
-प्रतिभा नैथानी-

देहरादून से पहाड़ तक के सफर में जहां मार्ग में हाथी आ जाने की आशंका तो बनी ही रहती है, बाघ का भय भी साथ-साथ चलता है। हिरण, चीतल, सांभर तो अक्सर नज़र आ ही जाते हैं मगर पलक झपकते ही वह इस तरह भागते हैं जैसे हमारी आंख में बंदूक की गोलियां भरी हैं। ऐसे में अगर कोई दुर्लभ पक्षी फ़ुर्सत से देखने को मिल जाए लगता है जैसे-अंधे के हाथ बटेर लग गई।
कुछ-कुछ जंगली मुर्गे से दिखने वाले इस पक्षी को ‘चीड़’ कहते हैं। चीड़ के पेड़ पर रहता है और लंबी-लंबी घास के बीच में भी। उस घास में मौजूद कीड़े-मकोड़ों को खाकर पर्यावरण को शुद्ध करने का काम करता है। कभी बहुतायत में थे , लेकिन अंधाधुंध शिकार के कारण अब इक्का-दुक्का ही बचे हैं।
शेर, चीते जैसे जानवरों को हम लगातार संरक्षण प्रदान करते हैं। अपने देश में कम हो गए तो बाहर से भी मंगवाए जा रहे हैं, लेकिन इन छोटे, निर्दोष, मासूम पंछियों का ख्याल हमें तब तक नहीं आता, जब तक यह बिल्कुल खत्म नहीं हो जाते।
(प्रतिभा नैथानी कवयित्री, लेखिका एवं डिजिटल क्रिएटर हैं)
प्रकृति से छेड़छाड़, पशु पक्षियों के इलाकों में मनुष्य की दखलंदाजी ने, परमात्मा की इन अमूल्य प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट पैदा कर दिया है…अब पर्यावरण को बचाने के लिए जंगली पशुओं का संरक्षण किया जा रहा है,शायद पक्षियों की तरफ कभी ध्यान जायेगा..