बुद्ध पूर्णिमा विशेष…
प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म से स्वयं का स्वरूप बदल सकता है। मन में सदाचार धारण कर मनचाहा आकार दे सकता है। मनुष्य जीवन का प्रत्येक क्षण उसका अतीत में स्थित अनन्तकालीन कर्म के प्रभाव का संयोग होता है। इस संयोग को प्रस्थापित करने हेतु किसी बाहरी शक्ति या साधनों की जरूरत नहीं है। खुल कर बहने वाले पानी के प्रवाह में जैसे- रंग तत्काल घुल-मिल जाते हैं और प्रवाह को अपने रंगों में रंगने लगते है, जीवन की स्थिति भी ऐसी ही होती है। मनुष्य जीवन इस प्रकार के कर्म के रंगों में रंग जाता है।

भारतीय दर्शन के इतिहास में बौद्ध-दर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जो विश्व की सभी वस्तुओं के क्षणिक रूप को स्पष्ट करने वाला है। मानव की दुःख-मुक्ति का मार्ग ईश्वर पर श्रृद्धा से, आत्मा की भ्रमपूर्ण समझ से अथवा पुनर्जन्म की आशा से होने वाली नहीं हैं, इसके लिए बुद्ध मनुष्य को स्वतंत्र और स्वावलम्बी होने का मार्ग बतलाते हैं। वह अमर वाक्य है ‘अप्प दीपोभव‘ अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनो। इस विचार में निहित है कि बुद्ध प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताओं में विश्वास रखते हैं। भगवान बुद्ध कहते हैं… किसी दूसरे के उजाले में चलने के बजाय अपना प्रकाश, अपनी प्रेरणा स्वयं बनो, स्वयं तो प्रकाशित हो ही, दूसरों के लिए भी एक प्रकाश पुंज की तरह जगमगाते रहो….। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म संस्कारों का निर्माता स्वयं है और उनके परिणाम भी स्वयं भोगता है। अतः प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म-संस्कारों से स्वयं का व्यक्तित्व बदल सकता है और जीवन को आनन्दमयी आकार दे सकता है।
आओ 2567 वें बुद्ध जयंति के इस पावन अवसर पर हम शीलवान बने, करूणा और मैत्री के भाव से प्रज्ञा रूपी कौशल को पुष्ट करें जिससे ब्रह्माण्ड की अनन्त सकारात्मक ऊर्जा हमारी चित्त शुद्धि के संकल्प की पाथेय बनकर सत्य के साक्षात्कार की साक्षी बने। ‘अप्प दीपोभव‘ की बुद्ध वाणी शब्द जाल नहीं अपितु इसका अन्तिम ध्येय निर्वाण की स्थिति में पहुँचना है। सोचिए घृणा के हजारों खोखले वाक्य बडे़ हैं या प्रेम का एक शब्द ? बुद्ध का दर्शन यहीं पर विशिष्ठ, सरल और सटीक है। बुद्ध मोक्ष तक ले जाने के झूठ-मूठ दावे नहीं करते अपितु मुक्ति के मार्ग प्रशस्ता है। मंगलकामनाएँ और खुशीयाँ बांटने से खुशी कम नहीं होती अपितु अनन्त खुशियाँ आपको शांति और संतुष्टि के अहसास से भर देगी। अब सोचना कैसा अपने उद्धार के लिए स्वयं पहल करनी होगी, जीवन तभी प्रकाशमय होगा, जब राग, द्वेष और तृष्णा के बन्धनों से मुक्त होकर मानव कल्याण का निर्मल भाव मन में संचरित होगा। यकीन मानिए सृष्टि के हर कोने में आनन्द रूपी फसल लहलहा उठेगी।
भवतु सब्ब मंगलय।
प्रोफेसर कृष्ण गोपाल महावर
कवि एवं लेखक
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा

















