
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अपने 72 वें जन्म दिन के अवसर पर तमिलनाडु के मतदाताओं एवं राजनितिक पार्टियों से जन्मदिन के गिफ्ट के तौर पर इंपोज हिंदी के खिलाफ एक साथ खड़े होने की मांग की।
बहरहाल तमिलनाडु के शहरों व गलियों चौक चौराहे, सड़कों के किनारे दीवारें हिंदी के खिलाफ स्लोगन से पटी हैं। हालांकि # इंपोज हिंदी के खिलाफ पोस्टर वार में सिर्फ सत्ताधारी डीएमके अकेली पार्टी शामिल है। अन्य दलों के नेता व कार्यकर्ता हिंदी के खिलाफ मुखर नहीं हुए हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आगामी 5 मार्च को विधानसभा में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने एआईएडीएमके नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री एडापाडी पलनीस्वामी के उस बयान का स्वागत किया है जिसमें उन्होंने सर्वदलीय बैठक में शामिल होने की बात कही है। पीएमसके प्रमुख एस रामदास ने पहले ही सर्वदलीय बैठक में शामिल होने की हामी भर दी है।
अपने जन्म दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री स्टालिन ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा की हम हिंदी के खिलाफ अकेले लड़ रहे हैं जबकि हिंदी थोपने के खिलाफ सभी पार्टियों को एक साथ आने की जरूरत है। उन्होंने तमिलनाडु भाजपा इकाई को भी हिंदी के खिलाफ एक मंच पर आने की सलाह दी। मुख्यमंत्री का कहना था कि तमिलनाडु दो भाषीय नीति से हिंदुस्तान में शीर्ष पर खड़ा है। तमिलनाडु को तीसरी भाषा की जरूरत ही क्या है? लेकिन आरएसएस के एजेंडा पर चल रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार जबरन हम पर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के नाम पर हिंदी थोपने पर आमादा है। शिक्षा पर खर्च होने वाली हमारी धनराशि को रोका गया है। हमारे शिक्षकों और शिक्षण संस्थाओं का वेतन भुगतान रोकने का प्रयास चल रहा है, लेकिन हम झुकने वाले नहीं है। केंद्र सरकार एआईएडीएमके को तो झुका सकती है लेकिन डीएमके को कदापि नहीं।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा की शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं नेशनल एजुकेशन पॉलिसी इज मस्ट, लेकिन हमारे संविधान कहता है स्टेट मस्ट।
वहीं तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने तमिलनाडु सरकार के दो भाषा नीति का विरोध किया है। राज्यपाल का कहना है की दो भाषा नीति दक्षिण जिलों के युवाओं को अवसर से वंचित करने वाली है। केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजना एवं नीति का लाभ भाषा के अभाव में तमिलनाडु के युवा वंचित रह जाते हैं। राज्यपाल ने आरोप लगाया कि दक्षिण के जिलों में तिरुनेलवेली तूतीकोड आदि इलाकों में एमएसएमई के तहत चलाई जा रही योजनाओं का लाभ भाषा के कमी के कारण युवाओं और महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है लेकिन सरकार के हिंदी के विरोध के कारण युवा भटकाव के दौर से गुजर रहे हैं।
अलबत्ता इंतजार है आगामी 5 मार्च को होने वाली सर्व दलीय बैठक का, जिसमें यह तय हो पाएगा कि आखिर तमिलनाडु के राजनीति के में हिंदी अपनाने और थोपने का अगला कदम क्या होगा?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)