
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के प्रधान कार्यालय का पता 15 जनवरी से 24 अकबर रोड से बदलकर 9 । कोटला मार्ग हो जाएगा। यह भी एक संयोग है, लगभग पांच दशक पहले कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हुई थी तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी करने के लिए दक्षिण भारत के अपने एक सांसद का बंगला 24 अकबर रोड चुना। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1980 में जोरदार सत्ता में वापसी की, तभी से कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय 24 अकबर रोड बन गया। आज कांग्रेस एक बार फिर से केंद्र की सत्ता से दूर है और कांग्रेस 15 जनवरी को अपने नए इंदिरा गांधी भवन में शिफ्ट होने जा रही है। क्या कांग्रेस अपने नए इंदिरा गांधी भवन में इंदिरा गांधी के 1980 के इतिहास को दोहराएगी और क्या 2029 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में वापसी करेगी। इसके लिए कांग्रेस को अपने नए भवन में श्रीमती इंदिरा गांधी के जैसी चुनावी रणनीति बनानी होगी और श्रीमती इंदिरा गांधी के जैसे कठोर फैसले लेने होंगे। श्रीमती इंदिरा गांधी ने ढाई साल में केंद्र की सत्ता में अपनी वापसी कर ली थी। मगर मौजूदा वक्त में कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से बाहर हुए एक दशक से भी अधिक का समय हो गया है। कांग्रेस लगातार 2014 से चुनाव हार रही है। कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, और उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस अपने नए इंदिरा गांधी भवन में प्रवेश करेगी। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नए भवन से केंद्र की सत्ता में वापसी करेगी।
मौजूदा समय में कांग्रेस के सामने केंद्र की सत्ता में बैठी मजबूत भाजपा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजबूत रणनीतिकार नेता है। वहीं कांग्रेस के पास चापलूस और स्वयंभू नेताओं की एक बड़ी फौज है, जो अपने अपने राज्यों में भी कांग्रेस को नहीं जिता सके और कांग्रेस कमजोर होती चली गई। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को 2024 में लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी हार मिली।
कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत करने के लिए देश भर में अभियान चला रही है। कांग्रेस का अभियान कितना सफल होगा यह तो वक्त बताएगा मगर कांग्रेस को संगठन को मजबूत करने का अभियान चलाने के साथ-साथ एक अभियान अपने पारंपरिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाने और मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से ना कटे इसका भी अभियान गंभीरता से चलाना होगा। केवल संगठन को मजबूत करने के लिए ग्राम स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पदाधिकारी की एक फौज तैयार करने से संगठन मजबूत नहीं होगा। संगठन तब मजबूत होगा जब ग्राम स्तर के पदाधिकारी से लेकर राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियो की ड्यूटी में मतदाता सूची भी शुमार की जाएगी और इसके लिए कांग्रेस हाई कमान को अपने उन नेताओं की ड्यूटी लगानी चाहिए जो नेता अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री रहे और हैं और बनना चाहते हैं।
यदि पार्टी हाई कमान मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के दावेदार अपने नेताओं को बुलाकर यह पूछे कि उनके खानदान में कितने मतदाता हैं, तो शायद वह स्वयंभू नेता ठीक से बता भी नहीं पाएंगे क्योंकि कांग्रेस के नेता पद चाहते हैं। मगर मतदाता सूची में अपने पारंपरिक मतदाताओं के नाम जुड़वाने की जरूरत भी महसूस नहीं करते हैं।
कांग्रेस राज्यों से लेकर केंद्र की सत्ता से दूर है इसकी वजह यह सुनाई देती है कि कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता कांग्रेस से दूर चला गया। क्या कभी कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों और नेताओं ने यह सोचा है कि कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता कांग्रेस से दूर हुआ है या कम हुआ है। इस कमी की असली वजह कांग्रेस के नेता ना तो समझ पाए और ना ही नेताओं ने उसे पर काम किया। दरअसल कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं का घटने का प्रमुख कारण मतदाता सूचियो में कांग्रेस के पारंपरिक नए मतदाताओं का नाम नहीं जुड़ना और नाम का कटना है।
कांग्रेस के नेता पार्टी का टिकट चाहते हैं मगर उन्होंने चुनाव लड़ने से पहले यह नहीं देखा कि कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता कितने हैं और यदि वह मतदान देने के योग्य है और उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है तो वह नाम क्यों नहीं है। क्या कांग्रेस के संभावित प्रत्याशियों को वोटर लिस्ट में अपने पारंपरिक वोटरों के नाम नहीं जुड़वाने चाहिए।
यही वजह है कि कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव हार जाते हैं, जबकि भाजपा के ऐसे ऐसे प्रत्याशी हैं जो लगातार विधानसभा और लोकसभा के चुनाव जीत रहे हैं। इसकी वजह उनकी नजर चुनाव लड़ने से पहले मतदाता सूचियां पर होती है और वह घर-घर जाकर अपने लोगों के नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाते हैं। क्या कांग्रेस के पदाधिकारी और नेता भी यह काम करते हैं। यदि ऐसा करते तो कांग्रेस का पारंपरिक वोटर कम नहीं होता।
कांग्रेस को संगठन को मजबूत करने के अभियान के साथ-साथ अपने मतदाताओं को भी मजबूत करना होगा। मतदाता मजबूत होगा जब उनका नाम मतदाता सूची में होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)