क्षेत्रीय दलों से पहुंच रहा है कांग्रेस को नुकसान!

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राहुल गांधी अभी समझ ही नहीं पा रहे हैं कि कांग्रेस को भाजपा राज्यों में कमजोर नहीं कर रही है बल्कि कांग्रेस को नुकसान इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय दलों के कारण अधिक हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार इसे अच्छे से समझते हैं। जम्मू कश्मीर और झारखंड में भले ही इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय घटक दल अपनी सरकार बना लें मगर कांग्रेस ताकतवर नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस के साथ जो हरियाणा और जम्मू कश्मीर में हुआ ठीक वैसा ही महाराष्ट्र और झारखंड में भी हुआ। इसे कांग्रेस और राहुल गांधी को समझना होगा।

-देवेंद्र यादव-

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-देवेंद्र यादव-

हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों ने भी इंडिया गठबंधन और विपक्ष के नेताओं को चौकाया है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने प्रेस के सामने आकर कहा कि हम महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों को स्वीकार नहीं करेंगे। सवाल खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस और उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव जीते अपने प्रत्याशियों को विधायक पद की शपथ नहीं लेने देंगे और महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के विरोध में सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे।
महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव नतीजे से एक दिन पहले मैंने अपने ब्लॉग में लिखा था कि क्या महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने जा रही है। क्योंकि 2014 के बाद जब भी बड़े चुनाव हुए उसमें कांग्रेस और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक जाल में फंसता हुआ दिखाई दिया। खासकर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जितने भी राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए तब कांग्रेस भाजपा के जाल में फंसती नजर आई। कांग्रेस के नेता अदानी पर प्रहार करते रहे और भारतीय जनता पार्टी राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत कर अपनी सरकार बनाती रही। महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम आने से ठीक पहले भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राजनीतिक हमला किया और सवाल खड़ा किया कि क्या मोदी अदानी को गिरफ्तार करेंगे। राहुल गांधी अदानी की गिरफ्तारी की मांग करते रहे और उधर महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज कर ली।
एक बड़ा सवाल क्या राहुल गांधी को इतनी अधिक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी चाहिए। क्या राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेंस करने से कांग्रेस को चुनाव में फायदा मिल रहा है और यदि फायदा नहीं मिल रहा है तो फिर राहुल गांधी को इतनी अधिक प्रेस कांफ्रेंस करने का मतलब क्या है। राहुल गांधी के बार-बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से उनकी छवि राजनीतिक नेता के रूप में नहीं बल्कि एक प्रेस कांफ्रेंस करने वाले नेता के रूप में अधिक दिखाई देने लगी है जिसका फायदा भाजपा उठा रही है। यह बात ना तो राहुल गांधी को अभी समझ आ रही है और ना ही कांग्रेस के नेताओं समझ आ रही है। कांग्रेस के स्वयंभू नेता और रणनीतिकार धीरे-धीरे राहुल गांधी की छवि देश के बड़े नेता के रूप में नहीं बनाकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस वाले नेता के रूप में अधिक बना रहे हैं। राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेंस करने से कांग्रेस को चुनाव में फायदा नहीं मिल रहा है। इसे राहुल गांधी को ही सबसे पहले समझना होगा कि उन्हें कांग्रेस के स्वयंभू नेता क्यों बरगला रहे हैं और प्रेस कांफ्रेंस करवा रहे हैं। यदि राहुल गांधी को ही यह सब करना है तो कांग्रेस के बाकी स्वयंभू नेताओं का फिर काम क्या है। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनाव में एक है तो सेफ हैं, के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राजनीतिक हमले करते हुए प्रेस के सामने प्रतीक के तौर पर तिजोरी दिखाई। महाराष्ट्र की जनता ने विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तिजोरी को वोटो से भर दिया और कांग्रेस की तिजोरी खाली कर दी। राहुल गांधी शायद अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके पास मजबूत चुनावी रणनीतिकार नहीं बचे हैं और जो हैं, वह अपनी स्वयं की हैसियत को बरकरार रखने के लिए केवल बरगलाते रहते हैं। राहुल गांधी को भाजपा अपने जाल में नहीं फसाती है बल्कि राहुल गांधी को कांग्रेस के स्वयंभू चुनावी रणनीतिकार भाजपा के जाल में फंसवाते हैं।
यदि हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम लगभग एक जैसे नजर आएंगे।
भाजपा ने हरियाणा और जम्मू कश्मीर से कांग्रेस को बाहर कर दिया। ठीक वैसे ही महाराष्ट्र और झारखंड में भी कांग्रेस को भाजपा ने एक तरह से बाहर कर दिया। कहने को तो जम्मू कश्मीर में कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस सरकार के साथ खड़ी है मगर उसकी राजनीतिक हैसियत क्या है यह कांग्रेस ही जानती है। ऐसा ही खेल कांग्रेस के साथ झारखंड में भी दिखाई दे रहा है।
राहुल गांधी अभी समझ ही नहीं पा रहे हैं कि कांग्रेस को भाजपा राज्यों में कमजोर नहीं कर रही है बल्कि कांग्रेस को नुकसान इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय दलों के कारण अधिक हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार इसे अच्छे से समझते हैं। जम्मू कश्मीर और झारखंड में भले ही इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय घटक दल अपनी सरकार बना लें मगर कांग्रेस ताकतवर नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस के साथ जो हरियाणा और जम्मू कश्मीर में हुआ ठीक वैसा ही महाराष्ट्र और झारखंड में भी हुआ। इसे कांग्रेस और राहुल गांधी को समझना होगा। झारखंड में कांग्रेस को 15 विधानसभा सीट मिली हैं। उसमें बड़ा योगदान कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर है।साथ में बिहार के पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव की बड़ी भूमिका है। पप्पू यादव बिहार के अलावा झारखंड में भी गरीबों के बीच लोकप्रिय नेता और समाजसेवी हैं। झारखंड चुनाव में पप्पू यादव की सक्रियता का बड़ा फायदा कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिला।
कांग्रेस और राहुल गांधी को आने वाले बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए बड़ी जिम्मेदारी अभी से पूर्णिया से सांसद राजीव रंजन उर्फ पप्पू यादव और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव झारखंड प्रभारी गुलाम मीर के हाथों में दे देनी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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