तमिलनाडु में हिंदी विरोध को फिर हवा देने की कवायद

गांधी जयंती के अवसर पर प्रसार भारती द्वारा रेडियो पर प्रस्तुत कार्यक्रम में हिंदी के उपयोग पर तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियां सवाल खड़े करने लगी हैं

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Photo courtesy Dreamtime.com

-विष्णु देव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(चेन्नई में स्वतंत्र पत्रकार एवं व्यवसायी)
चेन्नई। वैसे तो तमिलनाडु में हिंदी का विरोध दशकों से रहा है लेकिन 2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर प्रसार भारती द्वारा रेडियो पर प्रस्तुत कार्यक्रम में हिंदी के उपयोग पर तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियां सवाल खड़े करने लगी हैं। एमडीएमके प्रमुख वाइको ने केंद्र सरकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार तमिलनाडु में हिंदी थोपना चाहती है जो बिल्कुल ही स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा मौजूदा केंद्र सरकार विभिन्नता में एकता वाले देश को आरएसएस के एजेंडा से चलाना चाहती है। उन्होंने गृह मंत्री के उस वक्तव्य का विरोध किया जिसमें उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी के बदले लोगों को हिंदी भाषा अपनाना चाहिए जो सरल और सहज है।
ज्ञात हो कि आगामी 6 अक्टूबर को एमडीएमके नेता वाइको तमिलनाडु पर हिंदी थोपने के विरोध में चेन्नई के वल्लूरकोटम में धरना प्रदर्शन करेंगे।

रामदास ने तमिल भाषियों का अपमान बताया

वही  पीएमके प्रमुख रामदास ने भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चेतावनी दी है कि केंद्र सरकार तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की जुर्रत ना करे। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ऑल इंडिया रेडियो तमिलनाडु में जो कार्यक्रम पहले तमिल में प्रसारित हुआ करता था उसे बदलकर हिंदी में कर रही है जो तमिल भाषियों का अपमान है। इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार को तमिल भाषा और संस्कृति रीति रिवाज का सम्मान करना चाहिए।

तमिलनाडु में हिंदी के विरोध में हो रही राजनीति पर प्रवासी हिंदी भाषियों की प्रतिक्रिया …
प्रवासी बिहार निवासी प्रभात कुमार सिंह कहते हैं कि भाषाएं कोई भी हो हमें सम्मान करना चाहिए। तमिलनाडु में लाखों की संख्या में प्रवासी रहते हैं जो यहां व्यापार या अन्य सेवाओं से जुड़े हुए हैं और प्रवासियों के बच्चे भी बेहतर तमिल बोलते -लिखते हैं। यहां की कल्चर को अपनाते हैं। रीति रिवाज और अन्य कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन राजनीतिक कारणों से यहां के राजनीतिक पार्टियां समय-समय पर इस मुद्दे को उठाती रहती हैं ताकि अपना वोट बैंक सुरक्षित रखें। यहां तो हिंदी का विरोध सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया जाता है वरना रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे के बाहर स्थानीय टैक्सी और ऑटो ड्राइवर से लेकर अन्य दुकानदार भी बेहतर हिंदी बोलने लगे हैं।

सिर्फ वोटों की फसल काटने के लिए विरोध

ट्रांसपोर्टर मुन्ना कुमार गुप्ता कहते हैं कि हमें यह नहीं पता कि तमिलनाडु में राजनीतिक दल हिंदी का विरोध क्यों करते हैं जबकि राजनेताओं के बच्चे बेहतर हिंदी बोलते और लिखते हैं। यहां तो सिर्फ वोटों की फसल काटने के लिए राजनीतिक दलों हिंदी का विरोध करते हैं। हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। यहां भी चुनाव के वक्त राजनीतिक पार्टियां हिंदी बहुल इलाकों में प्रचार करने के लिए प्रचार सामग्रियां हिंदी में छपवाती हैं और घर-घर वोट मांगते हैं। उस समय इन्हें हिंदी का विरोध नजर नहीं आता। लेकिन चुनाव खत्म होते ही इनकी हिंदी विरोध शुरू हो जाता है!
साहित्यकार रमन कुमार झा कहते हैं कि तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से हिंदी विरोधी रही है। मौजूदा सत्ताधारी डीएमके की राजनीति ही हिंदी विरोध पर रही है इसलिए अपने राजनीतिक रसूख कायम रखने के लिए राजनीतिक पार्टियां यहां हिंदी का विरोध करती हैं जबकि इन राजनीतिक दलों के परिवार के बच्चे सभी भाषाओं में पारंगत होते हैं। यह नहीं चाहते कि गरीब तबके के लोगों के बच्चे भी बहूभाषीय बनकर आगे बढ़ें। इसीलिए इनकी विरोधी मानसिकता राजनीति से प्रेरित है। हम इसकी निंदा करते हैं।

तमिलनाडु में हिंदी विरोध कोई नई बात नहीं

शिक्षक विमलेश कुमार ठाकुर कहते हैं कि तमिलनाडु में हिंदी की उपेक्षा हमेशा से होती रही है। यह कोई नई बात नहीं है। यहां कीे द्रमुक राजनीति हमेशा से ही हिंदी विरोधी रही है लेकिन मौजूदा मोदी सरकार हिंदी भाषा को विश्वस्तरीय बनाने का प्रयास कर रही है। हिंदुस्तान में सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी का विरोध दक्षिण भारत में हमेशा से होता रहा है। हमें इस विरोध का डटकर सामना करना चाहिए। राजनेता और राजनीति कुछ भी कर ले हिंदुस्तान में हिंदी का जगह कोई नहीं ले सकता।

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