
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को पत्र भेजकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति एनईपी 2020 को समर्थन और पुनर्विचार की मांग की है। उन्होंने पत्र के माध्यम से कहा है की एनईपी 2020 में भाषा थोपने जैसा कुछ नहीं है। केंद्रीय शिक्षा नीति प्रणाली हिंदुस्तान के छात्रों को वैश्विक मंच तक पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया है जिसके तहत हमारी भाषा सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित रहेगा।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को त्रिभाषीय फार्मूला को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए।
पत्र में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखा है कि मोदी सरकार द्वारा प्रचारित सहकारी संघवाद की भावना का पूर्णतः खंडन है इसलिए राज्य को अपने राजनीतिक हित के लिए छात्रों के भविष्य को खतरे में नहीं डालना चाहिए। शिक्षा मंत्री के अनुसार त्रिभाषा फार्मूले किसी भी भाषा को थोपने की वकालत बिल्कुल नहीं करती। यह बेहद जरूरी है कि राज्य सरकार राजनीति से ऊपर उठकर ऐसी नीतियों को प्राथमिकता दे जो हमारे छात्रों को सशक्त बनाएगी।
एनईपी 2020 यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक छात्र को अपनी मातृभाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो किसी भी राज्य समुदाय पर कोई भाषा थोपने का सवाल ही नहीं है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य तमिल सहित भारतीय भाषाओं को शिक्षण को पुनर्जीवित और मजबूत करना है जिन्हें दशकों से औपचारिक शिक्षा में धीरे-धीरे दरकिनार कर दिया गया।
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राजनीतिक लाभ के कारण मौजूदा डीएम के सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) का विरोध कर रही है। जिससे तमिलनाडु के छात्रों, शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों को केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही संसाधनों का लाभ नहीं मिल रहा है।
वहीं तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन केंद्र द्वारा प्राप्त पत्र मिलने के बावजूद भी तमिलनाडु में दो भाषा नीति को पालन करने की बात कह रहे हैं उनका कहना है हम अपना हिस्सा 2150 करोड़ रूपया केंद्र से मांग कर रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार हमें अपने हक की पैसा देने की बजाय जबरदस्ती हिंदी थोप रहे है। जिसे समर्थन करना या फिर लागू करना किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं है।
वहीं तमिलनाडु राज्य भाजपा इकाई के अध्यक्ष अन्नामलाई यहाँ की सरकार से सभी सरकारी स्कूलों में भाषा सर्वे की मांग की है। पूर्व आईपीएस अन्नामलाई का कहना है कि सरकार को केंद्रीय शिक्षा नीति पर भरोसा करना चाहिए एवं तमिलनाडु के सभी शिक्षण संस्थानों मे सर्वे करना चाहिए कि आखिर छात्र और शिक्षक क्या चाहते हैं?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)