
ग़ज़ल
-डॉ. रामावतार सागर

जब कभी मौका मिला उस पार हो जाएंगे वो
देखते ही देखते सरकार हो जाएंगे वो
हम मददगारों से कोई चाह रखते ही नहीं
रोटियां देकर दो कल अख़बार हो जाएंगे वो
भीड़ से बच के निकल जाना कहीं मुमकिन नहीं
देखते ही हमको दो के चार हो जाएंगे वो
ये सियासतदान तो करते रहेंगे गुफ्तगू
और बस जनता के खिदमतगार हो जाएंगे वो
होंसला रखना तू अपने बाजुओं पर यार बस
देखना तूफान में पतवार हो जाएंगे वो
है बड़ा मुश्किल तरीका जीत जाने का हुनर
हार जाना उनसे खुद ही हार हो जाएंगे वो
यार सागर तुम भरोसा करते हो ईमान पर
लूट कर जब बैंक सारे पार हो जाएंगे वो
डॉ. रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान