
-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा। व्यस्त शहरी जीवन में सुबह के उगते सूरज को देखना आम जन के नसीब में नहीं है। आधुनिक काम काज और दिनचर्या में बदलाव का परिणाम है कि जहां लोग देर रात जागते हैं वहीं सुबह उठने का कोई समय ही नहीं है। देर से सोकर उठने की आदत और कांक्रीट की विशालकाय इमारतों में रहने के कारण हमें प्रकृति से भी दूर कर दिया है। लोग खुले स्थान के लिए तरस गए हैं ऐसे में सुबह के उगते सुर्ख सूरज के दर्शन मुश्किल हो गए हैं। सुबह-सुबह सूरज का साथ हो, गुनगुनाते परिंदों की आवाज हो।। यह तो कविताओं और कहानियों में ही रह गया है। यदि आपको उगते सूर्य की लालिमा को देखना और उस समय की प्रकृति और माहौल को देखना हो तो तडके उठकर खुले स्थान पर आना होगा।

हालांकि हम अक्सर किताबों में पढते हैं कि प्रकृति वरदान है’ लेकिन सही मायने में इसे प्रयोग में नहीं लाते। हमारी कुदरत ने हमें बहुत कुछ दिया है और अभी तक दे भी रही है। लेकिन हम इसके प्रति बेपरवाह बने हुए हैं। जबकि सुबह जिस समय सूरज उदय हो रहा होता है और अपनी पहली किरणें हम पर बरसाता है, बस वहीं कुछ मिनटों की किरणें सबसे अधिक लाभदायक होती हैं।