
लगभग चार दशक से लालू प्रसाद और उनके परिवार और नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बनते आ रहे हैं। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी राजद पर निर्भर है तो भाजपा नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड पर निर्भर है। शायद यही लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की असल चाणक्य नीति है।
-देवेंद्र यादव-

बिहार की राजनीतिक गतिविधियां अचानक एक बार फिर चर्चा का केन्द्र बन गई हैं। बिहार में इसी साल राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं और यह गतिविधियां अचानक बढ गई हैं। हालांकि बिहार राजनीतिक पटल पर हमेशा चर्चा में रहता है, मगर देश में बिहार को लेकर यह चर्चा या तो होती नहीं है या कम होती है जो सुनाई नहीं देती और चर्चा होती भी है तो लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीति पर होती है। कहा जाता है कि दोनों नेता राजनीति के बड़े चाणक्य हैं। यह बात सही भी है। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को राजनीति का चाणक्य बताए जाने का कारण देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बिहार में स्थिति को देख कर समझा जा सकता है। भाजपा लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही और कांग्रेस जिसने देश की सत्ता पर लंबे समय तक राज किया, दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के नेता और रणनीतिकार अभी तक यह नहीं समझ पाए कि बिहार में वह सत्ता से दूर क्यों है। बिहार में भाजपा और कांग्रेस का सरकार नहीं बना पाने का कारणं यदि दोनों पार्टियों के नेताओं और रणनीतिकारों को यह समझ में आ जाए तो देश को यह भी पता चल जाएगा की नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बड़े चाणक्य क्यों हैं।
लालू प्रसाद यादव 1990 में भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। वही सन 2000 में कुछ समय के लिए और 2005 में पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी से मिलकर नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
लगभग चार दशक से लालू प्रसाद और उनके परिवार और नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बनते आ रहे हैं। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी राजद पर निर्भर है तो भाजपा नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड पर निर्भर है। शायद यही लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की असल चाणक्य नीति है। दोनों ही नेता दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को बिहार की सत्ता में आने से रोक रहे हैं, और इस राजनीतिक रणनीति में दोनों एक साथ भी नजर आएंगे।
याद कीजिए ऐसा कई बार अवसर आया है जब भारतीय जनता पार्टी को बिहार की सत्ता में आने से लालू यादव और नीतीश कुमार ने एक साथ आकर रोका है। बिहार बीजेपी के नेता बयान देते हुए नजर आ रहे हैं कि बिहार में 2025 में भाजपा अपनी दम पर सरकार बनाएगी। जैसे ही यह खबर मीडिया में तैरने लगी तो एक बार फिर से नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के एक साथ आने के समाचार भी सुनाई देने लगे।
कांग्रेस बिहार की राजनीति की पिक्चर से दूर है क्योंकि कांग्रेस का बिहार में अपना बड़ा राजनीतिक वजूद अभी नहीं है। कांग्रेस चार दशक में स्वयं की राजनीतिक गलतियां और भूल के कारण कमजोर होती चली गई। ऐसा भी नहीं है कि बिहार में कांग्रेस का अस्तित्व नहीं है अभी भी बिहार की जनता की नजर कांग्रेस पर है मगर कांग्रेस के नेताओं और रणनीतिकारों की नजर जनता और अपने कार्यकर्ताओं से कहीं अधिक लालू प्रसाद यादव और राष्ट्रीय जनता दल के सहारे पर है।
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को कांग्रेस से खतरा दिखाई नहीं दे रहा है। असल खतरा उन्हें भाजपा से है। भाजपा को बिहार की सत्ता में आने से रोकने के लिए दोनों राजनीतिक चाणक्य आने वाले दिनों में एक साथ नजर आ जाएं तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि दोनों ही नेता जानते हैं कि यदि बिहार की सत्ता राष्ट्रीय पार्टियों के हाथ में हुई तो बिहार में क्षेत्रीय दलों का राजनीतिक अस्तित्व या तो खत्म हो जाएगा या संकट में आ जाएगा। इसीलिए बिहार के क्षेत्रीय दलों के नेताओं की नजर भी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के गठबंधन होने की संभावना पर लगी हुई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)