
गर्म नदियाँ तैर कर – कृति
कृतिकार- श्री बृजेन्द्र कौशिक
-डॉ अनिता वर्मा-

मानव जीवन विविध अनुभूतियों से भरा हुआ है। मनुष्य अपनीअपनी अनुभूतियों के सच को मानता और महसूस करता है, पर साहित्य सृजन सभी को साथ लेकर चलता है जिसमें सब जन को समाहित करते हुए अपनी बात कही जाती है। साहित्य समाज का दर्पण है ,समाज में जो कुछ भी व्याप्त है उसी का प्रतिबिंब साहित्य होता है। इन सबमें साहित्यकार अति संवेदन शील होता है। वह समाज और परिवेश में होते हुए परिवर्तन की आहट को शीध्रता के साथ महसूस कर लेता है।मानव जीवन विविधताओं से भरा हुआ है। मानव के विविध क्रिया कलाप और व्यवहार उसके परिवेश को दर्शाता है। आज वैश्विक परिदृश्य पर सब कुछ परिवर्तित हुआ है। व्यक्ति आत्म केंद्रित हो रहा है। सम्बंधों की परिभाषाएँ बदल रही है। व्यक्ति की सोच बदल रही हैं। जीवन जीने के उसके अपने तरीके और सोच है।परंतु यह प्रश्न विचारणीय है कि वास्तव मानव जीवन की सार्थकता क्या है। हमारा मानव धर्म क्या है?
हमारे सामाजिक सरोकार क्या है। यह आज के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है प्रस्तुत कृति’ गर्म नदियाँ तैर कर ‘ छोटे छोटे सूक्त वाक्यों के माध्यम से जीवन के कटु यथार्थ को तो बयान करती है साथ ही जीवन दर्शन को बड़े ही सरल भाषा में हमारे समक्ष प्रस्तुत भी करती है ।चार चार लाईन की इन पंक्तियों में जीवन का गहन भाव चिन्तन और सार समाहित है। पुस्तक में सृजन के सरोकार, अभिधेय, मेरा मानना है कि अनुक्रम है जिसमें कृतिकार के सृजन सरोकार उद्घाटित हुआ है। वस्तु सोपान में पठनीय ,मननीय ,करणीय में कृति की सम्पूर्ण विषयवस्तु विभाजित है।जिसमें जीवन अनुभूतियाँ व जीवन का यथार्थ व्यक्त है। कृति के भीतर से गुजरते हुये अनेक प्रकार की मानव मन की परते खुलती जाती है। पुस्तक में मानव मन का संघर्ष ,सरोकार जीवन की कला को व्याख्यायित करती महत्वपूर्ण कृति है। जिसमे मानव मन की सोच प्रस्तुत है। सुक्तीयों के वाक्य सीधे मर्म को स्पर्श करते हुए सीख देते हैं। जगह जगह मानव जीवन की सार्थकता पुस्तक में व्यक्त है।कुछ कहने पर स्वयं अमल करें। पर उपदेश कुशल बहुतेरे ‘ कहावत को चरितार्थ ना करें। नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन के लिये कवि मन में आक्रोश है वह कहता है जिसका हक उसकी प्रशंसा/करना नैतिक फर्ज है/पर अपात्रों के कसीदे पढ़ना/ है खुद का पतन।
मन व पवित्र आचरण के विषय में कवि कहता है।” स्वस्थ रहने को/ सकारात्मक समझ अनिवार्य है/ मानसिक विकृति अधिक घातक है/ दैहिक व्याधि से। ” सचमुच मन की स्वच्छता अनिवार्य है। जिम्मेदार नागरिक बन कर समाज परिवार और राष्ट्र हित में सोचने की सीख स्थान स्थान है।अहं का विगलन मनुष्य को सम्मान दिलाता है।मानव को मानव से जोड़ता भी है।जहाँ अहं समाप्त हो जाता है वहाँ सब सहज और सामान्य हो जाता है। मानव मन के फासले मिट जाते हैं–देखिये” अहम का अस्तित्व/ होता है खड़ी लकीर सा/ वक्र रेखा नम्रता/ शालीनता की द्योतिकी। “प्रतिस्पर्धा के इस युग में सभी एक दूसरे को मात देने की कोशिश में हैं स्वयं को सर्वोपरि मानने की सोच मानव मन की शान्ति भंग कर रहा है इस कटु यथार्थ को व्यक्त करते हुए कवि बृजेन्द्र कौशिक जी लिखते हैं–“द्वेष ईर्ष्या प्रतिस्पर्धा की /नहीं जो दौड़ में /अपनी क्षमता का नहीं /वे रोज करते आकलन ,,,! सामाजिक उत्तरदायित्व निर्वहन सामजिक होने की पहली शर्त है जिसका पालन करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म भी है।यही जीवन की सार्थकता है—“एक से गुण धर्म यद्यपि /व्यष्टि और समष्टि के /व्यक्ति का दायित्व होता/ किंतु अधिक समाज से!!!! लोकहित सर्वोपरि है यही हमारे जीवन मूल्य हैं। उदहारण देखिये—-” लोकहित उपकार में/ कोई गुजारे जितने दिन/ उतने दिन ही स्वयं /जुड़ जाते हैं उसकी उम्र में ।”इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में जन कवि श्री बृजेन्द्र कौशिक ने जीवन उपयोगी छोटी छोटी सार गर्भित पंक्तियाँ लिखी हैं जो मानव को सही दिशा-निर्देश और अमूल्य मानव जीवन को जीने की सीख प्रदान करती है। जिसमें मन ,वचन, कर्म ,चिंतन आम आदमी सोचने का ढंग, जीवन संघर्ष हौसला ,प्रेरणा, उत्साह, ज्ञान ,आत्मिक बल ,लोक, लौकिकता मानवता के प्रति हमारा कर्तव्य सभी पर कवि ने अपनी कलम चलाई है। निश्चित रूप से यह पुस्तक जीवन दर्शन की सीख से परिपूर्ण है। गागर में सागर भरा हुआ है ।भाषा भावाकूल है। सहज व सरल ग्राह्य है। पुस्तक के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं ।यह पुस्तक संग्रहणीय और पठनीय है। शुभकामनाओं सहित आशा करती हूँ आगे भी इस प्रकार की ज्ञानोपयोगी पुस्तक पढ़ने को मिलती रहेगी। आपकी सृजनात्मकता लोक हित में आप यूं ही बनी रहे। सृजनधर्मीता बनी रहे और कलम
अनवरत चलती रहे इन्हीं कामनाओं के साथ।
-डॉ अनिता वर्मा-
– सह आचार्य (हिन्दी विभाग), राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा (राज.)