
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के भीतर संगठन सृजन का कार्य शुरू हो गया है। कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि संगठन सृजन का कार्य ऊपर से शुरू हुआ है। मैंने कुछ समय पहले ही अपने ब्लॉग में लिखा था कि कांग्रेस और राहुल गांधी को संगठन सृजन का कार्य राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर से शुरू करना चाहिए। ग्राम, ब्लॉक और जिलों में संगठन सृजन का कार्य अपने आप मजबूत हो जाएगा।
उड़ीसा के बाद महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ने प्रदेश का नेतृत्व बदल दिया है। लगता है राहुल गांधी संगठन सृजन के कार्य को स्वयं गंभीरता से देख रहे हैं और बदलाव कर रहे हैं। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को संगठन सृजन के कार्य में दो बातों पर अधिक ध्यान देना होगा एक प्रेशर पॉलिटिक्स दूसरा मिल बांटकर खाना।
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे स्वयंभू नेताओं के दबाव में आकर संगठन सृजन नहीं करें तो बेहतर होगा क्योंकि स्वयंभू नेता उस प्रेशर कुकर की तरह हैं जिसमें सिटी जोर से तो बजती है मगर जब कुकर खोलते हैं तो या तो चावल कच्चा रह जाता है या फिर पूरा गल जाता है। नतीजा स्वाद नहीं आता है।
कांग्रेस के भीतर लंबे समय से देखा जा रहा है सत्ता और संगठन में चुनिंदा नेता ही बरकरार हैं। इसे कहते हैं मिल बांटकर खाना। यह तब होता है जब या तो पार्टी हाई कमान नियुक्तियों पर ध्यान नहीं देता है या कांग्रेस के चालाक नेता हाई कमान के संज्ञान में तब लाते हैं जब नियुक्ति हो जाती है, या नेता संगठन में बदलाव की हाई कमान से चर्चा तो करते हैं मगर नाम नहीं बताते हैं कि किसे नियुक्त करना है। गलती हाई कमान की भी है वह नाम पर गौर नहीं करता है।
कांग्रेस को यदि मजबूत करना है तो राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के पद को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि कांग्रेस के भीतर मिल बांटकर खाने की प्रवृत्ति कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के पद से ही शुरू हुई है। कांग्रेस का राष्ट्रीय संगठन महामंत्री ही हाई कमान को बरगलाता है, और मिल बांटकर खाने की प्रवृत्ति को जन्म देता है।
कांग्रेस के भीतर जब से इस पद का सृजन हुआ है तब से अब तक देश और विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के भीतर अनेक बड़े जन आधार वाले नेताओं की भ्रूण हत्या हुई है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और सिंह देव जैसे नेता राज्यों के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। नतीजा यह हुआ कि इन राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।
कांग्रेस गांधी के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने की बात कर रही है। इसके लिए कांग्रेस को कांग्रेस के भीतर अलग से एक विभाग बनाकर अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं को यह बड़ी जिम्मेदारी दे देनी चाहिए। अशोक गहलोत कांग्रेस के भीतर गांधी को बेहतर समझते हैं। अशोक गहलोत को राजस्थान का गांधी भी कहा जाता है। अशोक गहलोत गांधी के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने की कुवत रखते हैं, इसलिए अशोक गहलोत को कांग्रेस गांधी विचार मंच का संयोजक बनाकर, उनकी सेवा ले सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)