आंखों देखीः शहर छोटा लेकिन हस्तियां नामवर

प्रतिमा किस दिन स्थापित की गई इस का कोई उल्लेख वहां नहीं मिलता। खेल प्रेमियों विशेष हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखने वाले यह जरुर जानना चाहते हैं कि इस प्रतिमा की स्थापना किस तरह और किसने की।

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शहर से दिखाई देती ध्यानचंद की प्रतिमा। फोटो देवेन्द्र कुमार शर्मा

-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

देवेन्द्र कुमार शर्मा

बुंदेलखंड में झाँसी एक छोटा लेकिन एतिहासिक दृष्टि से प्रमुख शहर है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के इस शहर का एमपी और राजस्थान से भी कनेक्शन है। यह शहर पहुज नदी के किनारे पर बसा है। शहर भले ही छोटा हो लेकिन यहां महान विभूतियों ने जन्म लिया और यहां से नजदीकी रिश्ता रहा। चाहे 1857 की क्रांति की महान विभूति और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई हों या हॉकी के जादूगर ध्यानचंद। इनमे अलावा बहुत से जाने माने लेखक, कवि और इतिहासकारों ने झांसी का नाम विश्व पटल पर अंकित किया। इन महापुरुषों में राष्ट्र कवि मैथिलि शरण गुप्त, प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा और झाँसी के मंडल रेलवे ऑफिस में तारबाबू के पद पर काम कर ने वाले हिंदी साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी प्रमुख हैं। इनके बाद आते हैं फ़िल्मी दुनिया के गीतकार इन्दीवर जिनका जन्म बरुवासागर में हुआ था।

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लाइट की खामियों के कारण प्रभावित ध्यानचंद की प्रतिमा। फोटो देवेन्द्र कुमार शर्मा

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द् झांसी में पले बढे और 1928,1932 और 1936 के ओलिंपिक खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाने में अहम भूमिका निभाई। झाँसी के लोग उन्हें आज भी दद्दा के नाम से याद करते हैं और उनके नाम से झाँसी में एक हॉकी ग्राउंड और एक स्टेडियम है। ध्यान चंद का कोटा से भी नाता रहा है। वह कोटा में आयोजित श्रीराम हॉकी प्रतियोगिता के दौरान आते रहे हैं। उनके एक बेटे यहां हॉकी के कोच रहे तो दूसरे बेटे ओलंपियन अशोक कुमार यहां खेले हैं।
कुछ वर्ष पहले और शायद 2004 में झाँसी शहर की एक पहाड़ी पर मेजर ध्यान चन्द की प्रतिमा स्थापित की गई जो सीमेंट कंक्रीट से बनी हुई है।
18 नवम्बर को शाम और 19 नवम्बर को सुबह मैंने पहाड़ी पर चढ़ कर हॉकी के जादूगर की इस प्रतिमा को निहारा। इसके पहले करीब दो किलो मीटर की दूरी से मैंने प्रतिमा के फोटो खींचे। प्रतिमा स्थापित करनेवालों ने बहुत अच्छा काम किया है लेकिन प्रतिमा के पीछे जो लाइट लगाईं गई है वो रात को प्रतिमा को प्रकाशित नहीं करती बल्कि दिन में ली गई फोटो को और खराब करती है। इस लाइट को पीछे से हटा कर आगे लगाया जाना चाहिए।

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ध्यानचंद की प्रतिमा। फोटो देवेन्द्र कुमार शर्मा

एक बात और जो मुझे अखरी वो ये कि प्रतिमा किस दिन स्थापित की गई इस का कोई उल्लेख वहां नहीं मिलता। खेल प्रेमियों विशेष हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखने वाले यह जरुर जानना चाहते हैं कि इस प्रतिमा की स्थापना किस तरह और किसने की।

(लेखक पर्यावरण, वन्य जीव एवं पक्षियों के अध्ययन के क्षेत्र में कार्यरत हैं)

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