
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान कांग्रेस की राजनीति को लेकर मैंने पिछले दिनों लिखा था कि कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी समय रहते राजस्थान कांग्रेस पर भी ध्यान दें वरना इस प्रदेश में भी हरियाणा की तरह 2028 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर माली वर्सेस गुर्जर की लड़ाई देखने को मिलेगी।
कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 11 जून बुधवार के दिन प्रार्थना सभा में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट एक साथ नजर आए। इससे लगा कि कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी राजस्थान कांग्रेस को लेकर गंभीर हैं। हाई कमान ने ही सचिन पायलट को शायद निर्देश दिया था कि प्रदेश में नेताओं की एकता दिखाओ। सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के घर पहुंच कर उन्हें राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाली प्रार्थना सभा में आने का निमंत्रण दिया। तब मीडिया और राजनीतिक गलियारों में इसकी खासी चर्चा हुई, क्योंकि सचिन पायलट पहली बार अशोक गहलोत को आमंत्रित करने उनके निवास स्थान पर पहुंचे थे। 9 जून से ही इस पर प्रदेश की राजनीति गरमाती रही और 11 जून को अशोक गहलोत स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वी पुण्यतिथि पर प्रार्थना सभा में पहुंचे। इसके बाद राजनीतिक सुर्खियों पर विराम लगा, लेकिन सवाल अभी भी बड़ा है, क्योंकि राजनीतिक दर्द इतना गहरा और बड़ा है।
अशोक गहलोत जिस नेता की 25वी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देने दोसा पहुंचे थे, राजेश पायलट भी उनके पुत्र सचिन पायलट की तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की रेस में थे। मगर पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने थे, और उसी दौर में राजेश पायलट की अपने संसदीय क्षेत्र दोसा के पास सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। स्वर्गीय राजेश पायलट की राजनीतिक विरासत को सचिन पायलट ने संभाला। सचिन पायलट दोसा और अजमेर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने।
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। कांग्रेस ने सचिन पायलट की अध्यक्षता में विधानसभा का चुनाव लड़ा और 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। मगर मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बजाय अशोक गहलोत बने। पायलट परिवार का राजनीतिक दर्द 25 वर्ष पहले भी वही था जो आज भी है। क्या अशोक गहलोत सचिन पायलट को आसानी से मुख्यमंत्री बनने देंगे क्योंकि राजेश पायलट के नाम पर भी राजस्थान के तमाम नेता एकजुट नहीं हुए थे। राजेश पायलट की जगह अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया था। तब से अब तक अशोक गहलोत तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत की राजनीतिक जड मजबूत है। सचिन पायलट के पास अपने पिता राजेश पायलट की बड़ी राजनीतिक विरासत होने के बावजूद वह अशोक गहलोत की राजनीतिक जड़ों को नहीं हिला पाए हैं। 11 जून को श्रद्धांजलि सभा में प्रदेश के जो बड़े नेता नजर आ रहे थे, वह अशोक गहलोत की मजबूत राजनीतिक जड़े हैं, जिन्हें राजनीति में अशोक गहलोत ने ही सींचा और मजबूत किया।
सचिन पायलट को बड़ा अवसर मिला लेकिन उन्होंने प्रदेश में किसी भी नेता को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं बनाया। सचिन पायलट ने उन नेताओं को सीचा जिन पौधों को अशोक गहलोत ने लगाया था और बड़ा किया था। जब अशोक गहलोत के सामने राजनीतिक तूफान आता है तब यही नेता अशोक गहलोत के सामने मजबूती के साथ खड़े दिखाई देते हैं। इसका नजारा सचिन पायलट ने 2018 में देखा था। जो नेता सचिन पायलट के साथ खड़े थे वह भी मुख्यमंत्री की कुर्सी की बात आई तब अशोक गहलोत के साथ खड़े नजर आए।
लेकिन सवाल यह है कि क्या 11 जून का नजारा कांग्रेस को एकजुट कर मजबूत कर देगा या फिर 2028 में कांग्रेस को हरियाणा की तरह माली वर्सेस गुर्जर जाट और दलित का एंगल देखने को मिलेगा। प्रदेश में अभी भी पायलट की अपेक्षा गहलोत की राजनीतिक जड अधिक मजबूत है। जहां तक गुर्जर समाज और गुर्जर नेताओं की बात करें तो अशोक गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में सचिन पायलट के मुकाबले में धीरज गुर्जर, अशोक चांदना, जितेंद्र सिंह और अब प्रहलाद गुंजल को मैदान में उतार रखा है। यह तीनों ही प्रदेश में प्रभावशाली गुर्जर नेता हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या राजस्थान के यह सभी गुर्जर नेता सचिन पायलट के नेतृत्व में एकजुट नजर आएंगे। धीरज गुर्जर की राजनीतिक ताकत मौजूदा वक्त में हाई कमान के सामने सचिन पायलट से ज्यादा मजबूत है क्योंकि धीरज के पास उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। धीरज गुर्जर प्रियंका गांधी के नजदीकी हैं और उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने वाले अशोक गहलोत हैं। अशोक चांदना भी मजबूत नेता हैं। वह प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)