सरिस्का की तर्ज पर ही कोटा के मुकुंदरा का विकास संभव

 -कोटा से गये वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर में वन एवं पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल से मुलाकात कर सुझाव दिया कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में भी दो नर और तीन मादा को लाकर उनका आबाद किया जाए।

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कोटा में अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में रह रहे दोनों शावक अब स्वयं शिकार करने की स्थिति में है इसलिए उसको टाइगर रिजर्व के 28 हेक्टेयर के एनक्लोजर में शीघ्र छोड़ा जाना चाहिए ताकि वे वहां के माहौल में ढ़ल सकें।

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। राजस्थान में कोटा-झालावाड़ जिलों में विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में सरिस्का की तर्ज पर फिर से बाघों को आबाद किया जा सकता है। बीते सालों में एक समय ऎसा आया था जब बड़े पैमाने पर किए गए शिकार के कारण अलवर जिले के विश्वविख्यात सरिस्का टाइगर रिजर्व को अधिकारिक तौर पर पुष्टि करते हुए बाघरहित घोषित करना पड़ा था जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में व्यापक पैमाने पर चर्चा होने के कारण तात्कालिक राज्य सरकार की खूब छिछेलादारी हुई थी और सरिस्का टाइगर रिजर्व को बाघरहित होने की पीड़ा बरसों तक भोगनी पड़ी थी लेकिन बाद में सुनियोजित तरीके से कोशिशें करके सरिस्का में दो नर और तीन मादा बाघों को आबाद किया गया जिनका कुनबा धीरे-धीरे बढ़ा और अब सरिस्का टाइगर रिजर्व एक बार फिर से पहले की तरह बाघों से आबाद है और खोई हुई ख्याति फ़िर से लौट आई है। सरिस्का में फ़िर से राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर का पर्यटन का दौर लौट आया है।
कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को भी बाघरहित होने की पीड़ा झेल चुके सरिस्का टाइगर रिजर्व की तरह ही आबाद करने की पुरजोर मांग की गई है ताकि इस टाइगर रिजर्व में भी निकट भविष्य में पर्यटकों के लिए खोले जाने के बाद देशी-विदेशी अतिथियों के इस टाइगर रिजर्व में पर्यटन के लिए आने का सिलसिला शुरू हो और उसी के साथ कोटा में युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो सकें।
मुकुंदरा-रामगढ़ टाइगर संस्था के अध्यक्ष दौलत सिंह शक्तावत, सचिव कौशल बंसल, कोषाध्यक्ष कृष्णेंद्र नामा, सदस्य देवव्रत हाडा ने राज्य के वन एवं पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल से जयपुर में मुलाकात कर कहा गया है कि अलवर जिले के सरिस्का में बाघों के विलुप्त होने के बाद जिस तरीके से अल्प अवधि में दो नर और तीन मादा का पुनर्वास करके उसे फिर से आबाद करने की सफ़ल कोशिश की गई थी, उसी तरह से कोटा जिले के इस टाइगर रिजर्व में भी दो नर और तीन मादा को लाकर उनका आबाद किया जाए।
इस अभयारण्य में पहले से ही एक नर एवं मादा बाघ मौजूद हैं। ऐसी स्थिति में यदि नए बाघों के जोड़ों का पुनर्वास किया जाता है तो यहां बाघों की आबादी बढ़ने की संभावनाएं बहुत अधिक है।
संस्था के कृष्णेंद्र नामा ने कहा कि बाघों के लिए शाकाहारी वन्यजीवों को निरन्तर मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित किया जाए। पूर्व में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से 500 चीतल लाए जाने थे लेकिन दो वर्ष की समय अवधि के बीत जाने के बावजूद अभी तक यह चीतल यहां नहीं लाए गए हैं। कौशल बंसल ने कहा कि इस टाइगर रिजर्व को व्यवस्थित तरीके से आबाद करने की दृष्टि से जुटाए जाने वाली जरूरी सुविधाओं का प्रबंध नियोजित तरीके से नहीं किया जा रहा है। बाघ परियोजना घोषित किए हुए एक दशक से भी अधिक का समय बीत गया है लेकिन अभी तक यहां बसे गांवों का विस्थापन का काम बहुत ही धीमी गति से किया जा रहा है। टाइगर रिजर्व शुरू से ही वन कर्मियों की कमी की समस्या का सामना करना है जिससे अभी तक भी वन्यजीव विभाग निजात दिलाने में विफल साबित हुआ है।
देवव्रत सिंह हाड़ा ने कहा कि मुकुंदरा बाघ परियोजना के उप वन संरक्षक के पास ही क्षेत्र निदेशक का प्रभार है जबकि प्रबंधन की दृष्टि से क्षेत्र निदेशक के पद पर अनुभवी अधिकारी को लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघों के ट्रैकिंग-मॉनिटरिंग के लिए रणथम्भोर एवं सरिस्का के अनुभवी फील्ड स्टाफ को स्थानीय स्टाफ के साथ समय-समय पर लगाया जाना चाहिए ताकि वे उनके अनुभवों से कुछ सीख सकें और उसका इस्तेमाल आने वाले समय में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण की दृष्टि से कर सकें।
मुकुंदरा-रामगढ़ टाइगर संस्था के अध्यक्ष एवं पूर्व डीएफओ दौलत सिंह शक्तावत ने कहा कि कोटा में अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में रह रहे दोनों शावक अब स्वयं शिकार करने की स्थिति में है इसलिए उसको टाइगर रिजर्व के 28 हेक्टेयर के एनक्लोजर में शीघ्र छोड़ा जाना चाहिए ताकि वे वहां के माहौल में ढ़ल सकें। इन वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमियों ने अतिरिक्त मुख्य सचिव से यह भी आग्रह किया है कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में पर्यटन शीघ्र प्रारंभ किया जाना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकें और इस अभयारण्य के प्रति जो नकारात्मक भावना स्थानीय लोगों में बन गई है, उसको समाप्त किया जा सके।

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