
-देवेंद्र यादव-

कहां है कांग्रेस का लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन, जिसके सहारे देश भर में कांग्रेस अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग में नई लीडरशिप खोज रही थी। क्या हुआ उन राज्यों का जहां विधानसभा के चुनाव थे और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने चुनाव वाले राज्यों में लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन अभियान चलाया था। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हुए जहां कांग्रेस ने जीत के लिए अनुसूचित जाति जनजाति के नए जीतने वाले चेहरों की खोज की थी। क्या उन चेहरों को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया यदि बनाया तो उनमें से कितने चेहरे चुनाव जीते।
लोकसभा चुनाव से पहले संपन्न हुए राजस्थान विधानसभा के चुनाव से पहले राजस्थान में लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन 59 के नाम से जोर शोर से चलाया गया। लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन की तरफ से एक सूची भी तैयार की गई। यदि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति की सुरक्षित विधानसभा सीटों पर लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन के प्रत्याशी उतारे गए तो कांग्रेस प्रदेश में सत्ता में आ जाएगी। मगर क्या कांग्रेस हाई कमान ने लीडरशिप डेवलपमेंट द्वारा तैयार की गई सूची के अनुसार प्रत्याशी घोषित किए। शायद नहीं, बल्कि राजस्थान में प्रदेश के स्वयंभू नेताओं ने लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन को सपोर्ट ही नहीं किया। जबकि लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन राजस्थान में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के कार्यकर्ताओं और नेताओं की कार्यशाला लगा रहे थे। लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन के राजस्थान प्रभारी डॉक्टर शंकर यादव अपनी टीम डॉक्टर डीके मेघवाल और देवेंद्र यादव के साथ मिलकर अपना समय और पैसा खर्च कर इस अभियान को सफल बनाने में लगे हुए थे। उनका यह अभियान सफल भी हो रहा था। लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन की यह सफलता राजस्थान के स्वयंभू नेताओं को रास नहीं आई। लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन जिसके कार्यकर्ता अपनी जेब से पैसा खर्च कर काम कर रहे थे उन्हें राजस्थान के बड़े नेताओं ने तवज्जो ही नहीं दी और लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन के द्वारा सर्वे कर कार्यशाला लगाकर जिन संभावित जीतने वाले प्रत्याशियों की खोज की थी उन में से एक को भी पार्टी हाई कमान न प्रत्याशी नहीं बनाया।
राजस्थान विधानसभा का चुनाव हारने के बाद राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा शुक्रवार 20 दिसंबर को संविधान रक्षक सम्मेलन में उन दलित आदिवासी ओबीसी और अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं के बीच में भाषण दे रहे थे कि राजस्थान में निकट भविष्य में होने वाले पंचायत राज और निकाय चुनाव में आप जिन कार्यकर्ताओं का नाम देंगे उन्हें हम टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारेंगे। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी गोविंद सिंह डोटासरा राज्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। जब लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन ने 59 सीटों पर जीतने वाले प्रत्याशियों की सूची दी थी, तब उन्हें टिकट नहीं देकर ऐसे लोगों को टिकट दिया जिनका दूर-दूर तक उन विधानसभा क्षेत्र में कोई काम ही नहीं था। जयपुर से कोसों दूर रामगंज मंडी में ऐसे प्रत्याशी को उतारा गया जो जयपुर का रहने वाला था और जिसका भाई भारतीय जनता पार्टी से सांसद था।
सवाल यह है कि लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन हो या फिर संविधान रक्षक हो क्या पार्टी हाई कमान इनके द्वारा किए गए कार्यों को गंभीरता से लेता है। यदि नहीं लेता है तो फिर कांग्रेस का और कार्यकर्ताओं का पैसा खर्च कराने की जरूरत क्या है। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर होता है और कार्यकर्ताओं के मनोबल के कमजोर होने के कारण कांग्रेस भी मनोबल कमजोर होती है। कांग्रेस का पारंपरिक वोट घट रहा है इसका एक कारण यह भी है दलित ,आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग के लिए कांग्रेस कार्यक्रम तो चलाती है मगर कार्यों की समय-समय पर समीक्षा नहीं करती है। लंबे समय से कांग्रेस के अनुसूचित विभाग का राष्ट्रीय अध्यक्ष एक ही व्यक्ति चला आ रहा है। क्या कभी कांग्रेस हाई कमान ने इसकी समीक्षा की की इस नेता के कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग का राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने पर कांग्रेस का पारंपरिक वोट कांग्रेस में वापस आया आया है या नहीं। क्या कांग्रेस को विभिन्न राज्यों में सरकार बनाने का अवसर मिला।
यदि नहीं मिला तो कांग्रेस हाई कमान अनुसूचित जाति के अध्यक्ष को क्यों नहीं बदलता है और इस पद पर युवा नेता को नियुक्त क्यों नहीं करती है जबकि कांग्रेस के पास अनुसूचित जाति वर्ग के जमीनी नेता मौजूद हैं जो प्रभावशाली भी हैं जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)