
-औद्योगिक इलाकों में मजदूरों को विश्वास में ले रहे हैं तमिलनाडु पुलिस
-विष्णुदेव मंडल-

(बिहार मूल के चेन्नई निवासी स्वतंत्र पत्रकार)
चेन्नई। तमिलनाडु सरकार और पुलिस प्रवासी उत्तर भारतीय मजदूरों पर हमले की अफवाहों पर विराम लगाने के लिए सक्रिय हो चुके हैं। तमिलनाडु पुलिस महानगर के कई औद्योगिक इलाकों में जाकर मजदुरो को यह विश्वास दिलाते नजर आई कि मजदूर बिना किसी से डरे काम जारी रखें। सरकार और पुलिस उनके सुरक्षा के लिए बिल्कुल कटिबद्ध है, उन्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। मजदूरों को हेल्पलाइन नंबर भी मुहैया कराया गया है कि कतिपय स्थानीय लोग उनको डराने की चेष्टा करें तो वह पुलिस को खबर करें! पुलिस अधिकारियों ने कारखाने मालिकों को भी आगाह किया कि वह अपने कामगारों को सुरक्षा की जिम्मेदारी लें वरना पुलिस उन पर भी कार्रवाई करेगी!
उल्लेखनीय है कि बिहारी मजदूरों पर हमले की अफवाह सर्वाधिक बिहार में फैलाई गई। बिहार के राजनीति में इस मुद्दे को इस कदर उछाला गया है कि तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों को बिहारी होने के कारण मारा जा रहा है।
विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से यह मांग रखी थी कि सच्चाई जानने के लिए बिहार से प्रतिनिधिमडल तमिलनाडु भेजा जाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इसे गंभीरता से लिया और विपक्ष की मांग मानते हुए शनिवार शाम को बिहार से चार सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल चेन्नई पहुंच चुका है। इसमें तमिलनाडु मूल के आईएएस, और आईपीएस अधिकारी को शामिल किया गया। डी बालमुरगन ग्रामीण विकास सचिव बिहार, एवं पी कन्नन पुलिस महानिरीक्षक (सीआईडी) एवं श्रम आयुक्त आलोक कुमार एवं पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार इस मामले को लेकर तमिलनाडु के श्रम विभाग के अधिकारियों से मिले और सच्चाई जानने कि कोशिश में लगे हैं। इसी कड़ी में बिहार के प्रतिनिधिमंडल रविवार को कोयंबतूर और त्रिपुर में प्रवासी बिहारी मजदूरों से मिलेंगे।
झूठी खबर फैलाने वाले अखबार के संपादक और नेताओं पर होगी कार्रवाई
बतादें कि तमिलनाडु के डीजीपी सी शैलेन्द्र बाबू ने उत्तर भारत के उन अखबार के संपादकों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी दी है जिन्होंने तमिलनाडु राज्य में उत्तर भारतीय बिहारी मजदूरों पर हमले की फेक वीडियो और खबर चलाई है। उन्होंने दावा किया कि बिहार के अखबारों में या सोशल साइट पर वीडियो चलाई गई है वह बिल्कुल फेक और असत्य है। यह तमिलनाडु सरकार को बदनाम करने वाली है इसलिए उन संपादक और न्यूज़ एजेंसी पर कार्रवाई होगी जिन्होंने बिना तथ्य जाने इस खबर को प्रमुखता से प्रसारित किया। उन्होंने कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लोगों को आगाह किया कि कोई व्यक्ति बिना जांच परख कर झूठी खबर प्रसारित और प्रकाशित करेंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने पत्रकारों और मीडिया हाउस को चेताया
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी प्रवासी मजदूरों को भरोसा दिलाया कि वह हमारे अतिथि हैं, वह हमारे कामकाज के हिस्सा है, हमारी प्रगति में उनका भी अहम योगदान है ऐसी स्थिति में उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।
उन्होंने मीडिया को चेताया कि बिना तथ्य को जांचे परखे सोशल मीडिया पर या फिर पत्र-पत्रिकाओं के जरिए अफवाह फैलाना बहुत ही चिंताजनक बात है। कुछ लोग देश की एकता और अखंडता में बाधा पहुंचा रहे हैं। वह नहीं चाहते कि मुल्क में एकता बनी रहे, इसलिए समय समय पर समाज को तोड़ने वाली साजिश रचने के प्रयास में लगे रहते हैं। जिससे सावधान होने की जरूरत है!
यहाँ उल्लेखनीय है कि तिरुपूर रेलवे स्टेशन का रेलवे ट्रैक पार करते हुए एक बिहारी मजदूर की मौत हो चुकी थी, जिसे लोगों ने प्रचारित किया गया कि स्थानीय लोगों ने उसकी हत्या की है। जबकि सीसीटीवी कैमरा फुटेज देखने से पता चला कि मजदूर की मौत रेलवे लाइन क्रॉस करते समय ट्रेन के चपेट में आने से हुई।
चेन्नई में बिहार एसोसिएशन के अधिकारी भी शामिल
बिहार से आए प्रतिनिधिमंडल के साथ चेन्नई में बिहार एसोसिएशन के अधिकारी भी शामिल हुए एसोसिएशन के प्रतिनिधि मुकेश ठाकुर ने बताया कि जब से इस घटना के वीडियो वायरल हुआ है तब से अब तक वह इस अपवाह के बारे में बिहारी मजदूरों को आगाह कर रहे हैं, फिर भी मजदूरों में डर बना हुआ है। उन्होंने बताया कि जिस तरह तमिलनाडु पुलिस सतर्कता बरत रही है उससे यह उम्मीद की जानी चाहिए की प्रवासी मजदूरों में पुलिस और स्थानीय लोगों के प्रति विश्वास बढ़ेगा। गौरतलब है कि तमिलनाडु में लाखों की संख्या में देहाड़ी मजदूर काम कर रहे हैं, यहाँ चल रही टैक्सटाइल मिल्स, रोलिंग मिल, मेट्रो स्टेशन, जैन एज निर्माण नेशनल हाईवे के निर्माण एवं अन्य निजी अपार्टमेंट के निर्माण में भी प्रवासी मजदूरों का अहम योगदान है। कई फैक्ट्रियां प्रवासी मजदूरों की बदौलत ही चल रही हैं ऐसे में यदि बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और झारखंड आदि राज्यों के मजदूरों के साथ भेदभाव बरता जाएगा तो प्रवासी मजदूर वापस चले जाएंगे जिनका खामियाजा राज्य सरकार को भुगतना पड़ेगा।

















