
-देवेंद्र यादव-

राहुल गांधी की वोटर का अधिकार यात्रा, उनकी भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तरह, जनता के बीच लोकप्रिय होती नजर आ रही है। मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या, वोटर का अधिकार यात्रा बिहार में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को होने वाले लाभ पहुंचाएगी। क्या कांग्रेस कार्यकर्ताओं में, बिहार फतेह के लिए उत्साह बना रहेगा, क्योंकि देखा गया है कांग्रेस ऐसी टीम की तरह है, जो बड़े मैचों में खेल का शानदार प्रदर्शन करती है, सेमी फाइनल और फाइनल तक पहुंच भी जाती है मगर टूर्नामेंट नहीं जीत पाती।
राहुल गांधी ने स्वयं कहा है कि मुझे आश्चर्य होता है, मेरी सभाओं और रोड शो में जनता का जनसैलाब उमड़ता है, और जन समर्थन मिलता है मगर जब वोट पड़ते हैं और नतीजे आते हैं, तो कांग्रेस चुनाव हार जाती है। ऐसा क्यों! इस सवाल का स्वयं राहुल गांधी को जवाब खोजना होगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने, 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीट जीती लेकिन फाइनल यानी सरकार बनाने लायक नहीं रहे। भारतीय जनता पार्टी ने 240 लोकसभा सीट जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बना ली। यही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के विधानसभा चुनाव जीते। दरअसल राहुल गांधी अभी तक उस कमजोरी को ना तो समझ और न ही पकड़ पाए समाधान की तो बात करना तो दूर की बात है।

मैंने कई बार लिखा है कि राहुल गांधी को ट्रैक से कौन उतारता है। क्यों राहुल गांधी अचानक रास्ता भटक जाते हैं। वह अच्छे खासे रास्ते को छोड़कर, नए रास्ते की खोज में निकल पड़ते हैं। बिहार की बात करें तो, कांग्रेस को मजबूत करने के लिए राहुल गांधी ने स्वयं कमान अपने हाथ में ली और तीन बड़े बदलाव किए। उन्होंने इस दौरान सात बार बिहार का दौरा किया। बिहार में एस आई आर के खिलाफ चक्का जाम का नेतृत्व भी किया। इस बीच राहुल गांधी ने बिहार में पलायन रोको रोजगार दो, पद यात्रा का भी शुभारंभ किया। जिसका नेतृत्व छात्र नेता कन्हैया कुमार ने किया और पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने बड़ा सहयोग किया। बिहार के युवाओं के बीच पप्पू यादव की लोकप्रियता के कारण और कन्हैया कुमार की मेहनत ने कांग्रेस की पलायन रोको रोजगार दो यात्रा सफल होती नजर आ रही थी। मगर इस यात्रा में ब्रेक लगा और अचानक यात्रा को विराम दे दिया। पलायन रोको रोजगार यात्रा की सफलता से प्रेरित होकर कांग्रेस ने बिहार में रोजगार मेला लगाया। बेरोजगार युवकों ने बड़ी संख्या में रोजगार पाने के लिए फॉर्म भरे। कांग्रेस के द्वारा लगाए गए रोजगार मेले का बिहार के युवाओं में उत्साह और उम्मीद की किरण देखने को मिली और लग रहा था कि राहुल गांधी पलायन रोको रोजगार दो पार्ट 2 यात्रा का स्वयं नेतृत्व करेंगे। लेकिन अचानक मतदाता सूचियों में धांधली का मुद्दा आन खड़ा हुआ और पलायन रोको रोजगार दो के मुद्दे से भटक कर, वोटर के अधिकार यात्रा पर निकल पड़े। बिहार में स्वयंभू रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को असल मुद्दों से भटका कर, भाजपा के जाल में फंसा दिया। भाजपा के रणनीतिकार यही तो चाहते हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस स्थिर न रहे। वह भटकती और कंफ्यूज रहे। मतदाता सूचियों को लेकर 7 अगस्त को राहुल गांधी ने जो बम फोड़ा था। इसका असर, भाजपा पर पड़ता नजर आ रहा था, क्योंकि चुनाव में धांधली को लेकर, विपक्ष के राजनीतिक दल और कई संगठन आवाज उठा रहे थे। यह आवाज भी सुनाई दे रही थी कि विपक्ष खासकर कांग्रेस वोट धांधली को लेकर सड़क पर उतरकर जनता के बीच जाए। इसकी शुरुआत राहुल गांधी ने बिहार से की। जहां वह वोटर का अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं। लेकिन बिहार में पलायन रोको और रोजगार दो उतना ही महत्वपूर्ण है जितना महत्वपूर्ण वोट है। मतदाता सूचिय़ों से बड़ी संख्या में वोट उन मतदाताओं के कटते हुए सुनाई दे रहे हैं जो बिहार से पलायन कर जाते हैं। जो बिहार का बेरोजगार युवा बाहर रोजगार ढूंढ रहा है उन लोगों के मतदाता सूचियों से नाम कटने के समाचार सुनाई दे रहे हैं।
कांग्रेस बिहार में पलायन रोको रोजगार दो के मुद्दे से भटके नहीं बल्कि अंत तक कायम रहे। राहुल गांधी बिहार में वोटर का अधिकार यात्रा भी निकाले लेकिन अपनी पूर्व की पलायन रोको रोजगार दो यात्रा को भी जारी रखे। राहुल गांधी ने कभी यह महसूस किया कि जो लोग बुरे वक्त में उनका और कांग्रेस का साथ दे रहे हैं उन पत्रकारों और लोगों से मिले हैं या मिलने का प्रयास किया है। नहीं किया तो उन्हें मिलने से कौन रोक रहा है यह राहुल गांधी को समझना होगा। उनमें से कितने पत्रकारों को राहुल गांधी की मीडिया सेल बिहार मे लेकर गई है। इसका पता राहुल गांधी को लगाना होगा और समाधान करना होगा। अपनी स्वयंभू मीडिया विभाग को समझना होगा कि उनका इरादा क्या है। क्या राहुल गांधी को भटकाने का है या राहुल गांधी और कांग्रेस को मजबूत करने का है। इस सवाल में ही राहुल गांधी के उस बयान का उत्तर छिपा हुआ है, जो सवाल राहुल गांधी के जैहन में है कि उनकी जनसभाओं और रोड शो में भीड़ नजर तो आती है मगर कांग्रेस जीत क्यों नहीं पाती है। उनका मीडिया विभाग या तो कमजोर है या फिर वह केवल अपना राजनीतिक स्वार्थ साधकर अलग हो जाता है। वह जनसभाओं और रोड शो की भीड़ को वोटो में तब्दील नहीं कर पाता है, क्योंकि उसकी जिम्मेदारी वह तब तक समझता है जब तक राहुल गांधी सड़क पर नजर आते हैं। उसके बाद वह प्रयास ही नहीं करता है कि राहुल की बात आम जनता तक स्थाई रूप से बनी रहे। क्या ऐसा ही नजारा बिहार में भी एक सितंबर के बाद देखने को मिलेगा जब राहुल गांधी अपनी यात्रा को समाप्त कर लौटेंगे।
देवेंद्र यादव,कोटा राजस्थान, मोबाइल नंबर-9829678916
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)