
-देवेंद्र यादव-

भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार चुनाव से पहले कांग्रेस को अपने जाल में फंसाते है, यह तो सब जानते हैं, मगर हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने जाल में फंसाया। ऐसा यह पहली बार देखा गया।
किसी भी राज्य के चुनाव से पहले, चुनावी वाले राज्य में ऐसा माहौल भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों द्वारा बनाया जाता है मानो भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार रही है। जनता भाजपा की सत्ता के खिलाफ है। इस जाल में कांग्रेस के स्थानीय नेता फंसकर अपने आप को भावी मुख्यमंत्री समझने की भूल कर बैठते हैं। वे इससे अपना और कांग्रेस का नुकसान कर बैठते हैं।
हरियाणा चुनाव में तो भाजपा ने कांग्रेस को अपने जाल में फसाने के लिए बड़ा ही तगड़ा जाल बुना जिसे कांग्रेस के नेता और उसके रणनीतिकार अंत तक समझ ही नहीं पाए बल्कि चुनाव हारने के बाद भी नहीं समझ पा रहे हैं।
हरियाणा चुनाव से पहले राजनीतिक गलियारों में और मीडिया में यह चर्चा जोरों पर होने लगी की भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वयंसेवक संघ की पसंद का होगा और इसके लिए ऐसे नाम सामने आए जिनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 36 का आंकड़ा रहा है। चर्चा तो यहां तक सुनाई दी कि हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव में यदि बीजेपी हारी तो आरएसएस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदलकर अन्य किसी को प्रधानमंत्री बनवा सकती है। राजनीतिक गलियारों और मीडिया के भीतर मोदी के विकल्प के रूप में नाम भी तैरने लगे।
आरएसएस की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराजगी की चर्चा इतनी तेजी से सुनाई दे रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे आरएसएस के स्वयंसेवक हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव में काम नहीं करेंगे। इसी मुगालते में हरियाणा के कांग्रेस के छत्रप अपने आप को हरियाणा का भावी मुख्यमंत्री समझने लगे और मुंह फुला कर बैठ गए। वही स्वयंसेवक भारतीय जनता पार्टी के प्रति वफादारी और ईमानदारी के साथ अपना काम करते रहे। नतीजा यह निकला कि हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाकर हैट्रिक पूरी की। हरियाणा चुनाव में कांग्रेस के नेता तो इस बात को लेकर खुश हो रहे थे कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर चुनावी सभा नहीं कर रहे हैं जबकि खट्टर भाजपा कार्यकर्ताओं और आरएसएस के स्वयंसेवकों की बैठक ले रहे थे। खट्टर की बैठको का भी भाजपा की जीत में बहुत बड़ा योगदान रहा है।
मजेदार बात तो यह रही कि कांग्रेस के जिन नेताओं की बदौलत कांग्रेस हरियाणा का चुनाव हारी अब वही रणनीतिकार कांग्रेस हाई कमान को समझा रहे हैं कि हरियाणा में कांग्रेस गलत लोगों को टिकट बांटने के कारण नहीं हारी और ना ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चले विवाद के कारण हारी बल्कि कांग्रेस ईवीएम मशीनों में घोटाले के कारण हारी। सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जिन नेताओं के कारण कांग्रेस हारी उन नेताओं कि इस बात पर भरोसा कर लेंगे कि कांग्रेस ईवीएमं के कारण हारी। तो फिर कांग्रेस को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के सामने किसी भी चुनाव में टिक नहीं पाएगी। सवाल तो यह भी है कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को सब कुछ पता होने के बावजूद वह कांग्रेस को कमजोर करने वाले नेताओं के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक क्यों नहीं कर पा रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)