
-धीरेन्द्र राहुल-

केन्द्र सरकार के अनुसार देश में पिछले साल 22 लाख लोगों को कुत्तों ने काटा। 145 करोड़ लोगों के देश में यह संख्या अजूबा नहीं लगती। लेकिन डाॅग बाइट के केस हर साल हमारी अर्थ व्यवस्था को 3 अरब 30 करोड़ का चूना लगा जाते हैं। जिसको भी कुत्ता काटता है, उसका पूरा एक सप्ताह खराब हो जाता है और परिवारजन टेंशन में रहते हैं, वो अलग।
सन् 2002 से पहले कुत्ते के काटने पर चौदह इंजेक्शन लगाए जाते थे जिसके जिक्र से ही लोगों के होश उड़ जाते थे। लेकिन अब पांच इंजेक्शन लगाए जाते हैं। एक इंजेक्शन की कीमत 300 रूपया है तो पांच इंजेक्शन की कीमत 1500 रूपए हो जाती है। यह इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों में फ्री में लगाए जाते हैं लेकिन प्राइवेट अस्पताल में कीमत चुकानी पड़ती है।
लोग तकलीफ उठाए और पैसा सरकार चुकाए, तब भी वह पैसा है तो देश का ही। अगर यहीं पैसा ( 22,00,000 × 1500= 3 अरब 30 करोड़ रुपए ) अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च किए जाए तो देशवासियों का भला हो सकता है। कई सारे मेडिकल कॉलेज खड़े हो सकते हैं।
केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, नगर निगम और नगर पालिकाएं अगर मिशन मोड पर काम करें तो इस खर्च को न्यूनतम स्तर पर लाना मुश्किल नहीं है।
एक तो यह कि स्ट्रीट डाॅग की नसबन्दी के काम में पारदर्शिता लाई जाए। कुत्तों को जहां से पकड़ा जाए और जहां छोड़ा जाए, उसकी वीडियोग्राफी करवाई जाए। इन वीडियो को वेबसाइट पर लोड किया जाए। जिसे आम नागरिक भी देख सकें। कुत्तों की नसबन्दी के बाद उन्हें एंटीरैबीज के इंजेक्शन लगाकर गले में पट्टा पहनाकर उस पर सारी सूचनाएं अंकित की जाए ताकि मोहल्ले के लोगों को भी पता रहे कि कौनसा कुत्ता वैक्सीनेटेड है और कौन सा नहीं? वैसे वैक्सीन लगाने का काम प्रत्येक मोहल्ले में जाकर भी किया जा सकता है।
कोटा के दोनों नगर निगम श्वानों की आबादी कम करने के लिए क्या कर रहे हैं? मेरे पास अधिकृत जानकारी नहीं है लेकिन बताते हैं कि इस मद में एक करोड़ खर्च किया जा रहा है। महाराष्ट्र की किसी संस्था को यह काम दिया हुआ है।
‘हम लोग’ संस्था इस मसले को लेकर जागरूक है। पिछले दिनों उनके प्रतिनिधि मण्डल ने नगर निगम के आयुक्त को मिलकर उन्हें ज्ञापन भी सौंपा कि श्वानों की नसबन्दी के काम में तेजी लाई जाए। यहां मेरा कहना है कि न सिर्फ तेजी लाई जाए जाए बल्कि पारदर्शिता भी लाई जाए। इसके लिए जरूरी है कि नसबन्दी और वैक्सीनेशन के बाद श्वानों को गले में पट्टा भी पहनाया जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
स्ट्रीट डाग्स की नसंबंदी के पश्चात इनको सेल्टर होम्म में ही रखा जाए तिथि डाग्स बाइट्स को रोका जा सके ,श्री धीरेन्द्र राहुल जी वरिष्ठ पत्रकार हैं, आपकी भावनाओं पर नगर निगम को त्वरित कार्यवाही करनी चाहिए