
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान के कोटा में आज गुरूवार तड़के से सड़कों पर आवारा विचरण करने वाले मवेशियों की धरपकड़ के लिए जिला प्रशासन की पहल पर व्यापक पैमाने पर अभियान की शुरुआत की जा रही है, लेकिन यह अभियान कितना कारगर साबित होगा या होगा भी नहीं, इसको लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति है।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल की पहल पर राजस्थान में पहली बार पशुपालकों के लिए आवास एवं पशुपालन की एक ही स्थान पर व्यवस्था करने की दृष्टि से देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च करके शहर के बाहरी इलाके में यह योजना धरातल पर लाई गई है लेकिन उसके बावजूद अभी तक शहरी आवासीय क्षैत्रों में सैकड़ों की संख्या में ऐसे पशुपालक है जो छोटे पैमाने पर अपने घरों में ही व्यवसायिक स्तर पर दूध उत्पादन के लिए दुधारू मवेशी पालते हैं और दिन में दो बार उनका दूध दोहन की सामान्य क्रिया के बाद इन मवेशियों को घर के बाहर सड़कों पर डोलने के लिये छुट्टा छोड़ देते हैं जो अकसर कोटा शहर में विभिन्न स्थानों पर सड़क दुर्घटनाओं और अन्य मानवीय हादसों की वजह बनते हैं जिनमें या तो लोग अपनी जान गवा देते हैं या क ताजीवन विकलांगता का अभिशाप झेलते हैं या फिर लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रह कर अपना इलाज करवाते रहने की गंभीर यातना को भुगतते है।
हालांकि देवनारायण आवासीय पशुपालन योजना का विकास राजस्थान के तीसरे सबसे बड़े शहर कोटा शहर की
सड़कों को आवारा विचरने वाले मवेशियों बनने देने से मुक्त करने की नायाब से सोच-दृष्टि से ही बनाया गया है लेकिन शहरी इलाके में एक घर में एक दुधारू मवेशी पालने की सरकार की सोच के विपरीत कुछ लोगों का लालच हावी होने से पालतू मवेशी को आवारा-छुट्टा नही छोड़ने के नियम की पालना नहीं किए जाने के कारण कोटा शहर को अभी भी आवारा मवेशियों की समस्या से छुटकारा नहीं मिल पाया है।
कोटा के जिला कलक्टर और नगर विकास न्यास के अध्यक्ष ओपी बुनकर की अध्यक्षता में बुधवार को देवनारायण आवासीय-पशुपालन योजना की समीक्षा के लिए आयोजित एक बैठक में स्वायत्तशासी निकायों कोटा नगर निगम एवं नगर विकास न्यास की ओर से आज से संयुक्त रूप से शहर में आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए अभियान शुरू करने का निर्णय किया गया था, जिसे अमल में भी लाया जा रहा है और आवारा मवेशियों की धरपकड़ के लिए दोनों स्वायत्तशासी संस्थाओं की ओर से कर्मचारियों के अमले को भी तैनात किया गया है जो अपने स्तर पर कार्यवाही करने में लगे हुए हैं।
बैठक में यह तय किया गया है कि दोनों स्वायत्ताशासी निकायों के कर्मचारियों के दल चौबीसों घंटे कोटा शहर में एक विधिवत अभियान चलाकर आवारा मवेशियों की धरपकड़ करेंगे जिससे कोटा शहर की सड़कों को आवारा मवेशियों से मुक्त किया जा सके और पशुपालकों को अपने घरेलू पालतू दुधारू मवेशियों को घरों में ही रखकर उनका पालन करने के लिए बाध्य किया जा सके ताकि कोटा को मवेशियों के कारण होने वाली कई समस्याओं से छुटकारा मिले और जमीनी स्तर पर देवनारायण आवासीय-पशुपालन योजना के विकास के पीछे राज्य सरकार और उसके मंत्री श्री धारीवाल का सद् विचार कोटा शहर की सड़कों पर मूर्त रूप से साकार होते हुए नजर आये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)
कोटा ही क्या ।आप कहीं भी शहर के अंदर या बाहर कहीं भी यात्रा करें।बहुत ही भयावह स्थिति है। सफर जोखिमों से भरा रहता है। सबसे हास्यास्पद तो यह है कि टोल प्लाजा के आसपास ही आपको सैकड़ो आवारा मवेशी बीच सड़क पर आराम फरमाते मिलेंगे।
नगर निगम कोटा से आवारा धूमने वाले पशुओं के हटाने की कवायत पिछले कई बरसों से सुन रहे हैं लेकिन पशुपालक निगम को ठेंगा दिखाकर पशुओं को छुट्टा छोड़ रहे हैं और निगम के अधिकारी असहाय बैठे हैं. यही नहीं पशुओं को चारा बेचने वाले भी अपनी जगह पर डटे हुए हैं. दादाबाड़ी के गोविंद सिंह पार्क, जिसका संचालन नगर निगम दक्षिण करता है, इसमें चारा इकट्ठा करके बेचा जा रहा है और निगम का अमला आंख बंद करके बैठा है.