
-देवेंद्र यादव-

राजनीतिक गलियारों और मीडिया में दो दिन से हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट पर चर्चा हो रही थी, लेकिन 12 अगस्त को अचानक लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय के किसी भी समय पूछताछ की आशंका और अटकलों का बाजार गर्म हो गया। अटकलें तो यहां तक होने लगी है कि क्या इस बार राहुल गांधी जेल में डाला जाएगा।
राहुल गांधी ने गत दिनों अपने वायानाड दौरे के समय यह बयान देकर सभी को चौंका दिया था कि किसी भी समय प्रवर्तन निदेशालय उनके घर पर दबिश दे सकता है। राहुल गांधी के इस बयान के बाद देश देश की राजनीति गरमा गई थी। राहुल गांधी के बयान के बाद इंडिया गठबंधन के नेता एकजुट नजर आए तो वही भाजपा के नेता इसे राहुल गांधी का सपना बता कर मजाक उड़ाने लगे। लेकिन एक बार फिर से चर्चा ने जोर पकड़ लिया, और सवाल उठने लगा कि क्या इस बार प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी को जेल भेज देगा।
राहुल गांधी से जून 2022 में प्रवर्तन निदेशालय ने चार दौर की पूछताछ की। उनसे ं करीब 40 घंटे तक सवाल-जवाब किए थे। इस पूछताछ के दरमियान कांग्रेस का जो कार्यकर्ता अपने घरों में कुंठित होकर बैठा था वही कार्यकर्ता अपने नेता राहुल गांधी के लिए न्याय दिलाने के लिए एकजुट होकर सड़कों पर आ गया, और कार्यकर्ताओं की यही एक जड़ता राहुल गांधी की सबसे बड़ी ताकत बनी, और राहुल गांधी 7 सितंबर 2022 के दिन कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की करीब 3570 किलोमीटर की अपनी यात्रा को राहुल गांधी ने 145 दिनों में पूरा किया। ऐतिहासिक यात्रा की सफलता के बाद जब राहुल गांधी अपने घर पहुंचे तो, 23 मार्च 2023 के दिन राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता निरस्त कर दी गई और उनका दिल्ली स्थित सरकारी बंगला भी खाली करवा लिया गया। राहुल गांधी 14 जनवरी 2024 के दिन मणिपुर से मुंबई की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल पड़े। राहुल गांधी की न्याय यात्रा भी सफल रही। इसकी सफलता का असर इंडिया गठबंधन और 2024 के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट देखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 240 सीटों पर सिमट कर रह गई उसे सरकार बनाने के लिए बैसाखियों का सहारा लेना पड़ा। राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ राहुल गांधी के राजनीतिक कैरियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था। इसे इस बात से समझना होगा कि वह प्रवचन निदेशालय की पूछताछ से पहले इस बात से परेशान और निराश थे कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता राहुल गांधी को ब्लेम कर कांग्रेस छोड़कर भाजपा के हो रहे थे मगर जैसे ही राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ शुरू की कांग्रेस का आम कार्यकर्ता अपने घरों से निकलकर राहुल गांधी को ताकत देने के लिए सड़कों पर निकल पड़ा। परिणाम यह हुआ कि राहुल गांधी कांग्रेस के बब्बर शेरों के दम पर लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 99 सीट जितवाने मैं सफल हुए और एक दशक बाद लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बना। राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता की कमान संभाली।
अब सवाल उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी पर राजनीतिक शिकंजा कसकर पुराने इतिहास को दोहराना चाहती है। यदि प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी पर शिकंजा कसता है तो इससे राहुल गांधी की लोकप्रियता देश में कम नहीं होगी बल्कि और अधिक बढ़ेगी।
राहुल गांधी द्वारा वायनाड से दिए बयान के बाद राजनीतिक गलियारों और मीडिया में यह भी चर्चा होने लगी थी कि राहुल गांधी को इसकी भनक कैसे लगी, अब चर्चा फिर से होने लगी की प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी पर किसी भी समय शिकंजा कस सकता है। इसके बाद चर्चा यह सुनाई देने लगी की एक बार फिर से राहुल गांधी की बात सत्य साबित होने जा रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि राहुल गांधी को इसकी भनक कैसे लगी। क्या देश की ब्यूरोक्रेसी राहुल गांधी के संपर्क में है। राहुल गांधी को सूचना मिलने की वजह यह भी हो सकती है कि ब्यूरोक्रेसी सत्ता के चक्रव्यूह से निकलना चाहती है और उन्हें निकालने वाला नेता केवल राहुल गांधी है। शायद इसीलिए राहुल गांधी ने 18वीं लोकसभा के मानसून सत्र में भाजपा के चक्रव्यूह की बात की थी। उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी लोगों को अपने चक्रव्यूह में फंसा कर मारती है, लेकिन लोगों को भारतीय जनता पार्टी के चक्रव्यूह से कांग्रेस और इंडिया गठबंधन सुरक्षित निकलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)