
द ओपिनियन डेस्क
पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कभी सबसे करीबी माने जाने वाले जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपीसी सिंह ने अब पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे के बाद अब बिहार की सियासत गरमा गई है। आरसीपी सिंह ने जहां जेडीयू को डूबता जहाज बताया है तो वहीं अब पार्टी के पूर्व प्रवक्ता डॉक्टर अजय आलोक ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला है। अजय आलोक ने सिलसिलेवार ट्वीट कर नीतीश कुमार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। राजनीति में कब रिश्तों की परिभाषा बदल जाती है इसका पता ही नहीं चलता। बिहार का ताजा सियासी घमासान इसी बात का उदाहरण है। कभी नीतीश कुमार का दाहिना हाथ कहे जाने वाले आरसीपी सिंह को अंतत: अपनों ही की ओर से उठाए गए सवालों के बाद पार्टी जनता दल यू से नाता तोडना पड़ गया।
नीतीश ही राजनीति में लेकर आए थे सिंह को
कभी आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी सिंह को कभी नीतीश ही राजनीति में लेकर आए थे। जदयू में शामिल होने के बाद आरसीपी की गिनती नीतीश के करीबी लोगों में होती थी। इसी के चलते वे दो बार जदयू के राष्टीय अध्यक्ष बने। पार्टी की ओर से राज्यसभा में भेजे गए। बाद में केंद्र में मोदी सरकार में जद यू के कोटे से ेमंत्री बने। लेकिन नीतीश के साथ रिश्तों में खटास आई तो अंतत: पार्टी से बाहर होना पड़ गया। हाल ही में राज्यसभा के लिए हुए चुनाव में रिश्तों में खटास के चलते ही नीतीश ने आरसीपी सिंह को दुबारा राज्यसभा में जाने का मौका नहीं दिया और कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। आरसीपी सिंह पर जदयू के भीतर से ही कुछ लोगों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। यह आरोप पार्टी में से किसने लगाए यह तो खुलासा नहीं किया लेकिन पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र सिंह कुशवाह ने उनको पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांग लिया। इस पत्र की बात मीडिया में आई तो इसके बाद आहत आरसीपी ने पार्टी छोडऩे का ऐलान कर दिया।
भाजपा से करीबी बढ़ गई थी आरसीपी की
राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि केंद्र में मंत्री रहते आरसीपी की भाजपा से करीबी बढ़ गई थी। नीतीश इस बात से खफा थे। बिहार में जदयू व भाजपा की साझा सरकार है लेकिन दोनों के रिश्ते पूरी तरह सहज भी नहीं है। वहां पर भी बड़ा भाई कौन वाला खेल चलता रहा है। बड़ा भाई यानी बड़ी पार्टी बनी रहने की चाह नीतीश व भाजपा के रिश्ते असहज बनाती रही है। राजद भी नीतीश से नजदीकियां बनाने की कोशिश करता रहा है। पिछली साल राजद की इफ्तार की दावत में नीतीश पहुंचे तभी से दोनों के बीच रिश्ते सामान्य होने की अटकलें लगनी शुरू हो गई थी। हालांकि यह सामान्य सामाजिक शिष्टाचार भी कहा जा सकता है लेकिन राजनीति में शिष्टाचार की परिभाषा भी समय के अनुसार बदल जाती है। कहीं लगाव कहीं अलगाव की भीतर खाने हवा चलती रही। इसी के बीच आरसीपी ंिसंह व नीतीश के बीच खटास बढती गई। अब पार्टी ने सवाल उठाए तो आरसीपी सिंह भी गरज रहे हैं। साफ है आने वाले दिनों में बिहार में सियासी पारा और चढेगा। असली लड़ाई तो यह है कि आने वाले समय में क्या वे भाजपा के पाले में नजर आएंगे या किसी और भूमिका में यह देखना होगा।
वाकई राजनीति में कोई किसी का मित्र और शत्रु नहीं होता। सब कुछ हितों पर निर्भर करता है।