-बृजेश विजयवर्गीय-

(स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्)
पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा मिट्टी कहते हैं।
मृदा एक बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है। यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न प्रकार के जीवों का भरण-पोषण करती है। इसके अतिरिक्त, मृदा-निर्माण एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है। इसके एक कण के निर्माण में करोड़ों वर्ष का समय लगता है।
किंतु अपरदन की प्रक्रिया ने प्रकृति के इस अनूठे उपहार को केवल नष्ट ही नहीं किया है अपितु अनेक प्रकार की समस्याएँ भी पैदा कर दी है। मृदा अपरदन से बाढ़, सड़कों व रेलमार्गों, पुलों, जल विद्युत परियोजनाओं, जलापूति और पम्पिंग केन्द्रों को काफी हानि पहुँचती है। विश्व मृदा दिवस बढती जनसंख्या की वजह से मिट्टी के कटाव को कम करने की दिशा में काम करने, लोगों को उपजाऊ मिट्टी के बारे में जागरूक करने तथा संसाधन के रूप में मिट्टी के स्थायी प्रबंधन की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। जिस तरह पानी के बिना जीवन की कल्पना मुमकिन नहीं ठीक उसी तरह मिट्टी का भी महत्व है। करीब 45 साल पहले भारत में श्मिट्टी बचाओ आंदोलनश् की शुरुआत हुई थी। मिट्टी जीवन के चार प्रमुख साधनों भोजन, कपड़े, आश्रय और दवा का स्रोत है। पेड़ों की बेइंतहा कटाई से मृदा को बहुत नुकसान पहंुच रहा है। पेड़ों की जड़ें जो मिट्टी को बांधकर रखती हैं लेकिन पेड़ कम होने से बाढ़, तेज बारिश, या तूफानी हवाओं से उपजाऊ मिट्टी बह जाती है।
मृदा संरक्षण की विधियाँ
1.जैविक खाद
2.वन संरक्षण
3.वृक्षारोपण
4. बाढ़ नियंत्रण
5. नियोजित चराई
6. बंध बनाना
7. सीढ़ीदार खेत बनाना
8. कण्टूर कृषि
9. शास्यवर्तन