
पीएम मोदी समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने के मामले में बेजोड़ हैं। उन्होंने अपने पहले दो कार्यकाल में देश की ऐसी दो सबसे पेचीदा समस्याओं का समाधान किया है, जिनके बारे में देश के अन्य राजनेता उस स्तर तक जाकर सोच भी नहीं सकते थे। ये हैं कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति और राम मंदिर का निर्माण। इन दोनों समस्याओं को समाधान के मुकाम तक पहुंचाना किसी भी तरह आसान नहीं था।
-पीएम मोदी के जन्म दिवस पर विशेष
-द ओपिनियन-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। मोदी आजादी के बाद देश को मिले उन विलक्षण प्रधानमंत्रियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने कामकाज से इतिहास रचा है। उन्होंने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद संभालकर भी इतिहास रचा है और चुनावों में पक्ष विपक्ष ने बड़ी सफलता दर्ज की है जिससे यह साबित होता है कि तमाम आलोचनाओं के बावजूद हमारी निर्वाचन प्रक्रिया बहुत मजबूत और पारदर्शी है। लोकतंत्र में असहमति या विरोध सामान्य बात है, लेकिन किसी समस्या को समाधान तक पहुंचाना आसान नहीं है और पीएम मोदी समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने के मामले में बेजोड़ हैं। उन्होंने अपने पहले दो कार्यकाल में देश की ऐसी दो सबसे पेचीदा समस्याओं का समाधान किया है, जिनके बारे में देश के अन्य राजनेता उस स्तर तक जाकर सोच भी नहीं सकते थे। ये हैं कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति और राम मंदिर का निर्माण। इन दोनों समस्याओं को समाधान के मुकाम तक पहुंचाना किसी भी तरह आसान नहीं था। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस व भाजपा समेत तमाम क्षेत्रीय पार्टियां वहां चुनाव मैदान में हैं। यानी कश्मीर लोकतांत्रिक राह पर है। आज हालत यह है कि दशकों तक चुनावों का बहिष्कार करने वाले जमायत ए इस्लामी के नेता भी निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में है। कांग्रेस ने एक दिन पहले ही जम्मू कश्मीर के लिए अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है, लेकिन उसकी भी यह हिम्मत नहीं बन पड़ी कि वह अनुच्छेद 370 की बहाली का वादा कर सके। हालांकि उसने ऐसी पार्टी नेशनल काॅन्फ्रेस के साथ गठबंधन किया है, जो 370 की बहाली का वादा करती है। कांग्रेस ने क्यों मौन साध लिया क्योंकि उसे भारत के जनमानस का कहीं न कहीं आभास होगा कि वह इस मुद्दे पर क्या सोचता है। यही पीएम मोदी की सफलता है। इस बात से कोई इनकार नहीं है कि कश्मीर में आतंकवाद जारी है। सीमा पार से आतंकवादी आज भी आ रहे हैं, लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि आतंकवाद को समर्थन सीमा पार से किस हद तक मिल रहा है। आतंकवादियों के पास से मिल रहे सैन्य स्तर के चीनी मूल के हथियार इस बात के संकेत हैं कि सीमा पार बैठे दुश्मन किस हद तक जाकर उनकी मदद कर रहे हैं। इसके बावजूद हालात नियंत्रण के बाहर नहीं है। हाल के दिनों में जम्मू क्षेत्र में आतंकवादियों ने जिस तरह से पहाड़ियों पर मोर्चाबंदी की और सैन्य बलों पर हमले किए उससे साफ है कि यह समान्य आतंकियों का काम नहीं है। उन्हें सैन्य स्तर का प्रशिक्षण हासिल है। जम्मू कश्मीर में सुरक्षा हालात बहुत कठिन हैं, लेकिन सरकार ने पूरे दमखम के साथ हालात को संभाला है और उसने कहीं कमजोरी नहीं दिखाई दी। विदेशी मोर्चे पर भी खासकर इस्लामी दुनिया और अमेरिका को भी भारत ने कश्मीर मसले पर पाकिस्तानी सुर में सुर नहीं मिलाने दिया। इस मामले में मुस्लिम देशों के साथ रिश्तों को मजबूती देने के लिए मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए प्रयास विलक्षण हैं। एक बार कांग्रेस नेता शशि थरूर ने यही बात कही थी कि मोदी सरकार ने इस्लामी देशों खासकर खाड़ी देशों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए जितनी मेहनत की है, कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में उतना काम नहीं हुआ। खाड़ी में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर स्थित संयुक्त अरब अमीरात व ओमान जैसे देशों के साथ सैन्य संबंध रणनीतिक भागीदारी के स्तर तक मजबूत किए गए हैं, वहीं सउदी अरब व अन्य- इस्लामी देशों के साथ भी रिश्ते मजबूत किए गए हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि करीब 80-90 लाख भारतीय खाड़ी देशों में कार्यरत हैं और एक बहुत मोटी रकम कमा कर भारत में भेजते हैं। इजराइल व अन्य खाड़ी देशों के बीच रिश्तों में संतुलन साधना आसान नहीं है। एक हमारी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है तो दूसरे देश हमारी उर्जा सुरक्षा के लिए अपरिहार्य हैं। मोदी सरकार ने यह दोनों चीजे ही बहुत ही चतुराई के साथ सुनिश्चित की हैं। चीन और पाकिस्तान के लाख प्रयासों के बावजूद भारत ईरान में एक बंदरगाह का संचालन कर रहा है जिससे उसकी मध्य एशिया तक पहुंच आसान हो गई। वहीं तालिबान को भी पाकिस्तान की गोद में नहीं बैठने दिया, इस मोदी सरकार की सफलता है। चीन के मोर्च पर सरकार की कांग्रेस बहुत बार आलोचना करती है, लेकिन क्या 1962 के सैन्य झटके बाद चीन सीमा पर सैन्य ढांचे का निर्माण उतनी तेजी से हुआ जितनी तेजी से आज हो रहा है। करीब 50 हजार सैनिक आज भारी साजोसामन के साथ चीनी सीमा पर तैनात हैं और चीन के हरसंभव दबाव के वावजूद मजबूती से मोर्चा संभाले हुए हैं। यह नए भारत का आत्म विश्वास बताता है। यह गौर करने लायक बात है कि शरद पवार जैसे अनुभवी और वरिष्ठ नेता ने चीन के मसले पर सरकार को कभी कठघरे में खड़ा नहीं किया है। अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्तों के बीच रूस के मोर्चे पर साधा गया संतुलन भी विलक्षण है। यूरोपीय देशों की आंखों में आंखे डालकर बात करते हुए भारत ने अपनी ताकत का एहसास कराया है। लेकिन सरकार को अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बहुत कुछ करना बाकी है। हर हाथ को काम मिले इसके लिए अति लघु और सूक्ष्म उद्योंगों का जाल बिछाना और उनके जीवित रहने का इंतजाम करना जैसे काम बड़े स्तर पर किए बिना देश में बेरोजगारी से मुक्ति नहीं मिल सकती। यह कौशल आधारित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। सरकार को इस दिशा में अहम कदम उठाने होंगे। पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल में विलक्षण सफलता अर्जित की है और यह सिलसिला जारी रहना चाहिए। देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए अभी अथक प्रयासों की जरूरत है।