tiger

कृष्ण बलदेव हाडा
कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क में फिर से बाघ बसाना तो दूर पूर्व में यहां के बाघ-बाघिनों के अस्तित्व को बचाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ वन विभाग अब मुकुंदरा से पहले रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को आबाद करने की पहल कर रहा है। इसी कोशिश के तहत पिछले दिनों सवाई माधोपुर के रणथम्भौर नेशनल पार्क से एक बाघिन टी-102 को ट्रेंकुलाइज करने के बाद रामगढ़ लाकर छोड़ा गया है। हालांकि इसी साल टाईगर रिजर्व का दर्जा हासिल करन वाले इस रिजर्व में बाघ छोड़ा जाना उन वन्यजीव प्रेमियों को रास नही आ रहा जो मुकुंदरा में बाघ छोडने की उम्मीद लगाये हुये थे व इसके लिये वन विभग की कड़ी निंदा भी की जा रही है लेकिन रामगढ में बाघिन को छोड़ने से हाडोती में वाइल्ड लाइफ ट्जूरिज्म के हाडोती सर्किट की आशा जगी है।
इस बाघिन को अभी अगले एक पखवाड़े तक के लिये रामगढ के सॉफ़्ट एनक्लोजर रखा गया है जिसे पूरी तरह स्वस्थ हालत में वन क्षैत्र में छोड़ा जायेगा। चार वर्ष की यह बाघिन रणथम्भौर की बाघिन एम-73 की बेटी है व खुद भी एक बार चार शवकों को जन्म दे चुकी है जिसमें से एक की मृत्यु हो गई थी।

बाघों को बसाने की विपुल संभावनाएं 

बूंदी जिले में स्थित रामगढ़ को हाल ही में रणथम्भौर, सरिस्का और मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क के बाद राजस्थान का चौथा रिजर्व घोषित किया गया है। रणथम्भोर व मुकुंदरा रिजर्व के बिल्कुल जुड़वा-नजदीक व चंबल नदी से सटे होने के कारण यहां बाघों को बसाने की संभावनाएं भी विपुल है। इसी नजदीकी के कारण रणथम्भौर में बाघों की बढ़ती संख्या की वजह से पूर्व में भी वहां से अकसर बाघ नई टेरिटरी की तलाश में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में आते रहे हैं और वर्तमान में वहीं से आया एक बाघ टी-115 पिछले दो साल से यहां स्वछंद विचरण कर रहा है।

चौथा टाइगर रिजर्व

20 मई 1982 में राज्य सरकार के वन्यजीव अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद 303.43 वर्ग किलोमीटर में फैला अब यह राज्य का चौथा टाइगर रिजर्व बन चुका है जिसमें आज एक बाघिन के छोड़े जाने के बाद यहां इनकी संख्या बढ़कर दो हो गई है। रामगढ़ में पर्याप्त प्रेबेस होने के कारण भी रणथम्भौर में बाघ-बाघिनों की लगातार बढ़ती आबादी को देखते हुए वहां से यह बाघिन लाने का फैसला किया गया था और वन्यजीव विभाग के अधिकारी ने उम्मीद जताई है कि आने वाले कुछ ही महीनों में यहां और बाघों को आबाद किया जाएगा।

सेतु साबित होगा

कोटा अंचल में बाघों के संरक्षण की दृष्टि से रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हाडोती में स्थित मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क से लेकर हाडोती की पठारी पर स्थित रणथम्भौर नेशनल पार्क के मध्य में होने के कारण यह दोनों के बीच बाघों सहित अन्य वन्यजीवों के सुरक्षित आवागमन के लिए सेतु साबित होगा। वैसे भी रामगढ़ अभयारण्य को रणथम्भौर नेशनल पार्क की बाघिनों के मेटरनिटी होम यानि जच्चा घर एवं नर्सरी भी माना जाता रहा है क्योंकि यहां सुरक्षित वन क्षेत्र और प्रेबेस होने के कारण पूर्व में भी गर्भधारण के बाद रणथंबोर की कई बाघिने यहां आकर शावकों को जन्म दे चुकी है, लेकिन बाद में यह सभी शावक अपने कुनबे के साथ वापस रणथम्भौर नेशनल पार्क लौट गए।
कोटा जिला में सांगोद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और राज्य वाइल्ड लाइफ़ बॉर्ड़ के सदस्य भरत सिंह कुंदनपुर ने रणथम्भौर नेशनल पार्क से लाकर बाघिन टी-102 को रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में छोड़े जाने का स्वागत किया और कहा कि यह सराहनीय कदम है।  भरत सिंह ने बताया कि उन्होंने भी कुछ समय पहले वन विभाग के अधिकारियों के साथ इस अभयारण्य का दौरा किया था व उस क्षेत्र का भी अवलोकन किया था जहां बाघिन को छोड़ा जाना प्रस्तावित किया था। यह बाघों के प्राकृतिक आवास के लिए उपर्युक्त स्थान है। इससे यहां बाघों का कुनबा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी क्योंकि यहां एक बाघ पहले से ही मौजूद है। इसके विपरीत पगमार्क फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष देवव्रत हाडा का कहना है मुकुंदरा में टाइगर को बसाने का ज्यादा बेहतर माहौल है इसलिये वहां बाघ बसाने के लिये सार्थक पहल करने की जरुरत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments