
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। तमिलनाडु की फिजा में आजकल कवि भारतीदासन की कविता वायरल हो रही है। इसमें यह कहा जा रहा है कि यदि हिंदी मेरे पर थोपा गया तो उसे हम नष्ट कर देंगे। तमिलनाडु में हिंदी का विरोध दिनोंदिन बढता ही जा रहा है, # गेटआउट मोदी, #शटअप मोदी के बाद तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में डीएमके नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदी विरोध की पंपलेट बांटी जा रही है। रेलवे स्टेशनों एवं टेलीफोन एक्सचेंज पर त्रिभाषीय बोर्ड पर हिंदी पर कालिख पोती जा रही है।
बता दूँ कि कोयंबटूर जिले के पोलाची जंक्शन एवं तिरुनेलवेली जिले का पालयमकोटै रेलवे स्टेशन के साइन बोर्ड पर डीएमके नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कालिख पोत दिया और केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते नजर आए। तिरुचिरापल्ली के सेंट्रल बस स्टैंड एवं सार्वजनिक स्थानों पर डीएमके कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की एवं हिंदी के विरोध में पर्चे बांटे।
सवाल उठता है कि केंद्र सरकार (एनईपी) समग्र शिक्षा अभियान 2020 के तहत देश के हर राज्य में एक तीसरी भाषा को अतिरिक्त रूप से जोड़ने का अभियान चलाना चाह रही हैं जिसमें 18 ऑफिशल लैंग्वेज हैं। जिसमें दक्षिण के राज्यों की भाषा तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम भी शामिल है। दक्षिणी राज्यों के छात्र अपनी सुविधा अनुसार तीसरी लैंग्वेज अपना सकते हैं। लेकिन तमिलनाडु के सत्ताधारी डीएमके सिर्फ हिंदी थोपने की ही बातें क्यों करते हैं?
सवाल यह भी उठता है कि तमिलनाडु की राजनीतिक दल मसलन एआईएडीएमके, पीएमके, एनटीके, वीसीके, कांग्रेस, डीएमडीके एवं अन्य राजनीतिक दल केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा अभियान के तहत हिंदी थोपने के बारे में सड़क पर क्यों नहीं उतर रहे हैं?
क्या आगामी 2026 की विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री स्टालिन एवं उनके पुत्र उदयनिधि स्टालिन हिंदी विरोध को जगा कर तमिलनाडु में फिर सत्ता पाना चाहते हैं?
उल्लेखनीय है कि हिंदी के विरोध में तमिलनाडु के बहुत सारे कवियों ने हिंदी लागू करने के खिलाफ कविताओं की रचना की हैं। भारतीदासन ने सर्वप्रथम 1938 में हिंदी के खिलाफ कविता लिखी थी। मुख्यमंत्री स्टालिन ने हिंदी को नष्ट करने से जुड़ी कविता सोशल साइट पर वायरल की है जिसकी भारतीदासन ने 1948 में रचना की थी। कविता के जरिए कवि भारतीदासन यह कहना चाहते थे कि यह द्रविड़ों की धरती है। यहां पर तेरी हिंदी की कोई जगह नहीं है। कवि कविता के जरिए यह कहना चाहते थे कि जिस तरह मां के स्तन का दूध का स्थान पैकेट का दूध नहीं ले सकता ठीक उसी तरह तमिलनाडु में मातृभाषा तमिल की जगह किसी भी अन्य भाषा को स्वीकार नहीं किया जा सकता। अर्थात कविता के जरिए वह कहना चाहते थे कि तमिलनाडु की मातृभाषा तमिल है और दूसरी भाषा अंग्रेजी इसके अलावा यहां किसी भी भाषा को हम स्वीकार नहीं करेंगे।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को छोड़कर सभी क्षेत्रीय दल द्रविड़ राजनीति करते हैं और लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां हिंदी के विरोध में ही राजनीति कमोबेश करते रहे हैं। ऐसे में तमिलनाडु के अन्य द्रविड़ दलों की खामोशी और डीएमके का आक्रामक रवैया यह बताता है कि आने वाले समय में डीएमके और भारतीय जनता पार्टी के बीच राजनीतिक लड़ाई और तेज हो सकते ही।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)