कर्नाटक में झटकों के बीच संभलने की तैयारी में कांग्रेस

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पार्टी में फिलहाल दो राजनीतिक धाराएं बह रही हैं, और वह एक होंगी या नहीं यह फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में शिवकुमार के इस बयान से पार्टी में सियासी घमासान मचने के आसार हैं। पार्टी आलाकमान कर्नाटक में किसी प्रकार का सियासी टकराव नहीं चाहती। वह हर प्रभावशाली समाज के करीब पहुंचने की कोशिश कर रही है।

-चंद्रप्पा को बनाया पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष

-द ओपिनियन-

बेंगरुलु। दक्षिण भारत में लगातार सियासी झटकों के बीच कांग्रेस को कर्नाटक में सत्ता में वापसी की उम्मीद है। पार्टी अपनी चुनावी रणनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों को खास महत्व दे रही है। यह अभी तक घोषित उसके प्रत्याशियों की सूची से साफ हो जाती है। इस बीच पार्टी ने अपने पारम्परिक वोट बैंक रहे अनुसूचित जाति के लोगों को फिर से पार्टी के साथ एकजुट करने के लिए पहल की है। उसने बीएन चंद्रप्पा को कर्नाटक कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। विधानसभा चुनाव से महज एक महीने पहले चंद्ररप्पा को जिम्मेदारी दी गई। चंद्रप्पा अनुसूचित जाति से हैं। इसलिए इसके पीछे का राजनीतिक संदेश भी साफ है कि पार्टी की नजर अनुसूचित जाति के वोटों पर है। पार्टी अल्पसंख्यकों से पहले ही चार प्रतिशत आरक्षण बहाली का वादा कर चुकी है। लगता कांग्रेस इस बार चुनावों से पहले पूरी सोशल इंजीनियरिंगक कर लेना चाहती है। वह अपने स्तर पर कोई कमी नहीं रखना चाहती है। हां जमीीन स्तर पर पार्टी के दो वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया व डीके शिवकुमार कितनी एकजुटता पेश कर पाते हैं इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। कांग्रेस पूरी ऐहतियात के साथ राज्य में कदम बढाना चाहती है। इसलिए कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने चंद्रप्पा को तत्काल प्रभाव से कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने की घोषणा की है। चंद्रप्पा की नियुक्ति की घोषणा प्रदेश कांग्रेस के एक अन्य कार्यकारी अध्यक्ष आर ध्रुवनारायण के पिछले महीने हुए निधन के बाद की गई है। आर ध्रुवनारायण दलित समाज से आते थे और चंद्रप्पा भी अनुसूचित जाति के हैं। प्रदेश में 5 कार्यकारी अध्यक्ष हैं। कांग्रेस यहां राज्य में हर बड़े वोट बैंक को अपने से जोड़े रखने की रणनीति पर चल रही है। कर्नाटक में एससी वोट 17 फीसदी माने जाते हैं, लेकिन वह लिंगायत व वोक्कालिगा की तरह राजनीतिक व सामजिक वर्चस्व में आगे नहीं है। हालांकि उनकी सीटें तय हैं जहा इस समुदाय के लोगों का जीतना तय है। क्योंकि उनके लिए सीटें आरक्षित है। इसलिए अनुसचित वोटों अपनी ओर आकर्षित करने की होड मची है। कांग्रेस के राष्टीय अध्यक्ष खरगे भी अनुसचित जाति से आते हैं। इसलिए चंद्रप्पा की नियुक्तिय को काफीी अहम माना जाता है।

साउथ में पार्टी को लग चुके तीन बडे झटक
पिछले तीन चार दिनों में कांग्रेस के साथ दशकों से जुड़े परिवारों के सदस्यों ने पार्टी से दूरी बना ली। इनमें केरल में एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी, तमिलनाडु में सी राजगोपालचारी के प्रपोत्र केशवन और अविभक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी शामिल है। इन नेताओं का जाना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि ये परिवार कांग्रेस के साथ पीढियों से जुड़े थे।
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जारी रह सकती है अंदरूनी खींचतान
इस बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष् शिवकुमार का यह कहना कि यदि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद दिया जाता है तो वह खरगे के साथ काम करने को तैयार हैं। यानी संकेत साफ हैं कि चुनावों के बाद सिद्धरमैया मुख्यमंत्री बने तो जरूरी नहीं वह उन्हें सहज स्वीकार हों। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पार्टी में फिलहाल दो राजनीतिक धाराएं बह रही हैं, और वह एक होंगी या नहीं यह फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में शिवकुमार के इस बयान से पार्टी में सियासी घमासान मचने के आसार हैं। पार्टी आलाकमान कर्नाटक में किसी प्रकार का सियासी टकराव नहीं चाहती। वह हर प्रभावशाली समाज के करीब पहुंचने की कोशिश कर रही है।

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