगा जब राहुल गांधी महात्मा गांधी के करो या मरो के सिद्धांत पर काम करेंगे। इसके लिए रिस्क तो लेनी ही पड़ेगी, क्योंकि 2029 को गुजरने में अधिक वक्त नहीं है। इससे पहले राहुल गांधी को अपने पार्टी के संगठन को मजबूत करना होगा और यह तभी मजबूत होगा जब प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पीढ़ी दर पीढ़ी कुंडली मारकर बेटे नेताओं को दरकिनार किया जाएगा। तभी कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत होगा। यदि कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर रहा तो कांग्रेस भी कमजोर रहेगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि यदि जीना है तो लड़ना होगा।
राहुल गांधी की पहली लड़ाई तो संगठन के भीतर मौजूद स्लीपर सेल से है। राहुल गांधी शायद इसलिए स्लीपर सेल के सामने कठोर कदम नहीं उठा रहे हैं क्योंकि संगठन के पास पैसा नहीं है। पैसा संगठन में कुंडली मारकर बैठे नेताओं के पास है। शायद इसीलिए यह राहुल गांधी की मजबूरी है कि वह जानते हुए भी कुंडली मारकर बैठे नेताओं को दरकिनार नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए सवाल यह है कि अब वक्त है महात्मा गांधी के उस नारे पर चलने का करो या मरो। जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता अपनी जेब का पैसा खर्च कर चुनाव में पार्टी की सफलता के लिए कार्य करता है। पैसों की दरकार कार्यकर्ताओं को नहीं बल्कि कांग्रेस के नेताओं को अधिक होती है। यदि उन्हें पैसा नहीं मिले तो वह अपने घर में जाकर बैठ जाते हैं। चुनावी मैदान में संघर्ष कांग्रेस के लिए आम कार्यकर्ता करता हुआ दिखाई देता है। नेता तो अपने प्रत्याशी को काटने में लगा रहता है। राहुल गांधी इसे समझ कर संगठन में बदलाव करने का कठोर फैसला लें तो कांग्रेस अपने आप मजबूत हो जाएगी। हालांकि राहुल गांधी ने बिहार में बड़ा प्रयोग कर दिया है नतीजा क्या होगा इंतजार करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैंं। यह लेखक के निजी विचार हैं)