‘सड़कों की सफाई हो तो ऐसी, किसी दंगाई को फेंकने को पत्थर न मिले’

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-धीरेन्द्र राहुल-
dhirendra rahul
धीरेन्द्र राहुल
किसी शहर की अच्छी सफाई व्यवस्था की परिभाषा क्या हो सकती है? एक प्रशासनिक अधिकारी मित्र के शब्दों में कहूं तो वह सफाई सबसे अच्छी है जिसमें है किसी दंगाई को अपने रकीबों और पुलिस पर फेंकने के लिए एक पत्थर न मिले।
कोटा की कई सड़कों पर ऐसी सफाई अब नजर आती है। पहले बिजली और टेलीफोन के पोल, पत्थर, गिट्टी और मिट्टी के ढेर, ईंटें, बजरी, पेड़ों की कटी झाड़ियां और यत्र तत्र कचरा पड़ा रहता था।
लेकिन बलिहारी हो स्वच्छता अभियान की कि अपनी रैंक सुधारने के लिए कोटा की दोनों नगर निगम ने अपने क्षेत्रों में सड़कों को अच्छे से झाड़ दिया है। कोटा के प्रमुख मार्गों पर अब आपको फेंकने के लिए एक पत्थर न मिलेगा। ऐसा ही नजारा मैंने इन्दौर में भी देखा है। वहां की सड़कों पर भी कचरे की एक चिन्दी दिखाई नहीं देती।
लेकिन हमारी यानी कोटा की सफाई व्यवस्था में एक खोट अब भी दिखाई देता है और वह है कि सिर्फ सड़कों की सफाई हो रही है। लेकिन पास के नाले और नालियों में कचरे के ढेर लगे हैं तो उन्हें नहीं हटाया जा रहा है।
दानबाड़ी के पास के नाले में लगे कचरे के ढेर हो या रेलवे लोको कॉलोनी में मालडिब्बा मरम्मत कारखाने के सामने नालियों के किनारे लगे कचरे के ढेर। ऐसे ढेर महावीर नगर विस्तार योजना और बसंत बिहार के नालों में भी देखे जा सकते हैं। इनकी सफाई भी साथ होना चाहिए ताकि स्वच्छता का अहसास उसकी पूर्णता में हो।
मुझे नहीं मालूम कि स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर की नदी और नहरें शामिल है या नहीं। अगर शामिल नहीं हैं तो उन्हें शामिल किया जाना चाहिए। दशहरा मैदान की सड़कें साफ सुथरी हो लेकिन चम्बल में गिरने वाले साजीदेहड़ा के नाले में कचरा तैरता रहे तो वह अस्वीकार्य है। इसकी सफाई के लिए भी बहुत अच्छी मशीनें उपलब्ध है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
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