दिल्ली चुनाव ‘इंडिया’ के लिये महत्वपूर्ण

election

#सर्वमित्रा_सुरजन

मंगलवार को निर्वाचन आयोग ने दिल्ली विधानसभा के चुनावी कार्यक्रम की जो तारीखें घोषित की हैं, उसके अनुसार इसकी सभी 70 सीटों के लिये 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 को नतीजे आएंगे। सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी को अपनी सरकार बचाने की चुनौती तो है, यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी से कहीं अधिक विपक्षी गठबन्धन इंडिया के लिहाज से महत्वपूर्ण है। देश की राजधानी में यह विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करेगा। पिछले दोनों या यूं कहें कि तीनों चुनावों में जिस तरह से आप ने सफलताएं अर्जित की थीं और उसकी ताकत में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई, उसके चलते कई संकटों के बावजूद आप मजबूती से चुनाव की धुरी बनी हुई है। वह भाजपा के साथ कांग्रेस को भी एक समान चुनौतियां पेश कर रही है। भाजपा के पास खोने को यहां बहुत कुछ नहीं है लेकिन असली दुविधा कांग्रेस के सामने है जिसे यहां अपना खाता तो खोलना ही है, भविष्य में इंडिया के इस महत्वपूर्ण घटक के साथ सम्बन्धों को बनाये रखने की भी चुनौती है जिसका वह नेतृत्व करती है। लोकसभा चुनाव चाहे खत्म हो गया हो परन्तु एक शक्तिशाली प्रतिपक्षी गठबन्धन जो ठोस स्वरूप ले चुका है वह कैसे बरकरार रहे- यह चिंता भी कांग्रेस को करनी है।
जन लोकपाल आंदोलन की कोख से जन्मी आप ने अपने पहले ही चुनाव में बड़ी कामयाबी हासिल की थी। उसे 28 सीटें मिली थीं तथा कांग्रेस के सहयोग से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री तो बने थे परन्तु पर्याप्त बहुमत के अभाव में वे लोकपाल बिल पास नहीं करा पाये थे जिसका उन्होंने वादा किया था। 49 दिन की सरकार चलाने के बाद केजरीवाल ने फरवरी 2014 में इस्तीफा दे दिया था। उसके अगले साल हुए चुनाव में पार्टी को 70 में 67 सीटें मिली थीं। 2020 में भी उसे जबर्दस्त कामयाबी मिली थी, बावजूद इसके कि इस बार उसकी विधायक संख्या 62 रही। यह अवधि उसके लिये बड़े संकटों की रही क्योंकि इसी दौरान भाजपा के ‘ऑपरेशन लोटस’ के रडार पर वह सतत रही। कथित शराब घोटाले के आरोप में उसके एक मंत्री सत्येन्द्र जैन, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और खुद केजरीवाल गिरफ्तार होकर लम्बे समय तक जेलों में रहे। दिल्ली के उप राज्यपाल ने राज्य के काम-काज में केन्द्र सरकार के इशारे पर कदम-कदम पर अवरोध पैदा किये। उसकी शक्ति घटा दी गयी। सीमित शक्तियों व संसाधनों के बावजूद आप ने जो काम किये उसके चलते निम्न वर्ग अब भी उसका वोट बैंक बना हुआ है जिसके बल पर आप अगली बार फिर से सरकार बनाने का भरोसा रखती है।
आप के जो भी नेता जेलों में थे, वे बेशक जमानत पाकर बाहर आ गये हों परन्तु भाजपा ने चुनाव प्रचार के लिये भ्रष्टाचार को अपना प्रमुख हथियार बनाया हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए पार्टी का नाम तोड़-मरोड़कर ‘आप-दा’ कहने का जुमला गढ़ा और पार्टी को बेहद भ्रष्टाचारी दल बताया। हालांकि उन्हें पता है कि भाजपा जिस दल का मुकाबला कर रही है उसका मुख्य मुद्दा विकास है, जिसमें शिक्षा, पानी, बिजली, सड़क आदि की प्रमुखता है। इसलिये मोदी यह भी कह रहे हैं कि ‘भाजपा की सरकार बनी तो दिल्ली विश्वस्तरीय राजधानी बनेगी।’ दूसरी ओर आप ने विकास को मुद्दा बनाये रखा है।
पिछले और इस चुनाव के बीच अनेक घटनाक्रम हुए हैं, जिनका सम्बन्ध आप से है। पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित करने के उद्देश्य से आप ने दशक भर में अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े किये जिसके कारण भाजपा को कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को हराने में मदद मिली। इसलिये उस पर ‘भाजपा की बी-टीम’ होने का ठप्पा लगा। उसने इस ठप्पे को मिटाने की कोशिश तो नहीं की लेकिन जब भाजपा ने उनके नेताओं को जेल भेजना शुरू किया तो वह दबाव में आई और लोकसभा चुनाव के पहले वह इंडिया गठबन्धन का एक घटक बन गया, बावजूद इसके कि वह राज्यों में कांग्रेस से अलग होकर ही लड़ता रहा। पंजाब में उसे सफलता भी मिली। वह विपक्षी दलों में कांग्रेस के अलावा अकेली ऐसी पार्टी है जिसकी दो राज्यों में सरकारें हैं। कई राज्यों में कम या ज्यादा संख्या में उसके सदस्य विधानसभाओं में निर्वाचित होकर बैठे हैं। फिर, इस चुनाव में भी उसकी स्थिति इसलिये मजबूत मानी जा रही है क्योंकि पिछले दो चुनावों में मिली बड़ी जीतों का फायदा संभवत: उसे मिले, लेकिन एंटी इनकम्बेंसी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस या भाजपा को पहले आप की विधायक संख्या के बड़े अंतर को पाटना होगा। लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा दिल्ली की सरकार आप के हाथों से छीन सकती है क्या, ये सवाल इस समय तेज हो रहा है। वहीं जिस तरह शीशमहल बनाम राजमहल की लड़ाई में आप और भाजपा उलझ रहे हैं, क्या उसमें कांग्रेस को फायदा हो जाएगा, इस पर भी सबकी निगाहें हैं।
यदि यह मानकर चलें कि आप कम या ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में लौटती है,, तो इसका असर कांग्रेस के साथ उसके सम्बन्धों पर पड़ेगा। केजरीवाल इसके बाद गठबन्धन की उतनी चिंता नहीं करेंगे जैसा कि वे उन पर आये संकटों के दौरान किया करते थे। उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा फिर से उड़ान भरेगी और वे इस फार्मूले पर काम करते हुए अलग-अलग राज्यों में फिर से अपने प्रत्याशी यह कहकर खड़े करते रहेंगे कि ‘गठबन्धन लोकसभा चुनाव के लिये है, न कि विधानसभा चुनावों के लिये।’ इस तरह से वे गैर-भाजपायी वोटों को पहले जैसे काटने में लग जायेंगे जिसके चलते आप को भाजपा का छुपा सहयोगी कहा जाता है।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments