प्राण बचाने के लिए दौड़ते मनुष्य से बड़ा कोई नहीं होता

81uyqh3oqsl. sl1500
photo courtesy amazon.in

-विवेक कुमार मिश्र-

vivek mishra 162x300
डॉ. विवेक कुमार मिश्र

प्रेमचंद की कहानी ‘मंत्र’ दो दुनियाओं की कहानी है । एक दुनिया वह है जहां गरीबी है , इंसानियत है और अपना फर्ज है। इस दुनिया के पास संसाधन के नाम पर कुछ न हो पर मानवीय संवेदना इतनी ज्यादा है कि बड़े लोग इनके आगे कहीं नहीं ठहरते । हमारी दुनिया को बड़ा बनाने में आश्चर्यजनक ढ़ंग से इनका योगदान है ये लोग अपने श्रम , अपनी मेहनत के साथ बस जीने भर की इच्छा पाले चल रहे होते हैं पर कई बार वह भी भारी हो जाता है । प्राण रक्षा के लिए कहीं भी जा सकते हैं। पहला धर्म प्राण रक्षा का है जिसे ये प्राण पण से करते हैं वहीं जब इनके बेटे के प्राण की बात आती है तो डॉक्टर चड्ढा एक क्षण के लिए भी रुककर नहीं देखते । बच्चा बचता या नहीं बचता बूढ़े भगत को संतोष हो जाता पर यह भी संभव नहीं हो पाता । डॉक्टर के पास समय नहीं है । उनके खेलने का यह समय है । यहां भावनाएं, संवेदना एक एक कर टूट जाती हैं । बूढ़ा भगत गिड़गिड़ाते रह जाते पर डॉक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने चले जाते हैं । यह दूसरी दुनिया है जहां इफरात पैसा है । सब कुछ है । पर अपने मनोरंजन व आमोद प्रमोद के आगे किसी और के लिए कुछ भी नहीं है । अपने सुख के आगे दूसरे की जान भी चली जाए तो चली जाए । इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता । प्रेमचंद इस संसार के यथार्थ को बूढ़े भगत और डॉक्टर चड्डा की जीवन स्थितियों से जोड़कर दिखाते हैं । ‘बूढ़े ने घुटने टेककर ज़मीन पर सिर रख दिया और बोला – दुहाई है सरकार की , लड़का मर जायेगा ! हुजूर चार दिन से आंख नहीं …’
बूढ़ा भगत जो गरीब है जिसके छः बेटे पहले ही मर चुके हैं। जिसका आखरी बेटा बीमार होकर मर जाता पर डॉक्टर चड्ढा एक नजर उठाकर भी नहीं देखते । उनके आमोद प्रमोद और खेल के आगे किसी के प्राण का क्या ? यह तनाव यह प्रश्न ही प्रेमचंद को कुरेदता है कि कोई किसी की जान के आगे कैसे खेलने जा सकता ? यहां मनुष्यता तार तार होते दिखती है।
‘डॉक्टर चड्ढा ने कलाई पर नज़र डाली ,केवल दस मिनट का समय और बाकी था। गोल्फ स्टिक खूंटी से उतारते हुए बोले – कल सवेरे आओ कल सवेरे आओ। यह हमारे खेलने का समय है।’ क्या यह खेलना इतना जरूरी है जब किसी की जान जा रही हो तो खेलने का , अपने समय का क्या औचित्य ? पर गरीब की कौन सुनता यहां भी यही होते देखते हैं कि बूढ़ा भगत गिड़गिड़ाता रहा जाता और डॉक्टर चड्ढा चल देते हैं – एक पूरी दुनिया उजड़ जाती है, बूढ़े की उम्मीद पर पानी फिर जाता पर इससे क्या ? डॉक्टर को तो खेलने जाना है । यह बूढ़ा डॉक्टर चड्ढा के कदमों में अपनी पगड़ी भी रख दिया। बेटे के लिए । फिर भी चड्डा की नज़र फिरती नहीं । और चड्डा गाड़ी स्टार्ट कर गोल्फ खेलने चले जाते हैं।
‘संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं जो अपने आमोद प्रमोद के आगे किसी की जान की परवाह नहीं करते। शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था । सभ्य संसार इतना निर्मम इतना कठोर है । इसका ऐसा मर्म भेदी अनुभव अब तक नहीं हुआ था । ‘ यहां प्रेमचंद ने अमीरों की दुनिया के खोखलेपन को , दिखाया है जहां मनुष्य से बड़ा शौक हो जाता है । फ़र्ज़ से बड़ा समय हो जाता है । कल आओ ,कल आओ कहते डॉक्टर चड्ढा का चला जाना बहुत कुछ कह जाता है । दूर तक बूढ़े पिता की आंखें देखती रहती है । उसे विश्वास ही नहीं होता कि कोई मनुष्य ऐसा भी कर सकता है । अंत में – ‘जिधर से डोली आई थी उधर को डोली चली गई ।’ यहां साफ है कि डोली का जाना प्राण के चलें जाने का संकेत है । इसके बाद की स्थिति विडम्बना पर प्रेमचंद ने टिप्पणी की है कि जब दुनिया उजड़ जाती है तो क्या होता है । कैसी यातना से गुजरना पड़ता है और पीड़ा गरीब और अमीर की एक जैसी ही होती है । वे लिखते हैं कि ‘ उन्हें किसी ने रोते देखा न हंसते देखा उनका सारा समय जीवित रहने में कट जाता था । मौत द्वार पर खड़ी थी रोने या हंसने की फुर्सत कहां।’ यहीं पर प्रेमचंद ने उस स्थिति को भी दिखाया है समय किस तरह पलटता है। कालचक्र में सब आते हैं । समय सबके साथ पलटी मारता है। आज जो डॉक्टर खेलने जा रहे हैं वही अपनी दुनिया को पूरी तरह उजड़ते और उखड़ते देखने की स्थिति में आ जाते हैं। होता यह है कि कुछ दिनों के बाद बेटे कैलाश का जन्मदिन है । शहर के सबसे प्रतिष्ठित डॉक्टर के बेटे का आयोजन है तो भव्यता के साथ आमोद प्रमोद के सारे साधन जुट जाते हैं । यहां डॉक्टर के बेटे की प्रेमिका मृणालिनी है जो कैलाश से सांप दिखाने को कहती है । कैलाश एक बार मना कर देता है । पर प्रेमिका और दोस्तों की बातों में इतना आ जाता है कि इसी आमोद प्रमोद के बीच सांपों का खेल दिखाने लगता है । इसी बीच सांप डॉक्टर के बेटे को काट लेता है । देखते-देखते रंग में भंग पड़ जाता । पूरे शहर में हल्ला मच जाता । चारों तरफ सन्नाटा छा जाता । कैलाश की आंखें देखते-देखते पथरा जाती हैं । चेतना जाने लगती है । इस बीच झाड़-फूंक और जहर उतारने वाले सभी आते पर कुछ नहीं होता । किसी तरह यह सूचना बूढ़े भगत को मिलती है । वह प्रश्नों के द्वंद्व में घिरा है क्या करें ? क्या न करें ? अंत में मानवीय कर्तव्य के वशीभूत खोकर बूढ़ा भगत डॉक्टर के घर की ओर दौड़ पड़ता है । उसे जो प्राण बचाना है । यहां बूढ़े भगत के द्वारा प्राण बचाना ही सच्ची मानव सेवा है । जिसे प्रेमचंद ने एक बूढ़े गरीब भगत के हाथ से करा कर हमारी दुनिया में मानवता के प्रकाश पथ को रेखांकित करने का काम किया है । बूढ़े भगत को बस सूचना मिलती है कि डॉक्टर चड्ढा के बेटे कैलाश को सांप ने डस लिया है । यह खबर सुनने के बाद एक बार सामान्य प्रतिक्रिया के रूप में बूढ़े भगत के मन में वह सब आता है जो एक सामान्य मनुष्य में आता है । वह मना कर देता है कि मैं नहीं जाऊंगा । इसी डॉक्टर ने मेरे बेटे को देखा तक नहीं था । पर बूढ़े भगत को नींद नहीं आतीं । बार-बार मन और चेतना उसे डॉक्टर के बेटे को देख लेने को कहती है। बूढ़े भगत की मानवता इस तरह जाग जाती है कि वह बदला लेने की जगह आधी रात में दौड़ते भागते डॉक्टर के घर पहुंचता है । जब वहां रोने को भी कोई नहीं बचा था । केवल आकाश के तारे रो रहे थे तब बूढ़े भगत ने डॉक्टर से कहा कि एक बार में बेटे को देखना चाहता हूं । डॉक्टर चड्ढा को कोई उम्मीद नहीं है पर ऐसी स्थिति में डॉक्टर चड्ढा बड़े भगत को वहां ले जाते हैं जहां कमरे में कैलाश लेटा है । डॉक्टर चड्ढा से बूढ़ा भगत बोलता है अभी कुछ नहीं बिगड़ा है । आप तो कहारों से पानी मंगवायें और बाबू को ऊपर से नहलाया जाएं। बूढ़ा भगत एक-एक कर मंत्र मारता जाता है और कहार पानी डालते जाते हैं । धीरे-धीरे आकाश में लाली आती है और इसी क्रम में मंत्र शक्ति से एक समय के बाद कैलाश की आंखें खुल जाती हैं । कैलाश अंगड़ाई लेता है । डॉक्टर बूढ़े भगत के पैरों पर गिर जाते हैं । उनकी दुनिया वापस लौट आती है और बूढ़ा भगत फिर अपनी दुनिया में लौट जाता है । कहानी यहां यह कहना चाहती है कि हमें अपनी स्थिति पर घमंड नहीं करना चाहिए । समय सबका बदलता है एक जैसा नहीं होता । आज आप इतरा इठला रहे हैं । कब तक ? कब समय बदल जाए और आप दहाड़े मारने लगे ? कब चीखने और चिल्लाने लगे ? कहा नहीं जा सकता । इसलिए जब भी जहां भी अवसर हो आप अपने कर्तव्य पथ से मत चूको जो आपका दायित्व है जो कर्म है उसे जरूर करें । यह कहानी मनुष्य बोध को हमारे मनुष्य को इस तरह जगाती है कि मनुष्यता को रेखांकित करने के लिए धन पद और प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं होती । बल्कि मनुष्यता अपने भाव कर्म और चेतना से जन्म लेती है । हम जिसके लिए बने हैं जिस बात से जिस संदर्भ से समाज का भला होता है वह हमें करना चाहिए । हमारे एक कदम से यदि किसी की जान बचती हो तो हमें सबसे पहले वही करना चाहिए । कहानी मंत्र में अस्सी साल का बूढ़ा भगत जाड़े पाले में आधी रात को हिलते डुलते लड़खड़ाते कदमों से डॉक्टर चड्ढा के बेटे की जान बचाने के लिए चलता है । बूढ़े भगत का यह कदम पद , प्रतिष्ठा , धन-संपदा पर बहुत भारी होते हैं । यहां बूढ़े भगत के रूप में हम एक ऐसे मनुष्य से साक्षात्कार करते हैं जो अपनी विडंबना स्थिति को भुलाकर मनुष्य के प्राण बचाने के लिए दौड़ता है । प्राण बचाने के लिए दौड़ते मनुष्य से बड़ा कोई और नहीं होता ।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments