
-देवेंद्र यादव-

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जिस गलती का एहसास कर रहे हैं दरअसल वह गलती कांग्रेस से 70 के दशक में हुई थी, जब 1977 में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जनता पार्टी बनी थी। उस समय कांग्रेस के दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के कद्दावर नेताओं ने कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी बनाई थी। जनता पार्टी ने कांग्रेस को पहली बार केंद्र और राज्यों की सत्ता से बाहर किया था। ढाई वर्ष बाद भले ही कांग्रेस और श्रीमती इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में वापस आ गई लेकिन वह मजबूत नेता जो कांग्रेस को छोड़कर गए थे वह वापस नहीं आए। उस समय दलित नेता बाबू जगजीवन राम और किसान नेता चौधरी चरण सिंह का कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल होना कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा घातक रहा। 1977 में कांग्रेस और श्रीमती इंदिरा गांधी की हार का सबसे बड़ा कारण यह दो नेता ही बने, क्योंकि दलित, आदिवासियों, किसान और पिछड़ा वर्ग के लोगों को लगा कि देश का प्रधानमंत्री दलित नेता बाबू जगजीवन राम होंगे। उधर किसान और पिछड़ा वर्ग के लोगों ने सोचा कि देश का प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह होंगे। लेकिन प्रधानमंत्री बने कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल होने वाले नेता मोरारजी देसाई। दलित, आदिवासी और किसान और पिछड़ा वर्ग ने इसे अपने साथ छलावा समझा और ढाई साल बाद जब देश में समय से पहले चुनाव हुए तो कांग्रेस ने दमदार वापसी की। 1980 में कांग्रेस कि केंद्र की सत्ता में वापसी करने में बड़ा योगदान चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम की जनता पार्टी सरकार से बगावत भी रहा। चौधरी चरण सिंह कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री तो बने लेकिन उनकी सरकार अल्प समय में ही गिर गई और देश में समय से पहले चुनाव हुए और कांग्रेस ने सरकार बनाई।
श्रीमती इंदिरा गांधी 1980 में केंद्र की सत्ता में वापस तो आ गई लेकिन वह और कांग्रेस देश में बाबू जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह जैसे नेता नहीं बना पाई। हालांकि श्रीमती इंदिरा गांधी ने अनेक बार कोशिश की इन समाजों के लोगों को बाबू जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह जैसे नेता बनाने की। रामधन, बीपी मौर्य, बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार, सुशील कुमार शिंदे, चांदराम जैसे नेताओं को कांग्रेस लेकर आई। मगर यह बाबू जगजीवन राम की तरह बड़े नेता नहीं बन पाए! बाबू जगजीवन राम जैसा बड़ा नेता बनाने में ना तो श्रीमती इंदिरा गांधी सफल हुई और ना ही उनके बाद राजीव गांधी और ना ही श्रीमती सोनिया गांधी सफल हुई। हालांकि कोशिश सभी ने की।
राहुल गांधी ने दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाकर बड़ी कोशिश की है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 60 सीट भी नहीं जीत पाई थी लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाया कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीट जीती और तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनाई। इस जीत ने राहुल गांधी को एहसास कराया कि जब तक कांग्रेस दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के लोगों में से बड़े नेता नहीं बनाएगी तब तक कांग्रेस पार नहीं पाएगी। शायद इसीलिए राहुल गांधी भरे मंच से कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि हमसे बहुत बड़ी भूल हुई। हमें यह काम पहले ही शुरू कर देना चाहिए था लेकिन हम नहीं कर पाए अफसोस है। एक बात और देश के विभिन्न राज्यों में जिन क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ और उन क्षेत्रीय दलों में कांग्रेस को अधिक नुकसान पहुंचाया उनमें से अधिकांश क्षेत्रीय दल दलित आदिवासी और पिछड़ी जाति के लोगों ने ही बनाए हैं। जिन लोगों ने अपने क्षेत्रीय दल बनाए वह लोग या तो कांग्रेसी थे या कांग्रेस विचारधारा को मानने वाले लोग थे। यदि कांग्रेस इन जातियों के लोगों को संभाल कर रखती और नेता बनाती तो शायद कांग्रेस को अभी यह दिन देखने को नहीं मिलते। शायद राहुल गांधी को एहसास हो गया है और इसीलिए वह दलित आदिवासी पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग में नई लीडरशिप डेवलप करने में जुट गए हैं। इसमें बड़ा योगदान गांधी परिवार के भरोसेमंद नेता पूर्व आईएएस अधिकारी के राजू का है। अब राहुल गांधी अपने इस मिशन में कितने कामयाब होते हैं यह तो समय बताएगा। राहुल गांधी ने बहुत बड़ा बीड़ा उठाया है। उनके इस कदम से दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के लोगों में उत्साह है। यह उत्साह 2024 के लोकसभा चुनाव में नजर भी आया। इस उत्साह में बढ़ोतरी कर 2029 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कितना भुना पाती है इसका इंतजार करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)