-देवेंद्र यादव-

वैसे तो, हाड़ौती संभाग को राजस्थान की राजनीति में अब तक जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है ? इसका प्रमुख कारण हाडोती संभाग में शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मजबूत होना है।
हाडोती संभाग ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बड़े-बड़े मजबूत स्वयंसेवक दिए और यही मजबूत स्वयंसेवक राजनीति में आकर, विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़े और लगातार जीतते रहे।
पंडित दाऊ दयाल जोशी, हरि कुमार आदित्य, ललित किशोर चतुर्वेदी चतुर्भुज नागर, रघुवीर सिंह कौशल, कृष्ण कुमार गोयल, मदन दिलावर जैसे नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजबूत स्वयंसेवक रहे और राजनीति में उतर कर लंबे समय तक सांसद और विधायक बने।
हाड़ौती संभाग में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर भारतीय जनता पार्टी लगातार विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीतती आ रही है। इसकी एक खास वजह, 1977 में राजस्थान में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन और जनता पार्टी की सरकार का मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत का बनना और मुख्यमंत्री बनने के बाद हाड़ौती संभाग की छबड़ा विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतना है।
शेखावत के बाद, श्रीमती वसुंधरा राजे ने भी हाड़ौती संभाग को ही अपनी राजनीति की कर्मभूमि बनाया और झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़ा और सांसद बनी बाद में झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ी और विधायक बनीं। जब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब वसु मैडम राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से हाड़ौती संभाग को राजस्थान की राजनीति में वसु मैडम का गढ़ माना जाने लगा।
हाड़ौती संभाग के झालावाड़ संसदीय क्षेत्र पर भाजपा का लगभग 4 दशक से कब्जा है और झालावाड़ संसदीय क्षेत्र में आने वाली अधिकांश विधानसभा सीटों पर भी वसु मैडम के समर्थक विधायकों का कब्जा है।
राजस्थान भाजपा के भीतर 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए नेतृत्व को लेकर चल रहे विवाद को देखते हुए सवाल खड़ा होता है कि क्या श्रीमती वसुंधरा राजे 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने राजनैतिक गढ़ को बचा पाएंगी ? क्योंकि वसुंधरा के सामने मौजूदा वक्त में तीन बड़ी राजनीतिक चुनौतियां हैं।
एक चुनौती, वसु मैडम को अपने गढ़ से ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिल रही है । यदि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो ओम बिरला मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार हैं। दूसरी चुनौती राज्य के खनिज मंत्री और हाडोती में कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रमोद जैन भया से मिल रही है।
प्रमोद भैया झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से आते हैं। प्रमोद जैन भाया और उनकी धर्मपत्नी उर्मिला जैन झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। प्रमोद जैन भाया झालावाड़ संसदीय क्षेत्र के बारां जिले के मजबूत नेता है। वह स्वयं की दम पर जिले की 3 सीटों पर कांग्रेस को जिताने का माद्दा रखते हैं और कांग्रेस को जिताते रहे हैं। अब उनकी नजर 2023 में विधानसभा चुनाव और उसके बाद झालावाड़ संसदीय क्षेत्र पर है। प्रमोद जैन 2023 और 2024 में झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से वसुंधरा के गढ़ को ढहाने की योजना बना चुके हैं। तीसरी और अंतिम चुनौती यह है कि क्या पार्टी हाईकमान 2023 का विधानसभा चुनाव वसु मैडम के नेतृत्व में लड़ेगी। यदि भाजपा ने चुनाव वसुंधरा मैडम के नेतृत्व में नहीं लड़ा तो हाड़ौती संभाग के वसुंधरा समर्थक कार्यकर्ता और नेता तितर-बितर हो जाएंगे। इससे वसु मैडम को बड़ा नुकसान होगा। नेतृत्व के विवाद के बीच जब राजनीतिक गलियारों में वसु मैडम की राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई है, के समाचार सुनने को मिलते हैं ,तब यह भी सुनने को मिलता है कि वसु मैडम के समर्थक नेता भी उनसे खिसकते हुए नजर आते हैं। वसु मैडम के समर्थक नेता और कार्यकर्ताओं को ओम बिरला और गजेंद्र सिंह शेखावत के राजनीतिक गलियारों में भी घूमते हुए देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर सवाल यह है कि क्या 2023 और 24 में वसु मैडम अपने गढ़ को बचा पाएंगी ? यदि हाडोती संभाग में वसु मैडम कमजोर हुई तो, हाडोती में भाजपा भी कमजोर होगी, क्योंकि मौजूदा वक्त में भाजपा के पास हाड़ौती संभाग में ऐसा मजबूत नेता नहीं है जो भाजपा के गढ़ को बचा सके।
देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)