
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस को हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव से सबक लेने की जगह जम्मू कश्मीर और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों पर मंथन कर सबक लेना होगा। इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने एक राजनीतिक रणनीति के तहत कांग्रेस को हाशिये पर कर बिहार में कुछ समय बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपना रास्ता बना लिया है। सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी अपनी सरकार बनाएगी और दिल्ली में केजरीवाल सरकार यथावत रहेगी। यदि हरियाणा और जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र तथा झारखंड चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो नजारा कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है। आगामी दिनों में होने वाले बिहार और दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार कांग्रेस के साथ ऐसा ही खेला करेंगे जैसा हरियाणा और जम्मू कश्मीर महाराष्ट्र और झारखंड में किया।
गत दिनों संपन्न हुए चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस कमजोर रही और चारों राज्यों में हार के बाद कांग्रेस के नेता ईवीएम मशीनों पर शक कर सवाल खड़े करते हुए नजर आए। क्या भारतीय जनता पार्टी ईवीएम मशीनों को हैक करवा कर चुनाव जीतती है। यह सिर्फ आरोप है सत्यता क्या है इसको लेकर अभी भ्रम है लेकिन यदि कांग्रेस और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों की बात करें तो लगता है भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार ईवीएम मशीनों को हैक कर के चुनाव नहीं जीतते हैं। वे कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों का दिमाग हेक करके चुनाव जीतते हैं। लगातार तीसरी बार लोकसभा का चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस अभी तक भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों की रणनीति को ठीक से नहीं समझ पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने लंबी पद यात्राएं कर कांग्रेस की खोई हुई जमीन को वापस हासिल करने का रास्ता बनाया और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 लोकसभा सीट जीती मगर उसके बाद कांग्रेस राज्यों के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हारी। इसकी वजह कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की मेहनत और उनकी पदयात्राओं का राजनीतिक महत्व को समझ ही नहीं पाए, बल्कि राहुल गांधी को कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार और नेता छोटे-छोटे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी और मोदी के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाते नजर आए। भारत जोड़ो पदयात्रा और न्याय यात्रा ने राहुल गांधी की राष्ट्रीय स्तर की छवि बनाई मगर कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार राहुल गांधी को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले नेता बनाने में जुट गए। इससे कांग्रेस को फायदा होने की जगह नुकसान अधिक हुआ जिसका स्वयं राहुल गांधी मंथन कर देख सकते हैं उनके प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद कांग्रेस को चुनाव में कितना लाभ हुआ।
सवाल कांग्रेस के नेताओं का दिमाग हेक करने का है, तो कुछ समय बाद दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपने राष्ट्रीय प्रभारी और चुनाव स्क्रीनिंग कमेटी की घोषणा कर दी ह।ै यदि दोनों पर नजर डालें तो, ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस के पास अब कोई बड़ा नेता बचा नहीं है, जो कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति बनाकर चुनाव जितवा सके। दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नौसीखिए नेताओं की फौज तैनात की है। ऐसे नेता जो स्वयं चुनाव नहीं जीत पाए उन्हें कांग्रेस ने दिल्ली में कांग्रेस की वापसी कराने की जिम्मेदारी दी है। यदि दिल्ली की बात करें तो वहां लगातार 15 साल तक कांग्रेस का शासन रहा था। लेकिन उसकी मुख्यमंत्री ब्राह्मण नेता शीला दीक्षित थी और आम आदमी पार्टी की लगातार सरकार बनाने वाले अरविंद केजरीवाल का महाजन समुदाय से हैं। दिल्ली में कांग्रेस ने ब्राह्मण और महाजन समुदाय के एक भी बड़े नेता को कोई भी जिम्मेदारी नहीं दी है। कांग्रेस ने बड़ी जिम्मेदारी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को दी है। इससे कांग्रेस को फायदा होने की जगह नुकसान होने की संभावना अभी से अधिक दिखाई दे रही है। इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में उठाऐगी। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एक भी महाजन समुदाय का नेता मौजूद नहीं है। अब दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में भी महाजन नेताओं की उपेक्षा देखी जा रही है। इसीलिए सवाल खड़ा होता है कि भारतीय जनता पार्टी ईवीएम मशीनों को हैक कर चुनाव नहीं जीतती है बल्कि कांग्रेस के नेताओं के दिमाग को हैक कर चुनाव जीतती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)