-विष्णुदेव मंडल-

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब पीने से 74 लोगों की अकाल मृत्यु का प्रकरण बिहार विधानसभा से लेकर संसद में भी गूंज रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब पीकर मरने वालों के परिवार को किसी तरह का मुआवजे देने से इंकार कर रहे हैं, वही भाजपा, लोजपा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा प्रमुख जीतन राम मांझी, भाकपा, भाकपा माले, समेत कांग्रेस पार्टी भी पीड़ित परिवार को मुआवजे की मांग कर रही हैं। या यूँ कहें कि बिहार में जहरीली शराब के मुद्दे पर महागठबंधन में मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं।
कभी शराबबंदी के समथर्क रही भाजपा अपने सियासी फायदे के लिए इस मुद्दे को कोर्ट में ले जाने की तैयारी में है। शराबबंदी के बावजूद भी राज्य के सभी जिले और पंचायतांे में थोक मिल रहे देशी-विदेशी दारू पर भाजपा आक्रमक मूड में है। वहीं जनता दल यूनाइटेड के आला दर्जे के नेताओं समेत मुख्यमंत्री भी शराबबंदी के लिए अपने रुख पर कायम हैं। पिछले अगस्त से सरकार में शामिल राष्ट्रीय जनता दल और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव शराबबंदी पर सीधा जबाब देने के बजाय देश के भाजपा शासित राज्यों में शराबबंदी और जहरीली शराब पीकर हुई मौतों के आकड़े प्रस्तुत कर अपने फर्ज से इतिश्री कर रहे हैं जबकि राष्ट्रीय जनता दल के विधायक पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह, विधान परिषद सदस्य रामबली सिंह सरीखे कई नेता शराबबंदी का मखौल उड़ा रहे हैं। वे नीतीश कुमार के शराबबदी के फैसले को फेल बताते हुए इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद चिराग पासवान भी सारण शराब कांड के मृतक के परिवारों को और उनके विधवा और बच्चों के भविष्य पर चिंता व्यक्त करते हुए बिहार सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी शराबबंदी का समर्थन तो करते हैं लेकिन इससे हो रहे राजस्व की हानि, जनहानि और इंप्लीमेंटेशन पर सवाल उठाते हुए सरकार से मांग करते हैं कि वह इस शराबबंदी को समीक्षा करे। भाजपा तो शराबबंदी और पीड़ित परिवार को मुआवजे के मांग को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंप चुकी है। साल 2016 में गोपालगंज के खजूरबानी में जहरीली शराब से हुई मौतों के मामले मे नीतीश कुमार सरकार मुआवजे दिया था भाजपा इसी को आधार बनाकर सरकार के खिलाफ कोर्ट में जाने के तैयारी में है।
बहरहाल नीतीश कुमार जहाँ शराबबंदी से पांव पीछे खींचने के मुड में नहीं है, वहीं भाजपा जहरीली शराब से मौत को नरसंहार बताते हुए सरकार पर भेदभाव का आरोप लगा रही है। तेजस्वी यादव शराबबंदी पर अपने चार महीने के बयान से बिल्कुल अलग सरकार और मुख्यमंत्री का बचाव और भाजपा शासित राज्यों का हवाला देकर सीधे जबाब देने से बच रहे हैं।
बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था और शराबबंदी को सफल बनाने के लिए डीजीपी तो बदल दिए गए हैं, आर एस भटटी पुलिस महानिदेशक के कार्यभार संभाल चुके हैं वह बिहार के सभी अव्वल और आले दर्जी को पुलिस अधिकारी को संबोधित करते हुए बिहार में कानून व्यवस्था और शराबबंदी को पूर्ण लागू करने के लिए निर्देश दे चुके हैं। अब देखना यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले मौजूदा सरकार और पुलिस तंत्र आमजन को मुकम्मल सेवा करते हैं या नहीं।
राज्य का कार्यभार संभाल चुके हैं और सभी पुलिस अधिकारियों को शराबबंदी और कानून व्यवस्था व्यापक करने के लिए कई सुझाव भी दिए हैं अब देखना यह है की वह बिहार में शराबबंदी और शासन व्यवस्था को मुकम्मल बना पाएं।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी को एक महत्वाकांक्षी योजना मानकर 2016 में लागू की थी। यह मांग बिहार की आधी आबादी अर्थात महिलाओं ने की थी जो अपने परिवार में शराब के कारण बिगड़ती अर्थव्यवस्था और अंतर कलह से हो रहे जनहानि ,धनहानि के कारण परेशान थीं। बिहार में नीतीश कुमार के समर्थन में आधी आबादी अर्थात नारी शक्ति ही है जिन्होंने नीतीश कुमार को सत्ता के दहलीज तक पहुंचाया था, ऐसे में सरकार नारीशक्ति को नाराज करना नहीं चाहती।