
कहो तो कर दूं…
-बृजेश विजयवर्गीय

(संयोजक बाघ -चीता मित्र, चम्बल संसद)
कूनो नेशनल पार्क के अफ्रीका और नामीबिया से लाए चीते बार-बार निकल कर कूनो नदी के रास्ते शाहबाद की ओर आने का प्रयास कर रहे हैं। उनका उस क्षेत्र के रहवासी रास्ते में जब लाठी और पत्थरों से स्वागत कर रहे हैं तो इन चीतों के हिंसक होने की आशंका भी बहुत ज्यादा बढ़ रही है। यदि एक बार इन चीतों पर नर भक्षी होने का ठप्पा लग गया तो निश्चित है कि जो आज चीतों की सुरक्षा कर रहे हैं उसी वन विभाग के लोग उन्हें गोली भी मार सकते हैं। और यदि इस तरह की वारदातें होती रही तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा चीता योजना शीघ्र ही दम तोड़ देगी।।
जिस प्रकार कूनो नेशनल पार्क से निकलकर चीते आ रहे हैं उसके लिए आवश्यक है कि शाहबाद के जंगलों को संरक्षित किया जाए क्योंकि शाहबाद के जंगल और मध्य प्रदेश के माधव नेशनल पार्क से जोड़ने के लिए प्राकृतिक गलियारा होता है। श्योपुर ग्वालियर के रास्ते पर चीतों का आगमन चिंता जताता है। हमारा वन्यजीव प्रबंधन फेल है। पहले तो सवाल उठता है कि चीता कूनो नेशनल पार्क से बाहर क्यों आ रहे हैं ? क्या कूनो का क्षेत्रफल इतना छोटा है कि चीतों के लिए कम पड़ रहा है? यदि क्षेत्रफल कम पड़ रहा है तो योजनाकारों ने शाहबाद का जंगल और कूनो नदी को क्यों नहीं चीता का प्राकृतिक गलियारा या आवास बनाया। सरकार में बैठे लोगों को समझना चाहिए कि हाइड्रो पावर प्लांट तो कहीं भी लग सकता है लेकिन जंगल कहीं नहीं बनाया जा सकता। जल, जंगल जमीन तो ईश्वरीय रचना है। सरकार के लिए उचित समय है कि शाहबाद के जंगल को हर कीमत पर संरक्षण प्रदान किया जाए।
हाल ही में सोमवार को चार चीते कूनो नेशनल पार्क से बाहर निकल कर श्योपुर ग्वालियर मार्ग पर आ गए। यहां एक किलोमीटर दूर ही रेलवे लाइन है। ग्रामीणों ने चीतों को भगाने के लिए पत्थर और लाठियां भांजी। वन विभाग की टीम किसी तरह इन चीतों को जंगल की ओर धकेल पाई। पूर्व में भी चीते तीन बार बारां जिले में पहुंच गए थे जिन्हें बेहोशी के इंजेक्शन दे कर वापस कूनो ले जाया गया।