
-देवेंद्र यादव-

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का समझौता नहीं हुआ, इससे कांग्रेस को सबक लेकर, यह मान लेना चाहिए कि बिहार में लालू यादव नहीं अब तेजस्वी हैं, इसलिए कांग्रेस को अभी से बिहार में कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में जुट जाना चाहिए।
बिहार में लालू नहीं तेजस्वी है यह नजारा 2024 के लोकसभा चुनाव में देख लिया जब कांग्रेस पूर्णिया सहित तीन लोकसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशी उतारने की बात कर रही थी। तब तेजस्वी यादव ने कांग्रेस के प्रत्याशियों को नहीं उतरने दिया और उन सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए। यदि कांग्रेस बिहार में अपने मन मुताबिक प्रत्याशी खड़े करती तो बिहार में आज कांग्रेस के पास तीन की जगह छह लोकसभा सीट होती।
बिहार में कांग्रेस के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है और पा ने के लिए सब कुछ है।
वैसे भी बिहार में कांग्रेस चार दशक से सत्ता में वापसी के लिए राजनीतिक प्रयोग ही कर रही है। कांग्रेस को बिहार में एक और प्रयोग करके देख लेना चाहिए और वहां ओबीसी या किसी महिला को कांग्रेस की कमान दे देनी चाहिए, और कांग्रेस का संगठन मजबूत करना चाहिए।
लंबे समय से बिहार में कांग्रेस का आरजेडी से गठबंधन है, यह सही है कि लालू प्रसाद यादव ने बुरे वक्त में कांग्रेस का साथ दिया, और शायद कांग्रेस हाई कमान खासकर गांधी परिवार लालू प्रसाद यादव के उस साथ के कारण ही बिहार में आरजेडी के साथ अपने संबंध निभा रहा है। मगर लगातार कांग्रेस को नुकसान हो रहा हो, तो इस पर चिंतन और मंथन कर कोई रणनीति रणनीति बनाना भी तो जरूरी है। बिहार में कांग्रेस की तरफ से ऐसा लग नहीं रहा है। चार दशक में कांग्रेस ने बिहार के भीतर कितने युवा चेहरों को कांग्रेस का चेहरा बनाया। वही चेहरे सामने नजर आएंगे जिनके पिता बिहार से सत्ता और संगठन में मलाईदार पदों पर रहे।
मगर सवाल यह है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव नहीं अब तेजस्वी यादव है, इसलिए कांग्रेस को अभी से बिहार को लेकर अपनी कोई रणनीति बनानी होगी और बिहार में कांग्रेस को नई पौध तैयार करनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)